मीठा-मीठा गप्प, कड़वा-कड़वा थू। दांव से कितना मिलेगा, इस पर तो हम बल्ले-बल्ले करते हैं। लेकिन क्या दांव पर लगा है, इसे अक्सर भुलाए रहते हैं। शेयर बाज़ार में हम जैसे ही कोई ट्रेड करते हैं, रिवॉर्ड की संभावना के साथ रिस्क की आशंका चील की तरह उसके ऊपर मंडराने लगती है। सुमेरु पर्वत को कोई कृष्ण ही उंगली पर उठा सकता है। पर पक्का जान लें कि रिटेल निवेशक या ट्रेडर होने के नाते हम बाज़ारऔरऔर भी

हम हिंदुस्तानी जुगाड़ तंत्र में बहुत उस्ताद हैं। फाइनेंस और शेयर बाज़ार दुनिया में उद्योगीकरण में मदद और उसके फल में सबकी भागीदारी के लिए विकसित हुए। लेकिन हमने उसे भोलेभाले अनजान लोगों को लूटने का ज़रिया बना लिया। इसलिए शेयर बाज़ार की ठगनेवाली छवि हवा से नहीं बनी है। पिछले हफ्ते हमारे एक सुधी पाठक के एस गुप्ता जी ने एक किस्सा लिख भेजा कि शेयर बाज़ार में पैसा कैसे डूबता है। वो किस्सा यूं है…औरऔर भी

बाज़ार ऐतिहासिक ऊंचाई बना चुका है। सेंसेक्स और निफ्टी चढ़ते ही जा रहे हैं। क्या भारतीय अर्थव्यस्था वाकई इतनी मजबूत होती जा रही है कि शेयर सूचकांकों का बढ़ना स्वाभाविक है? कोई भी बता सकता है कि ऐसा कतई नहीं है। बाज़ार बाहर से आ रहे सस्ते धन के दम पर फूल रहा है और जैसे ही अमेरिका का केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व हर महीने सिस्टम में 85 अरब डॉलर डालने का सिलसिला रोक देगा, भारत समेतऔरऔर भी

हम ज़मीन को छोड़े बगैर आसमान में उड़ना चाहते हैं! कार चलाना आ गया तो मान बैठते हैं कि हवाई जहाज़ भी उड़ा लेंगे। सोने व रीयल एस्टेट को जान लिया तो सोचते हैं कि शेयर बाज़ार और फॉरेक्स बाज़ार पर भी सिक्का जमा लेगे। यह संभव नहीं है क्योंकि भौतिक अर्थव्यवस्था और फाइनेंस की अर्थव्यवस्था में सचमुच ज़मीन आसमान का अंतर है। डिमांड, सप्लाई और दाम का रिश्ता यहां भी है और वहां भी। लेकिन समीकरणऔरऔर भी

अगर किसी ने ट्रेडिंग को अच्छी तरह समझ लिया, टेक्निकल एनालिसिस में पारंगत हो गया हो तो ट्रेडिंग की शुरुआत उसे कितनी पूंजी से करनी चाहिए? मेरे एक जाननेवाले हैं जो अड़े हुए हैं कि जब दस लाख नहीं हो जाते, तब तक ट्रेडिंग को हाथ नहीं लगाएंगे। वे यह भी कहते हैं कि उन्हें दिन में ट्रेडिंग से 10,000 कमाने हैं। अगर दिन के 1000-1500 ही कमाने हैं तो बेहतर है कि वे सब्जी-भाजी की दुकानऔरऔर भी

अल्गोरिदम ट्रेडिंग या हाई फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग का नाम आपने सुना ही होगा। जानते भी होंगे कि इसमें ट्रेडिंग का सारा काम कंप्यूटर सॉफ्टवेयर करते हैं। करोड़ों का दांव खेलनेवाली संस्थाएं इस तरह की ट्रेडिंग का सहारा लेती है। हमें पांच-दस फीसदी की कमाई चाहिए होती है, जबकि अल्गो ट्रेडिंग में पांच-दस पैसे का लाभ एक-एक दिन में लाखों की कमाई करा देता है। सवाल उठता है कि क्या इस हाई फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग का मुकाबला हम जैसे आमऔरऔर भी

देश पर लगता है कि डेरिवेटिव ट्रेडिंग का जुनून सवार है। आपको यकीन नहीं आएगा कि वित्त वर्ष 2001-02 से 2012-13 के बीच के ग्यारह सालों में इक्विटी फ्यूचर्स व ऑप्शंस (एफ एंड ओ) में रोज़ का औसत टर्नओवर 71.18 फीसदी की सालाना चक्रवृद्धि दर (सीएजीआर) से बढ़ता हुआ 420 करोड़ से 1,55,048 करोड़ रुपए पर पहुंच चुका है। अभी कल, 18 अक्टूबर 2013 को एनएसई के एफ एंड ओ सेगमेंट का टर्नओवर 1,67,558 करोड़ रुपए रहाऔरऔर भी

एक ट्रक डाइवर था। मस्त-मस्त सपने बुनता था कि थोड़ा-थोड़ा करके किसी दिन इतना बचा लेगा कि अपना ट्रक खरीदेगा और तब गैर का चाकर नहीं, खुद अपना मालिक होगा। सौभाग्य से एक दिन वो सपना पूरा हुआ। सालों-साल की बचत काम आई। उसने एकदम झकास नया ट्रक खरीदा। नौकरी छोड़ दी। यार-दोस्तों के साथ खुशी मनाने के लिए जमकर दारू पी। उसी रात घर लौट रहा तो नशे में ट्रक खड्डे में गिरा दी। डीजल टैंकऔरऔर भी

आप शेयर बाज़ार में अच्छी तरह ट्रेड करना चाहते हैं तो आपको मानव मन को अच्छी तरह समझना पड़ेगा। आखिर बाज़ार में लोग ही तो हैं जो आशा-निराशा, लालच व भय जैसी तमाम मानवीय दुर्बलताओं के पुतले हैं। ये दुर्बलताएं ही किसी ट्रेडर के लिए अच्छे शिकार का जानदार मौका पेश करती हैं। निवेश व ट्रेडिंग के मनोविज्ञान पर यूं तो तमाम किताबें लिखी गई हैं। लेकिन उनके चक्कर में पड़ने के बजाय यही पर्याप्त होगा किऔरऔर भी

यूं तो अनजान या कम जानकार निवेशकों के लिए शेयर बाज़ार में लंबे समय का ही निवेश करना चाहिए जिसके लिए ‘तथास्तु’ आपकी अपनी भाषा में उपलब्ध इकलौती और सबसे भरोसेमंद सेवा है। फिर भी अगर आपने ट्रेडिंग का मन बना ही लिया है तो आप सबसे पहले यह समझ लीजिए कि आप जैसी और आपसे ठीक उलट राय रखने वाले लाखों लोग सामने मैदान में डटे हैं। उन्हें भी अपना धन और मुनाफा उतना ही प्याराऔरऔर भी