टिप्स नहीं, रिस्क संभालने में है सार

कस्तूरी कुंडली बसे, मृग ढूंढय वन मांहि। यही हाल ट्रेडिंग में कामयाबी का है। वित्तीय बाज़ारों से कमाने की सोचनेवाले सामान्य ट्रेडर टिप्स के चक्कर में कहां-कहां नहीं फिरते। टीवी चैनल देखते हैं। महीनों के हज़ारों लुटा देते हैं। लेकिन सब कुछ ठन-ठन गोपाल हो जाता है। इसलिए, क्योंकि ट्रेडिंग से कमाई का सूत्र खुद उनके पास है और वो है रिस्क का प्रबंधन। यह संभाल लिया तो बच्चे की बात भी शानदार टिप्स बन जाती है।

जी हां। आप चाहें तो आजमाकर देख लीजिए। निफ्टी-50 में शामिल कोई से 20 शेयर कागज़ पर लिखकर पर्चियां बना लें और घर के बच्चे से उनमें से भी कोई उठवा लें। फिर उस पर ट्रेडिंग करें। साथ ही रिस्क प्रबंधन का कड़ा अनुशासन पालन करें। आप पाएंगे कि महीना का 25,000 रुपए देकर आपने जो टिप्स की सेवा ली है, उससे ज्यादा आप शेयर बाज़ार से अनजान बच्चे की ‘सलाह’ से कमा ले रहे हैं।

हकीकत यह है कि ट्रेडिंग में जो भी ब्रोकर या संस्थाएं असल में कमाते हैं, वे कभी टिप्स का सहारा नहीं लेते; बल्कि उनकी कमाई को कामयाब बनाने के लिए हमारे-आप के बीच टिप्स का जाल फेंका जाता है क्योंकि उनके सौदों को पूरा करने के लिए सामने आ जाएं। यकीनन, वे भी भविष्य की अनिश्चितता झेलते हैं और उसके जोखिम को संभालकर ही कमा पाते हैं। आखिर क्या हैं जोखिम संभालने की रणनीतियां।

ट्रेडिंग में कामयाबी के लिए स्टॉक का चयन महत्वपूर्ण है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण है रिस्क का प्रबंधन। इसके दो मौलिक सिद्धांत हैं। पहला, किसी भी ट्रेड में अपनी पूंजी के एक निश्चित हिस्से से ज्यादा न लगाएं। दूसरा, किसी ट्रेड में उठाया जानेवाला रिस्क सारी पूंजी की तुलना में बहुत कम हो। इसको अपनाने के चार चरण हैं।

पहला चरण: शेयरों में निर्धारित निवेश का 5% से ज्यादा ट्रेडिंग में न लगाएं। कुल पूंजी दस लाख रुपए है तो 50,000 रुपए ही ट्रेडिंग में लगाएं। अगर जोखिम उठाने की क्षमता ज्यादा हो तो पूंजी का 5% से ज्यादा हिस्सा भी लगा सकते हैं।

दूसरा चरण: किसी भी ट्रेड में ट्रेडिंग पूंजी का 1% से ज्यादा हिस्सा दांव पर कतई न लगाएं। सीखने की शुरुआत में इसे 0.5% तक रखना ज्यादा मुनासिब होगा। मसलन, 50,000 रुपए में से 500 या 250 रुपए।

तीसरा चरण: रिस्क संभालने के लिए प्रत्येक ट्रेड में उसकी मात्रा निकालना आवश्यक है। जैसे, हमने दस लाख रुपए का 5% हिस्सा ट्रेडिंग के लिए रखा है तो हमारी ट्रेडिंग पूंजी हुई 50,000 रुपए। पहले से निर्धारित है कि इसका 1% से ज्यादा रिस्क किसी ट्रेड में नहीं उठाएंगे। 50,000 रुपए का 1% निकालने पर रकम बनती है 500 रुपए। इस तरह अनुशासन बना कि किसी भी ट्रेड में 500 से ज्यादा नहीं डुबाना चाहिए।

चौथा या आखिरी चरण: इसमें गिनते हैं कि किसी सौदे में चुनी गई कंपनी के कितने शेयर ट्रेडिंग के लिए जाने हैं। मान लीजिए, हमने एसबीआई को 160 पर खरीदना तय किया और पक्का स्टॉप-लॉस 155 रुपए का है। इस तरह एक शेयर पर 5 रुपए गंवाने का रिस्क है। हमारा रिस्क एक सौदे में 500 रुपए डुबाने का है तो हम एसबीआई के 100 (=500/5) शेयर खरीद सकते हैं।

याद रखें कि किसी ट्रेड में कितना धन लगाना है, यह उस ट्रेड में उठाए गए रिस्क की मात्रा से अलग है। हमने तय किया एसबीआई के सौदे में अधिकतम 500 रुपए डुबा सकते हैं। लेकिन वो सौदा तो 160 x 100 = 16,000 रुपए का हुआ है। हालांकि कुछ ट्रेडर ट्रेडिंग पूंजी को छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटकर ट्रेड करते हैं। रिस्क संभालने की इस पद्धति को पोजिशन साइज़िंग कहते हैं। साथ ही हम जिस तरह के स्विंग, मोमेंटम और पोजिशनल ट्रेड का सहारा लेते हैं, उसमें स्टॉप लॉस को शेयर के भाव की चाल के साथ बराबर बदलते जाने की पद्धति है जिसे पिरामिडिंग कहते हैं। इसी का एक स्वरूप रिवर्स पिरामिंडिंग का है। लेकिन फिर कभी विस्तार से। तब तक आप चाहें तो इंटरनेट पर सर्च करके आप अंग्रेज़ी में इसके बारे में जानकारी जुटा सकते हैं।

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