सहज-वृत्ति चलना, घाटे में धंसना

हमारी सोच में कुछ जन्मजात दोष हैं, जिनको दूर किए बगैर हम ट्रेडिंग में कतई कामयाब नहीं हो सकते। चूंकि अपने यहां इन सोचगत व स्वभावगत दोषों को दूर करने की कोई व्यवस्था नहीं है और सभी इस खामी का फायदा उठाकर कमाना चाहते हैं तो हम में ज्यादातर लोग घाटे पर घाटा खाते रहते हैं। किसी को हमें घाटे से उबारने की नहीं पड़ी है। पूंजी बाज़ार नियामक संस्था, सेबी बड़ी-बड़ी बातें ज़रूर करती है, लेकिन उसे बड़ों के ही हित की परवाह ज्यादा रहती है। दरअसल, सरकार भी उससे यही करवाना चाहती है।

ऐसे में हाल-फिलहाल अपनी राह हमें खुद ही खोजनी है। इसके लिए अपनी स्वभावगत कमियों को पहचानना और उन पर विजय पाना ज़रूरी है। जैसे, हम बचपन से ही जिन चीज़ों से डरते हैं, उनसे दूर भागते हैं और जहां सुकून मिलता है, सुरक्षा दिखती है, उसकी तरफ भागते हैं। बाप से दूर भागना और मां की गोद में जाकर छिप जाना इसी सहज वृत्ति या स्वभाव का हिस्सा है। इसमें अपने आप में कोई बुराई नहीं, लेकिन सुरक्षा खोजने का यह स्वभाव शेयर, कमोडिटी या फॉरेक्स बाज़ार में हमें घाटे के दलदल में धकेल देता है।

अच्छी खबर आ रही है, बाज़ार चढ़ाव पर है, सारे संकेतक बढ़ने का संकेत दे रहे हैं, हर कोई यही कह रहा है, हमें भी लगता है कि चढ़ता बाज़ार चढ़ता ही जाएगा। इसकी संभावना भी ज्यादा हो सकती है। हम खटाखट खरीदने में लग जाते हैं, बिना यह सोचे कि अगर हमें इस सौदे से मुनाफा कमाना है तो हमारे बाद बहुत से लोगों को वहीं स्टॉक खरीदना पड़ेगा। कुछ लोग मूर्ख से और बड़े मूर्ख के इस सिद्धांत को मानते हैं। लेकिन सवाल उठता है कि क्या इतने हो-हल्ले के बावजूद ऐसे लोग बचे होंगे? होंगे भी तो शायद उनकी संख्या इतनी कम होगी कि उनकी खरीद स्टॉक को खास उठा नहीं सकती।

इस तरह यह भेड़चाल, उन्माद में आने का यह स्वभाव हमें ऐसे सौदे में फंसा देता है, जहां रिस्क ज्यादा और रिटर्न बेहद मामूली होता है। वहीं, अगर हम तब खरीदें जब उधर न तो मीडिया, न विश्लेषकों और न ही आम ट्रेडरों का ध्यान गया हो, तब हमारा रिस्क कम और रिटर्न अधिकतम हो सकता है। अरे, किसी चीज़ को जब खरीदनेवाले ज्यादा हो जाते हैं, तभी तो उसका दाम बढ़ता है। इसलिए एंट्री तभी मार लो, जब दूसरे लोग इधर-उधर झांकने में लगे हों, जब डाउनट्रेंड खत्म होनेवाला हो, जब खबर बुरी हो, संकेतक नीचे की ओर इशारा कर रहे हों। लेकिन ऐसा करना चूंकि हमारे मूल स्वभाव के खिलाफ है, इसलिए हमें उससे लड़ना पड़ता है।

दिक्कत यह है कि हमारे इसी स्वभाव को सहलाते हुए हमारी शिक्षा-दीक्षा भी होती है। शेयर बाज़ार के तमाम कोर्स हमें पढ़ाते हैं कि किसी भी स्टॉक को खरीदने से पहले उस पर जमकर रिसर्च करो। देख लो कि कंपनी का कैश फ्लो अच्छा है. प्रबंधन अच्छा है, वो अपने धंधे में औरों से बेहतर स्थिति में है और उसका शेयर ऊपर की तरफ बढ़ने लगा है। लेकिन सोचिए, जब इतने सारे मानकों पर कंपनी खरा उतर रही होगी तो बाज़ार के बाकी लोग क्या कान में तेल और आंख पर पट्टी बांधकर बैठे हैं? इस मौके पर अगर आप इस शेयर को खरीदते हैं तो इसका सीधा-सा मतलब होगा कि आप उन लोगों का फायदा करा रहे हैं जिन्होंने आप से पहले इसे कम भाव पर खरीदा लिया था। लंबे समय के निवेश में यह चल भी सकता है क्योंकि तब धंधे के बढ़ने के कारण कंपनी के शेयर का अंतर्निहित मूल्य साल-दर-साल बढ़ता जाता है। लेकिन ट्रेडिंग में ऐसा कतई नहीं चलता।

ट्रेडिंग में अच्छे से अच्छे स्टॉक को भी तभी खरीदना चाहिए, जब उसका भाव गिरकर अपने अंतनिर्हित मूल्य या थोक भाव की रेंज में आ जाए। उन्माद में बहना और चढ़ने पर खरीदना भीड़ का स्वभाव है और उस मौके पर जो भाव होते हैं, वे रिटेल के भाव होते हैं। वहीं, जब शेयर ठंडा पड़ जाता है तो धीरे-धीरे वह गिरते-गिरते वहां आ जाता है जहां उसे हर कोई नहीं, कोई-कोई खरीदता है, प्रोफेशनल ट्रेडर और संस्थाएं उसे खरीदती है, तब वो स्टॉक अपने थोक भाव पर ट्रेड हो रहा होता है। थोक भाव पर खरीदो, रिटेल भाव पर बेचो, ट्रेडिंग में न्यूनतम रिस्क में अधिकतम फायदा कमाने की कामयाब रणनीति यही है।

यही नियम पलटकर बेचने या शॉर्ट करने के बारे में लागू होता है। हम स्वभावतः जब सब बेच रहे होते हैं, तब डर में आकर बेचने लगते हैं, उससे दूर भागने लगते हैं। ध्यान रखें कि जो कंपनी मूलतः कमज़ोर है, जिसको लेकर बहुत उत्साह नहीं है, उसके शेयर में साल-दो साल, छह महीने का रुझान गिरने का है, उसे कभी नहीं खरीदना चाहिए, बल्कि उसे तब बेचना चाहिए जब वह महंगा चल रहा हो, किसी न किसी वजह से चढ़ गया हो। महंगे मजबूत शेयर को सस्ते में खरीदना और सस्ते कमज़ोर शेयर को महंगे में बेचना। यह अंतर्दृष्टि हमें बड़ी मेहनत से अपने अंदर विकसित करनी पड़ेगी। इसके लिए निरंतर हमें अपनी स्वभावगत कमियों, अपनी बौद्धिक व भावनात्मक वायरिंग से लड़ना पड़ेगा।

ट्रेडिंग में कामयाबी के लिए दो बुनियादी बातें हर किसी को समझ लेनी चाहिए। पहली यह कि बाज़ार ठीकठीक कैसे काम करता है, इसकी गहरी और व्यावहारिक समझ होनी चाहिए। यहां कौन, कब, कैसे खरीदता या बेचता है, इसे जानना जरूरी है। हम जब भी खरीद या बेच रहे हों तो हमें पता होना चाहिए कि सामने कौन बैठा है, हम सौदा किसके साथ कर रहे हैं। आमने-सामने के सौदे में यह साफ होता है। लेकिन शेयर बाज़ार में चूंकि सामनेवाला दिखता नहीं है, इसलिए इसकी समझ हासिल कर पाना बेहद मुश्किल है।

दूसरी बात यह है कि नियमों से कभी डिगना नहीं चाहिए। जो अनुशासन आपने तय कर लिया, उसका पालन किसी भी सूरत में होना ही चाहिए। किसी एक सौदे में अधिकतम दो फीसदी घाटा और कुल ट्रेडिंग पूंजी में छह फीसदी सेंध लगते ही पूरे महीने के लिए ट्रेडिंग रोक देने का अनुशासन है तो इसका पालन सख्ती से होना चाहिए। तब लालच या डर जैसी किसी भी भावना को अपने ऊपर हावी नहीं देना चाहिए। इन दो बातों पर अमल करेंगे और इस दौरान बराबर अपने मूल स्वभाव, सहज वृत्तियों, इनट्यूशन से लड़ते रहेंगे तो शायद ट्रेडिंग में कामयाबी से आपको कोई नहीं रोक पाएगा। अन्यथा, अब तक जो हुआ है, वह आगे भी होता रहेगा। न्यूटन का यह पहला नियम भी यही कहता है।

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