वोकहार्ट में चार चांद, काट लें चांदी

वोकहार्ट ने बीते महीने 22 मई को वित्त वर्ष 2011-12 के सालाना और चौथी तिमाही के नतीजे घोषित किए। पता चला कि मार्च तिमाही में उसे जबरदस्त घाटा हुआ है। स्टैंड-एलोन स्तर पर 69 करोड़ रुपए और सब्सिडियरी व सहायक इकाइयों को मिलाकर कंसोलिडेटेड स्तर पर 192 करोड़ रुपए। जबकि, साल भर पहले की मार्च तिमाही में उसे स्टैंड-एलोन रूप से 32 करोड़ रुपए और कंसोलिडेटेड रूप से 162 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ हुआ था। यही नहीं, इससे ठीक पहले दिसंबर 2011 की तिमाही में भी कंपनी का शुद्ध लाभ स्टैंड एलोन रूप से 116 करोड़ और कंसोलिडेटेड रूप से 213 करोड़ रुपए रहा था।

कमाल की बात यह है कि शुद्ध लाभ से इतने घाटे में आने के बावजूद वोकहार्ट का शेयर 22 मई से लेकर कल तक के महज तेरह कारोबारी सत्रों में 28.17 फीसदी बढ़ चुका है। 21 मई को इसका पांच रुपए अंकित मूल्य का शेयर बीएसई (कोड – 532300) में 665.60 रुपए पर बंद हुआ था, जबकि कल 7 जून को इसका बंद भाव 853.10 रुपए रहा है। इसी हफ्ते मंगलवार 5 जून को यह 882 रुपए पर पिछले 52 हफ्ते का ही नहीं, अब तक का सबसे ऊंचा स्तर हासिल कर चुका है। आप यकीन नहीं करेंगे कि यह शेयर इस साल के शुरू में 6 जनवरी 2012 को 52 हफ्ते के न्यूनतम स्तर 251.25 रुपए पर था है। इस तरह 6 जनवरी की तलहटी और 5 जून की चोटी के बीच वो 251 फीसदी से ज्यादा चढ़ चुका है।

आखिर, घाटे के दलदल में धंसी कंपनी के शेयर के इस तरह बढ़ जाने का सबब क्या है? पहली बात; नतीजों पर गौर करें तो मार्च 2012 की तिमाही में उसे कंसोलिडेट रूप से 192 करोड़ रुपए का घाटा इसलिए हुआ है क्योंकि उसे 450 करोड़ रुपए का प्रावधान गुडविल के नुकसान, पुराने कर्ज व देनदारियों को निपटाने और ऋणों की रीस्ट्रक्चरिंग पर करना पड़ा है। यह एक बार का खर्च है जो बार-बार नहीं होगा। विश्लेषकों का मानना है कि कंपनी का मुनाफा अपने अमेरिकी धंधे के दम पर नए साल में 25 फीसदी बढ़ जाएगा। उसकी कुल बिक्री में अमेरिकी बाजार का योगदान इस समय 41 फीसदी है, जबकि साल भर पहले यह 29 फीसदी हुआ करता था।

मार्च 2012 की तिमाही में भी कंपनी की कुल बिक्री में 32.2 फीसदी का इजाफा हुआ है। दिसंबर 2011 की तिमाही में भी उसकी बिक्री 27.1 फीसदी बढ़ी थी। अगर 450 करोड़ रुपए के एकमुश्त खर्च को निकाल दें तो उसका शुद्ध लाभ भी 57 फीसदी से ज्यादा बढ़ा है। अब भी उसका परिचालन लाभ मार्जिन (ओपीएम) 34.6 फीसदी के सम्मानजनक स्तर पर है। इन्हीं पक्षों के आधार पर अब भी वोकहार्ट के शेयर में निवेश की सलाहें आ रही हैं। जब यह शेयर 600 रुपए के आसपास चल रहा था, तब ब्रोकरेज फर्म फिनक्वेस्ट सिक्यूरिटीज ने इसे 950 रुपए के लक्ष्य के साथ खरीदने की सलाह दी थी। फिनक्वेस्ट अब भी इस लक्ष्य पर कायम है। वहीं टेलिविजन चैनल ईटी नाऊ पर बराबर दिखनेवाले एनालिस्ट अश्विनी गुजराल ने इसके 1000 रुपए तक पहुंचने का दावा किया है।

मालूम हो कि आज की तारीख में वोकहार्ट की तीन-चौथाई बिक्री विदेश से आती है। 2011-12 में अमेरिका में उसका धंधा 78 फीसदी, ब्रिटेन में 13 फीसदी और बाकी यूरोप में केवल 7 फीसदी बढ़ा है। भारत में उसके ब्रांडेड फॉर्मूलेशन पहले से 13 फीसदी ज्यादा बिके हैं। उसका परिचालन लाभ (EBITDA) 2011-12 में 57 फीसदी बढ़कर 1440 करोड़ रुपए पर जा पहुंचा है। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि कंपनी के धंधे में हो रही इस बरक्कत के चलते ही उसका शेयर इतना बढ़ रहा है।

मार्च तिमाही के घाटे के बावजूद कंपनी का कंसोलिडेटेड ईपीएस (प्रति शेयर मुनाफा) फिलहाल 59.90 रुपए है और उसका शेयर इससे 14.24 गुने या पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। वहीं, इसकी समकक्ष कंपनियों में सनफार्मा का शेयर 23.17, डॉ. रेड्डीज लैब का 19.26 और सिप्ला का शेयर 25.90 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। विश्लेषक इसीलिए अब भी वोकहार्ट में बढ़ने की गुंजाइश देख रहे हैं।

सोचिए जो कंपनी चार साल पहले 2008 में भयंकर संकट में फंसी हुई थी, यहां तक कि 2009 में ऋणदाता अपने विदेशी मुद्रा बांडों की वसूली के लिए उसे बॉम्बे हाईकोर्ट में घसीट ले गए थे, वो महज तीन सालों में फिर से विकास की डगर पकड़ चुकी है। इस बीच कंपनी ने मुंबई में अपना अस्पताल बेच दिया। वह अपना न्यूट्रिशन बिजनेस फ्रांस की डेयरी कंपनी डोन (Danone) को बेचने का करार कर चुकी है। 1500 करोड़ रुपए की यह डील इस साल पूरी हो जाएगी। कंपनी को सितंबर 2009 में 11 करोड़ डॉलर के एफसीसीबी (विदेशी मुद्रा परिवर्तनीय बांड) अदा करने थे। इनमें से उस पर अब ब्याज समेत 4 करोड़ डॉलर (करीब 220 करोड़ रुपए) ही बकाया हैं जिसे कंपनी ने अगस्त 2012 तक चुकाने का लिखित वचन हाईकोर्ट में दे रखा है।

साल भर पहले तक कंपनी पर 3850 करोड़ रुपए का कर्ज था। वह इसे अब काफी हल्का कर चुकी है। फिलहाल उसकी लंबे समय की उधारी 2706 करोड़ रुपए पर आ गई है। कंपनी के पास इस समय 700 करोड़ रुपए का कैश व बैंक बैलेस है। अगर इसे निकाल दें तो उस पर ऋण का कुल बोझ 2000 करोड़ रुपए के आसपास निकलता है। कंपनी के चेयरमैन हबीब खोराकीवाला के मुताबिक, “वोकहार्ट की वित्तीय सेहत अब एकदम भली-चंगी हो चुकी है। पिछले दो सालों में हमारा ऋण-इक्विटी अनुपात 5.5:1 से घटकर 1.9:1 पर आ चुका है।” इसी के साथ कंपनी की ब्याज अदायगी भी घटती जा रही है।

जाहिर है कि निवेशकों के बीच कंपनी के डूबने का डर अब मिट चुका है। ऊपर से कंपनी ने हाल ही में पार्किन्सन मर्ज की नई दवा बाजार में उतारी है। तीसरे, न्यूट्रिशन बिजनेस की बिक्री से मिलनेवाले 1500 करोड़ रुपए से उसका ऋण-बोझ काफी हल्का हो जाएगा। इस तरह नकारात्मक से अब सब कुछ सकारात्मक दिखने के चलते वोकहार्ट का शेयर बढ़ रहा है। निवेशक इसे खरीद रहे हैं। लेकिन कौन हैं ये निवेशक?

कंपनी की 55 करोड़ रुपए की इक्विटी में विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) का हिस्सा दिसंबर 2011 तक 1.32 फीसदी था। मार्च 2012 तक यह हिस्सा 3.15 फीसदी हो चुका है। इस तरह वे कंपनी में अपना निवेश करीब ढाई गुना बढ़ा चुके हैं। दुखद यह है कि इस दौरान डीआईआई (घरेलू निवेशक संस्थाएं) अपना निवेश 6.12 फीसदी से घटाकर 4.16 फीसदी पर ला चुकी हैं। कंपनी की 73.64 फीसदी इक्विटी अब भी प्रवर्तकों के पास है। इस तरह फ्लोटिंग स्टॉक कम है तो जरा-सी हलचल वोकहार्ट के शेयर को उछालती रहती है।

हमारी सलाह है कि आम निवेशकों को वोकहार्ट में निवेश का आधा हिस्सा बेचकर निकल लेना चाहिए ताकि बाकी आधा निवेश उनके लिए मुफ्त का पड़ जाए। जैसे, 200 शेयरों में से 100 शेयर बेच दिए तो चूंकि शेयर भाव पिछले कुछ महीनों में दोगुना हो चुका है, इसलिए बाकी 100 शेयर मुफ्त के पड़ जाएंगे। नहीं तो उन्हें स्टॉप प्रॉफिट का तरीका अपनाना चाहिए। यानी, वोकहार्ट मान लीजिए बढ़ने का सिलसिला तोड़कर गिरने लगे और गिरता ही जाए तो 25 फीसदी गिरने यानी 650 रुपए पर पहुंचने से पहले हमें बाकी शेयर भी बेचकर निकल लेना चाहिए।

इसकी कुछ बड़ी ठोस वजहें हैं। 22 मई से लेकर अब तक वोकहार्ट में हो रहे सौदों में डिलीवरी का स्तर बहुत कम है। 21 मई को एनएसई में ट्रेड हुए इसके कुल शेयरों में से 38 फीसदी डिलीवरी के लिए थे। लेकिन 22 मई को यह अनुपात घटकर 9.40 फीसदी पर आ गया। 30 मई को ट्रेड हुए महज 7.60 फीसदी डिलीवरी के लिए थे। कल 7 जून को यह अनुपात 19.50 फीसदी का रहा है। बीएसई में भी ट्रेडिंग का यही पैटर्न रहा है। कहने का मतलब यह कि जिन निवेशकों को इसमें निवेश करना था, वे 21 मई तक इसे खरीद चुके हैं। अब इसे चढ़ाकर निकालने की तैयारी है। इसलिए इंट्रा-ड्रे ट्रेडिंग के दम पर इसका झुनझुना जोर से बजाया जा रहा है। ऐसे में समझदारी यही होगी कि ज्यादा लालच में न पड़कर निवेश का एक हिस्सा बेचकर बराबर मुनाफा काटते रहा जाए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *