हमारा पूंजी बाज़ार बम-बम कर रहा है। एनएसई दुनिया में पहले नंबर का डेरिवेटिव्स एक्सचेंज बन चुका है। लेकिन जिस श्रम की बूंद-बूंद से पूंजी बनती है, उसी श्रम बाज़ार की हालत खस्ता है। इसमें कम पढ़े-लिखे लोगों को काम मिल जाता है। लेकिन उच्च शिक्षा की अवहेलना होती है। हुआ यह कि अपने यहां 1990 के दशक के उत्तरार्ध में उच्च शिक्षा जमकर बढ़ी। इंजीनियरिंग कॉलेज खूब खुले ताकि आईटी इंजीनियरों की मांग पूरी की जा सके। इसी तरह मैनेजमेंट के उच्च शिक्षा संस्थान खुले ताकि फाइनेशियल बाज़ार और सेल्स से लेकर मानव संसाधन प्रबंधन से जुड़े प्रोफेशनल्स की मांग पूरी की जा सके। आम परिवारों ने लाखों खर्च कर इन संस्थानों में अपने बच्चों का दाखिला करवाया। लेकिन उन्हें देश में पर्याप्त काम नहीं मिला। जो अच्छे थे, वे विदेश निकल गए। बाकी बेरोज़गारों की बढ़ती फौज में शामिल हो गए। अब सोमवार का व्योम…
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