अफसोस की बात है कि अपने यहां 2.5 लाख रुपए की इनकम टैक्स मुक्त सीमा 2014-15 से जस की तस चली आ रही है, जबकि तब से अब तक दस साल में मुद्रास्फीति की औसत दर 5.50% रही है। इस हिसाब से तब के 2.5 लाख रुपए आज के 4.27 लाख रुपए हो चुके हैं। लेकिन सरकार के लिए धन के समय मूल्य या टाइम वैल्यू ऑफ मनी का कोई मतलब नहीं। वो महंगाई को डिस्काउंट किएऔरऔर भी

जब तय कर लिया कि आकस्मिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए निकाली गई रकम के बाद बची बचत का कितना हिस्सा बैंक एफडी, सरकारी बॉन्ड, रीयल एस्टेट व सोने वगैरह में लगाने के बाद शेयर बाज़ार में लगाना है, उसके बाद सबसे बड़ी चुनौती होती है कि किस कंपनी को लें और किसको झटक दें। इससे निपटने का तरीका यह है कि आठ-दस मानक बना लिये। जो कंपनी इन पर खरी उतरे, उसके शेयर स्मॉल-कैप, मिड-कैपऔरऔर भी

चींटी तक बराबर बरसात के लिए बचाकर रखती है तो इंसानों की क्या बात! बचाना हमारी फितरत है। लेकिन हम किसी निर्जन जंगल में नहीं, बल्कि देश में रह रहे हैं, जिसमें हर सामाजिक लेन-देन के लिए मुद्रा है। मुद्रा है तो मुद्रास्फीति भी है जिस पर हमारा कोई वश नहीं। इसलिए चाहे-अनचाहे अपनी बचत को मुद्रास्फीति से बचाना हमारी ज़िम्मेदारी बन जाती है। ज्यादा झंझट नहीं पालना तो बैंक एफडी और सरकारी या रिजर्व बैंक केऔरऔर भी

अपने प्रमुखतम स्टॉक एक्सचेंज एनएसई का नारा है सोच कर, समझ कर, इन्वेस्ट कर। यह अलग बात है कि वो सोच-समझकर इन्वेस्ट करने का कोई टूल उपलब्ध नहीं कराता। वो यह भी नहीं बताता कि शेयर बाज़ार में इन्वेस्ट करने के लिए सोचने-समझने के साथ ही बराबर सतर्क रहने की भी ज़रूरत है। दुनिया हर पल बदलती रहती है, भले ही हमें दिखे या न दिखे। लेकिन शेयर बाज़ार तो हर पल बदलता ही नहीं, दिखता भीऔरऔर भी

भारत जैसी संभावनाओं से भरी अर्थव्यवस्था बराबर बढ़ती ही रहती है तो शेयर बाज़ार भी बराबर नई ऊंचाइयां छूता रहता है। लेकिन तेज़ी के हर शिखर के दौरान ऊपर-ऊपर तैरते झाग के नीचे तलहटी में कुछ ऐसी कंपनियां होती हैं जो भरपूर संभावनाओं के बावजूद भीड़ और भेड़चाल से दूर पड़ी रहती हैं। करीब छह साल पहले रविवार, 29 जुलाई 2018 की बात है। तब भी दो दिन पहले शुक्रवार को सेंसेक्स और निफ्टी ने नया शिखरऔरऔर भी

संस्कृत में एक कथा भी है और कहावत भी, जिसमें कहा गया है – महाजनो येन गतः स पन्थाः, मतलब महापुरुष जिस रास्ते पर चलें, वही सही रास्ता है। यही कहावत पंचतंत्र की एक कथा – चार मूर्ख पंडित में यह अर्थ पकड़ लेती है कि जहां बहुत सारे लोग जा रहे हों, वही सही रास्ता है। हमारे शेयर बाज़ार में यही सोच भीड़ के पीछे चलने को सही रास्ता बता देती है। व्यक्ति ही नहीं, अनुभवीऔरऔर भी

माना जाता है कि शेयर बाज़ार स्टॉक्स की प्राइस डिस्कवरी या मूल्य की खोज का आदर्श माध्यम है। लेकिन इस बाज़ार में ‘खेला’ होता रहता है। अपने यहां ठीक आम चुनावों के बाद दो दिन में जो ‘खेला’ हुआ, उसका भेद शायद कभी न खुले। लेकिन मामला इतना आसान भी नहीं, जैसा केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल बताते हैं कि एक्जिट पोल आने के बाद विदेशी निवेशकों ने ऊंचे भाव पर शेयर खरीदे, जबकि भारतीय निवेशकों ने ज्यादाऔरऔर भी

चढ़ जा बेटा सूली पर, भला करेंगे राम। खुद मौज करते हुए राम का वास्ता देकर दूसरों को सूली पर चढ़ाने की यह सलाह ठीक नहीं। वो भी तब, जब इसे देश के सर्वोच्च पद पर बैठा कोई शख्स दे रहा हो। लेकिन यह सच है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ठीक चुनावों के बीच टीवी पर इंटरव्यू में लोगों को शेयर बाज़ार में निवेश करने की सलाह देते हुए कहा कि 4 जून को नतीजों केऔरऔर भी

ब्रोकरेज़ फर्म देशी हो या विदेशी, उनका समान धंधा है कि वे उन्हीं स्टॉक्स को खरीदने की सिफारिश करती हैं जो पहले से काफी चढ़ चुके होते हैं। कुछ ही दिन पहले जानी-मानी विदेशी ब्रोकरेज़ फर्म सीएलएसए ने 54 स्टॉक्स की लिस्ट जारी की है जिसे उसने मोदी स्टॉक्स का नाम दिया है। इनमें लार्सन एंड टुब्रो, एनटीपीसी, एनएचपीसी, पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन, ओएनजीसी, इंद्रप्रस्थ गैस, महानगर गैस, भारती एयरटेल, इंडस टावर्स, रिलायंस इंडस्ट्रीज़, एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक,औरऔर भी

जो अड़ता है, वो टूट जाता है और जो ढलता है, वही लम्बा चलता है। परिस्थितियां हमेशा एक-सी नहीं होतीं। हमें उनसे निपटने के लिए उनके हिसाब से ढलना पड़ता है। कुदरत का यह नियम शेयर बाज़ार पर ही लागू होता है। बाज़ार के हर चक्र में एक ही रणनीति नहीं चल सकती। इस समय बाज़ार में अनिश्चितता का जो आलम है, उसके हिसाब से हमें अपनी निवेश रणनीति को ढालना होगा। यकीनन, नज़र अल्पकालिक नहीं, बल्किऔरऔर भी