पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी ने हर तरफ कुकुरमुत्तों की तरह उगते जा रहे वित्तीय सलाहकारों पर फिर से अंकुश लगाने की कोशिश शुरू की है। ठीक चार साल पहले उसने इस बाबत बाकायदा एक प्रारूप रेगुलेशन जारी किया था जिस पर 31 अक्टूबर 2007 तक सबसे राय मांगी गई थी। इस बार उसने एक बहस पत्र जारी किया है, जिस पर सभी संबंधित पक्षों से 31 अक्टूबर 2011 तक प्रतिक्रियाएं मांगी गई हैं।
सबसे अहम बात यह है कि इस बार सेबी को लगता है कि वित्तीय सलाहकारों का नियंत्रण किसी स्वयं नियंत्रक संगठन (एसआरओ) को करना चाहिए। दूसरी बात यह है कि कई श्रेणियों को निवेश सलाहकार के नियमों से मुक्त करने का प्रस्ताव है। इसमें सीए व वकील से लेकर ब्रोकर व सब-ब्रोकर और वित्तीय अखबार या वेबसाइट तक शामिल हैं। लेकिन वित्तीय उत्पादों के एजेंट किसी भी सूरत में वित्तीय सलाहकार की भूमिका नहीं निभा सकते।
बहस पत्र में इस हकीकत को सामने रखा गया है कि इस समय वित्तीय उत्पादों के वितरण ही एजेंट व सलाहकार की भूमिका निभा रहे हैं। एजेंटों को एक तरफ कंपनियों से कमीशन मिलता है, दूसरी तरफ वे निवेशकों से सलाह देने की फीस भी लेते हैं। ऐसे में वे किसके हित का ख्याल रखेंगे? यह सवाल देवेंद्र स्वरूप कमिटी ने भी ‘वित्तीय सलाहकारों व वित्तीय शिक्षा के न्यूनतम समान मानक’ पर अपनी रिपोर्ट में उठाया था।
सेबी का सुझाव है कि जो भी व्यक्ति कस्टमर या निवेशक से रूबरू होता है, उसे सीधे-सीधे बताना चाहिए कि वह वित्तीय सलाहकार है या वित्तीय उत्पाद को पेश करनेवाली कंपनी का एजेंट। अगर वह सलाहकार है तो उसे निवेश सलाहकार रेगुलेशंस का पालन करना होगा। इसके लिए उसके पास उच्च स्तर की योग्यता होनी चाहिए। उसे अपनी सेवा की पूरी फीस निवेशक से मिलेगी। दूसरी तरफ एजेंट की कमाई का स्रोत कंपनी होगी और उसे खुद को वित्तीय सलाहकार के रूप में पेश करने से रोका जाना चाहिए।
निवेश की सलाह पूंजी बाजार के साथ ही बीमा, बैंकिंग व पेंशन उत्पादों तक ही हो सकती है। इसलिए निवेश सलाहकार की निगरानी के लिए अलग-अलग नियामक, मसलन रिजर्व बैंक, इरडा और पीएफआरडीए को भी प्रावधान करना होगा। लेकिन व्यावहारिक नियंत्रण कोई एसआरओ ही करेगा।
सेबी ने यह भी नोट किया है कि इस समय निवेश सलाहकार खुद को वेल्थ मैनेजर व प्राइवेट बैंकर जैसी तमाम संज्ञाओं से ‘विभूषित’ करते हैं। इससे उनकी भूमिका व जिम्मेदारी के बारे में काफी भ्रम पैदा होता है। इसलिए अब नियम बनाया जाएगा कि जो भी व्यक्ति निवेश सलाहकार के रूप में पंजीकृत नहीं है, वह किसी भी रूप में निवेश की सलाह नहीं दे सकता। साथ ही जिसने यह पंजीकरण प्रमाणपत्र हासिल कर लिया है, वह खुद को निवेश सलाहकार (इनवेस्टमेंट एडवाइजर) ही बताएगा, न कि वेल्थ मैनेजर या कुछ और।