वक्त के साथ
जो लोग अपने समय से बहुत आगे या पीछे होते हैं, वे ज्यादा नहीं जीते। और, जो लोग अपने समय के साथ चलते हैं, वे दार्घायु होते हैं। समय के साथ प्रकृति का यही करार है। दोनों का यही तालमेल है।और भीऔर भी
सूरज निकलने के साथ नए विचार का एक कंकड़ ताकि हम वैचारिक जड़ता तोड़कर हर दिन नया कुछ सोच सकें और खुद जीवन में सफलता के नए सूत्र निकाल सकें…
जो लोग अपने समय से बहुत आगे या पीछे होते हैं, वे ज्यादा नहीं जीते। और, जो लोग अपने समय के साथ चलते हैं, वे दार्घायु होते हैं। समय के साथ प्रकृति का यही करार है। दोनों का यही तालमेल है।और भीऔर भी
बताते हैं कि दूसरों को अपने जैसा समझो। आत्मवत् सर्वभूतेषु। लेकिन दूसरा तो हमसे भिन्न है। स्वतंत्र व्यक्तित्व है उसका। हम जब भी इसे नहीं समझते, अपनी ही बातें थोपने लगते हैं तो तकरार बढ़ जाती है। इसलिए हरेक की भिन्नता का सम्मान जरूरी है।और भीऔर भी
आज की भागमभाग भरी जिंदगी में हम लोगों से बातें खूब करते हैं, लेकिन मिलते नहीं। इसलिए जान-पहचान वालों की भीड़ के बीच भी अकेले होते चले जाते हैं। अरे, कभी घर तो आइए। बात ही नहीं, मुलाकात भी करते हैं। खोल से निकलकर रिश्तों की बुनियाद रखते हैं।और भीऔर भी
जो बाहर है, वही तो अंदर है। प्रकृति ही बाहर है और भीतर भी। इसलिए किसी के सामने झुककर आपके अंदर की शक्ति नहीं जगती। इसके लिए तो अंदर की इंजीनियरिंग और सर्जरी जरूरी है।और भीऔर भी
शब्द तो साधन हैं खुद को बयां करने के। किसी के शब्दों पर उलझ गए, भाव नहीं समझा, मंशा नहीं समझी तो आने लगती है रिश्तों में दरार।और भीऔर भी
“शरीर हमसे बिना पूछे सोते-जागते, दिन-रात अपना काम करता रहता है। हमारे पूरे सुरक्षा तंत्र को चाक-चौबंद रखता है। लेकिन उसे भी कभी-कभी हमारी मदद की जरूरत पड़ती है। वह इशारों में बताता है। जब भी हम इन इशारों को नहीं समझते तो हमें इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ती है।”और भीऔर भी
मैं अपने घर के चारों तरफ ऊंची-ऊंची बाड़ नहीं लगाना चाहता। न ही मैं अपने खिड़की-दरवाजे बंद रखना चाहता हूं। मैं तो दुनिया भर की हवाओं, संस्कृतियों को अपने घर से बेरोकटोक बहने देना चाहता हूं। लेकिन मैं इन हवाओं को अपने पैर ज़मीन से उखाड़ने की इजाजत नहीं दे सकता: महात्मा गांधीऔर भीऔर भी
“हम उस दौर में रह रहे हैं जहां समय भी पूंजी है और कोई भी जीवन की दौड़ में किसी से पीछे रहने को तैयार नहीं हैं। लेकिन इस भागमभाग में समय को नाथना जरूरी है। उसका नियोजन जरूरी है। नहीं तो समय बड़ी बेरहमी से हमें कुचलता हुआ आगे निकल जाता है।”और भीऔर भी
“पहले कहा जाता था कि जिसकी कोई मंजिल नहीं होती, वह कोई भी राह पकड़कर, लहरों पर सवार होकर कहीं न कहीं पहुंच जाता है। लेकिन आज की हकीकत यह है कि जिसकी कोई मंजिल नहीं होती, कोई ध्येय नहीं होता, कोई भी राह या लहर उसे कहीं नहीं पहुंचाती।”और भीऔर भी
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