हम बड़े विचित्र दौर से गुजर रहे हैं। जो जितना ज्यादा झांसा देने में सफल है, वो उतना ही ज्यादा कमा रहा है। कंपनियां विज्ञापनों के जरिए झांसा देती हैं। सेलेब्रिटी कंपनियों के माल बेचकर या सरकारी योजनाओं के विज्ञापन से कमाते हैं। सोचिए कि एक समय अमिताभ बच्चन के सितारे गर्दिश में थे। लेकिन अब तो रिजर्व बैंक से लेकर तेल व भुजिया तक के विज्ञापन से ही वे करोड़ों कमा ले रहे हैं। सचिन सेऔरऔर भी

शेयर बाज़ार दिन, महीने, साल हमेशा लहरों में चलता है। बाज़ार में ऐसा दौर होता है जब बहुत सारे शेयर आकर्षक भावों पर मिल रहे होते हैं। वहीं, ऐसा भी दौर होता है जब बहुत सारे शेयर काफी महंगे भाव पर चल रहे होते हैं। जो निवेशक बाज़ार की लहर के निचले स्तर या शेयरों को आकर्षक भाव पर खरीदते हैं, वे अक्सर दो-तीन साल में अच्छा कमा लेते हैं। वहीं, जो निवेशक बाज़ार की लहर केऔरऔर भी

जलाओ दीये, पर रहे ध्यान इतना, अंधेरा धरा पर कहीं रह न जाए। सुख, समृद्धि व खुशहाली का त्योहार आप सभी को बहुत-बहुत मुबारक। दीपावली असत्य पर सत्य की जीत का त्योहार है। नई शुरुआत की बेला है। यह काहिली व दलिद्दर को मिटाने और कर्तव्य, करतब व कर्म की राह पर डट जाने के संकल्प का पर्व है। अपने हिस्से की मेहनत व उद्यमशीलता में कोई कोर-कसर नहीं छोड़नी चाहिए। लेकिन यह दौर साथ-साथ बढ़ने औरऔरऔर भी

शेयर बाज़ार का निवेश लम्बे समय की ट्रेडिंग है और ट्रेडिंग छोटे समय का निवेश। अनुभवी लोग बताते हैं कि शेयर बाज़ार से वही कमाता है जो बराबर मुनाफा निकालता रहता है। इस अनिश्चितता से भरी दुनिया में कुछ भी पक्का नहीं। फिर शेयर बाज़ार तो अनिश्चितता से ही खेलने का दूसरा नाम है। पहली बात, हमेशा लक्ष्य बनाकर ट्रेडिंग या निवेश करना चाहिए। दूसरी बात, लक्ष्य पूरा होते या स्टॉप लॉस ट्रिगर होते ही ज्यादा लालचऔरऔर भी

बनाता है कोई, कमाता है कोई। दुनिया की यह रीत बड़ी पुरानी है और एकदम नई भी। व्यापार अपने यहां आज भी कृषि के बाद रोजी-रोजगार का सबसे बड़ा साधन है। एक ही गली-मोहल्ले में किराना से लेकर सर्राफा तक की कई दुकानें मिल जाती हैं। सभी दुकानदार ठीकठाक कमा लेते हैं और घर के तमाम सदस्यों को काम-धंधा भी मिल जाता है। दुनिया में भी व्यापार बहुत बड़ा धंधा बना हुआ है। आज अमेजॉन दुनिया काऔरऔर भी

लालच का कोई तर्क नहीं होता। बस फायदा ही फायदा दिखता है। पांच रुपए का शेयर खरीद लिया और दो-चार साल में 50 रुपए हो गया तो दस गुना रिटर्न! दिक्कत यह है कि आज भी शेयर बाज़ार के ज्यादातर निवेशक इसी तरह के तर्कहीन लालच में अंधे होते हैं। हर किसी के पास रिटर्न की पूरी गणना व ख्बाव होता है। लेकिन रिस्क का कोई हिसाब-किताब नहीं होता। समझदारी दिखाई तो कंपनी का पिछला ट्रैक रिकॉर्डऔरऔर भी

एक तरफ देश के आमजन पर कर्ज और देनदारियों का बोझ बढ़ रहा है। दूसरी तरफ उनकी वित्तीय आस्तियां घटती जा रही हैं। नतीजा यह है कि बीते वित्त वर्ष 2022-23 में आमजन या हाउसहोल्ड की शुद्ध बचत 47 सालों के न्यूनतम स्तर जीडीपी के 5.1% पर आ गई। साल भर पहले 2021-22 में यह जीडीपी की 7.2% हुआ करती थी। यह सच रिजर्व बैंक ने सितंबर 2023 की मासिक बुलेटिन में उजागर किया है। लेकिन वित्तऔरऔर भी

कंपनियों की बैलेंसशीट में हमेशा आस्तियों और देनदारियों का अलग-अलग जोड़ बराबर होता है। इसी तरह किसी देश के जीडीपी की गणना करते वक्त उत्पादन या आय को कुल व्यय के बराबर होना चाहिए। सिद्धांत कहता है कि अर्थव्यवस्था में अर्जित आय को खर्च के बराबर होना चाहिए क्योंकि उत्पादक व सेवाप्रदाता की आय तभी होती है, जबकि दूसरा उसके उत्पाद व सेवाएं खरीदता है। भारत में जीडीपी की गणना के लिए आय या उत्पादन का तरीकाऔरऔर भी

भारत दुनिया की सबसे ज्यादा तेज़ी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था है। इस तथ्य से कोई इनकार नहीं कर सकता। लेकिन हमारी प्रति व्यक्ति आय अब भी वैश्विक औसत से कम है। सवाल है कि इस स्थिति को जल्दी से जल्दी कैसे बदला जाए और देश की विशाल युवा आबादी की आकांक्षाओं को कैसे पूरा किया जाए? जवाब है कि अर्थव्यवस्था को विश्वस्तर पर ज्यादा प्रतिस्पर्धी बनाकर। अभी हमारे यहां उत्पादों के आने-जाने में बहुत ज्यादा समय औरऔरऔर भी

तेज़ी पर सवार अपने शेयर बाज़ार के लिए पिछले सात दिन किसी झटके से कम नहीं। सब ठीकठाक, कहीं कोई अनहोनी नहीं। अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने 19-20 सितंबर को हुई अपनी बैठक में ब्याज दरों को 5.25% से 5.50% की रेंज पर जस का तस रखने का फैसला किया। यह अच्छी खबर थी। फिर भी अपना बाजार गिरता गया। उस शुक्रवार को निफ्टी-50 अब तक के ऐतिहासिक शिखर 20,192.35 पर था, जबकि इस शुक्रवारऔरऔर भी