ज्यों-ज्यों निफ्टी 20,000 अंक के करीब पहुंचता जा रहा है, बाज़ार में उन्माद बढ़ता जा रहा है। लेकिन किसी भी किस्म का उन्माद समझदारी को धुंधला कर देता है और हम बहक कर गलत फैसले ले सकते हैं। इसलिए उन्माद में भी हमें संतुलित रहना चाहिए। वहीं, अगर मान लीजिए कि निफ्टी 20,000 का स्तर छूने से पहले ही फिसलकर गिर गया या लम्बे तक सीमित रेंज में भटकता रहे, तब भी हमें न तो हताश होनाऔरऔर भी

अपना शेयर बाज़ार 11 महीने में ही फिर नए ऐतिहासिक शिखर पर पहुंच गया। सेंसेक्स 17 जून से 25 नवंबर 2022 तक के करीब पांच महीनों में नीचे से ऊपर तक 22.64% और निफ्टी 22.07% बढ़ा है। इस दौरान अगर किसी ने निफ्टी ईटीएफ में निवेश किया होता तो यकीकन उसे इसके आसपास रिटर्न मिल गया होता। लेकिन क्या आपके पोर्टफोलियो में शामिल शेयर भी इस दौरान इतने बढ़े हैं? यह आदर्श स्थिति दुनिया का कोई भीऔरऔर भी

भारत में शेयर बाज़ार से कमाने की कारगर रणनीति यही है कि ट्रेडर मौका देखे तो निवेशक बन जाए तो निवेशक को ज़रूरत पड़े तो ट्रेडर बन जाए। वैसे, दोनों के बीच बड़ी साफ विभाजन रेखा है। ट्रेडर हमेशा सटोरिया होता है। वह बहुत कम जानकारी जुटाकर अनजाने में छलांग लगाता है। वहीं, निवेशक कतई सटोरिया नहीं होता। वह जितना संभव है, उतना जानकर ही दांव लगाता है। वह जो भी शेयर खरीदे, उसके पीछे निष्पक्ष वऔरऔर भी

शेयर बाज़ार में आप इंडेक्स फंड के ईटीएफ या म्यूचुअल फंड की इक्विटी स्कीमों के ज़रिए परोक्ष रूप से निवेश कर सकते हैं। लेकिन सीधे निवेश करना है तो संभावनामय कंपनियां चुननी पड़ती हैं, पता करना पड़ता है कि कंपनी का भविष्य क्या हो सकता है। और, आप जानते ही हैं कि कोई भी, यहां तक कि कंपनी का प्रवर्तक भी कंपनी के बारे में सटीक भविष्यवाणी नहीं कर सकता। लेकिन बिना भविष्य का अंदाज़ा लगाए किसीऔरऔर भी

भारत जैसी संभावनाओं से भरी उभरती अर्थव्यवस्था में सम्पूर्ण शेयर बाज़ार या व्यावहारिक रूप से कहें तो निफ्टी-50 या सेंसेक्स-30 जैसे सूचकांकों के ईटीएफ में निवेश करना सदा के लिए होना चाहिए। ऐसा निवेश पांच, दस या बीस साल बाद तभी बेचकर मुनाफा निकालना चाहिए, जब खास ज़रूरत पड़ जाए। इनके बाहर कुछ ही कंपनियां होती हैं जिनमें निवेश सदा के लिए होता है। बाकी तमाम कंपनियों में किया निवेश ऐसा होता है कि लक्ष्य पूरा करतेऔरऔर भी

सारी दुनिया में इस समय महंगाई विकट समस्या बन गई है। सितंबर में अपने यहां थोक मुद्रास्फीति की दर 10.70% और रिटेल मुद्रास्फीति की दर 7.41% रही है। इसी दौरान अमेरिका में मुद्रास्फीति की दर 8.2%, यूरो ज़ोन में 9.9% और ब्रिटेन में 10.1% रही है। वहां यह दो-चार साल नहीं, करीब चार दशकों का उच्चतम स्तर है। बड़े-बड़े देशों की मुद्राएं भी अमेरिकी डॉलर के मुकाबले गिरती जा रही हैं। अपना रुपया भी इस साल डॉलरऔरऔर भी

शेयर बाज़ार में कभी कोई स्टॉक सबका चहेता हुआ करता है। फिर अचानक सबकी नज़रों से गिर जाता है। यह कुछ नकारात्मक पहलुओं पर बाज़ार में सक्रिय लोगों की तात्कालिक भावनात्मक प्रतिक्रिया हो सकती है। लेकिन बाद में भी वे उस स्टॉक को पूरा छोड़ देते हैं। वह सही रास्ते पर लौट भी रहा हो तब भी उसकी तरफ ध्यान नहीं देते। हमें समझदारी बरतते हुए देखना चाहिए कि कोई पिटा हुआ स्टॉक क्या अपनी बदतर स्थितिऔरऔर भी

क्या शेयर बाज़ार को मात दी जा सकती है? इस सवाल का जवाब हां और ना दोनों है। हम यकीनन ट्रेडिंग में बाज़ार को मात नहीं दे सकते क्योंकि उसमें एक की हार ही दूसरे की जीत होती है। ज़ीरोसम गेम, एक का नुकसान, दूसरे का फायदा। लेकिन लम्बे समय के निवेश में, जहां समय बड़ा कारक बन जाता है, जहां वर्तमान के गर्भ से भविष्य का जन्म होता है, वहां सूझबूझ से बाजार को मात दीऔरऔर भी

ऑस्ट्रेलिया से लेकर अमेरिका, यूरोप व एशिया तक में सक्रिय अग्रणी ब्रोकरेज़ फर्म सीएलएसए ने डराया है कि भारत का शेयर बाज़ार 30% तक गिर सकता है। CLSA कोई ऐसी-गैरी फर्म नहीं है। उसने दुनिया में बढ़ती ब्याज दर, सरकारी बांडों पर बढ़ते यील्ड और अमेरिका से लेकर यूरोप तक गिरते शेयर बाज़ार के ट्रेन्ड और भारत की विशेष स्थिति के आधार पर यह भविष्यवाणी की है। लेकिन जो लोग ज़मीन पर गिरे हीरों को चुनने काऔरऔर भी

अच्छा निवेश वो है जिसमें मूलधन सुरक्षित रहे और इतना संतोषजनक रिटर्न मिले जो महंगाई को बेअसर कर सके। निवेश के गुरु बेन ग्राहम ने निवेश की एक और परिभाषा दी है। निवेश वो है जिसे मात्रा और गुणवत्ता, दोनों पैमानों पर खरा पाया जाए। कंपनी में निवेश संबंधी मात्रात्मक पहलुओं में उसके धंधे व लाभ की वृद्धि दर, ऋण-इक्विटी अनुपात, इक्विटी व नियोजित पूंजी पर रिटर्न, लाभ मार्जिन और लाभांश रिकॉर्ड वगैरह आते हैं। इन परऔरऔर भी