जिसके पास पैसा है, उसके पास पूंजी हो, जरूरी नहीं। जिसके पास पूंजी है, वह अमीर हो, जरूरी नहीं। पैसा उद्यम में लगता है तो पूंजी बनता है। दृष्टि सुसंगत बन जाए, तभी पूंजी किसी को अमीर बनाती है।और भीऔर भी

आज का जमाना ही सपने देखने-दिखाने और उन्हें पूरा करने का जमाना है। अगर आप अपने सपने के लिए काम नहीं करते तो दूसरों के सपनों के लिए काम करते हैं। अपने या दूसरों के लिए? फैसला आपका है।और भीऔर भी

हर कोई चाहता है कि वह पीछे ऐसा कुछ छोड़कर जाए कि दुनिया उसे याद करें। लेकिन गिने-चुने लोग ही ऐसा कर पाते हैं क्योंकि एक तो सभी में वैसी प्रतिभा नहीं होती, दूसरे हर कोई वैसा जोखिम नहीं उठाता।और भीऔर भी

संपूर्ण कमोबेश स्थिर है। पर अंश बराबर रीसाइकल होता रहता है। बनने-मिटने-बनने का चक्र अनवरत चलता है। ये नीरस-सा चक्र ही जीवन है। यह चक्र रुक जाए तो हर तरफ हाहाकार मच जाएगा।और भीऔर भी

भगवान को क्या खोजते हैं! खोजना ही है तो खुद को खोजिए जो इस भवसागर में कहीं खो गया है। अपनी खोज करेंगे तो खुद को पाने पर तर जाएंगे। भगवान को खोजेंगे तो दूसरों के धंधे का शिकार बन जाएंगे।और भीऔर भी

दुनिया को जीने के लिए बेहतर जगह बनाने के संघर्ष में लगे लोग निश्चित रूप से धन्य हैं। लेकिन जो घर को जीने की बेहतर जगह बनाने में लगे है, उनकी इत्ती उपेक्षा क्यों? आखिर आधी दुनिया तो वही हैं!और भीऔर भी

हर दिन देश-दुनिया व समाज में इतना कुछ घटित होता है कि उन्हें जानकर हम एक ही दिन में परम ज्ञानी बन सकते हैं। लेकिन नजर की सीमा और आत्मग्रस्तता के कारण हम बहुत कुछ देख ही नहीं पाते।और भीऔर भी

जिंदगी में तमाम छोटी-छोटी चीजों से हमारा सुख व दुख निर्धारित होता है। इनमें से कुछ का वास्ता हमारे व्यक्तित्व, परिवार व दोस्तों से होता है, जबकि बहुतों का वास्ता सरकार व समाज के तंत्र से होता है।और भीऔर भी

मनोरंजन का काम है कि रोज की रगड़-धगड़ और खरोचों को सम कर दे, संतुलन बना दे। लेकिन हमारे सपने जब रोज यह काम बखूबी कर देते हैं तो अलग से मनोरंजन की क्या जरूरत? हां, ज्ञान जरूरी है।और भीऔर भी

ज्ञान का हर चिप खुशी के नए स्रोत खोलता है। चीजें वही रहती हैं, लेकिन नजरिया बदलने से उनके साथ आपके रिश्ते बदलकर नए बन जाते हैं। खुशी की चादर इन्हीं रिश्तों के तानेबाने से ही बुनी जाती है।और भीऔर भी