बॉम्बे हाईकोर्ट ने आयकर विभाग के खिलाफ दायर ब्रिटिश कंपनी वोडाफोन की वह याचिका खारिज कर दी है जिसमें उसने कहा था कि विभाग को भारतीय सीमा से बाहर हुए विलय के सौदे पर टैक्स लगाने का कोई अधिकार नहीं है। कोर्ट ने बुधवार को सुनाए गए अंतिम फैसले में कहा है कि अधिकार क्षेत्र के आधार पर आयकर विभाग के आदेश को रोका नहीं जा सकता। अब वोडाफोन को करीब 12,000 करोड़ रुपए का टैक्स अदा करना पड़ेगा। हां, कोर्ट ने इतना जरूर कहा है कि कंपनी आयकर विभाग से पेनाल्टी न लगाने की मांग कर सकती है क्योंकि वह अभी तक सचमुच यही मान रही थी कि इस सौदे में स्रोत पर टैक्स (टीडीएस) काटने की उसकी कोई जिम्मेदारी नहीं थी।
बता दें कि यह वाक्या तीन साल से ज्यादा पुराना है, जब 8 मई को 2007 को जब ब्रिटिश कंपनी वोडाफोन ने ब्रिटेन के ही अधिकार क्षेत्र में आनेवाले केमैन द्वीप (कैरीबियन सागर) में पंजीकृत कंपनी हचिसन टेलिकम्युनिकेशंस इंटरनेशनल लिमिटेड (एचटीआईएल) को 11.2 अरब डॉलर में खरीद लिया। लेकिन उस वक्त एचटीआईएल की भारत में सक्रिय मोबाइल सेवाप्रदाता कंपनी हचिसन एस्सार में 66.98 फीसदी हिस्सेदारी थी और उसका ग्राहक आधार भी काफी बड़ा था। इसी के चलते उसे वोडाफोन इतनी ज्यादा कीमत दे रही थी। भारतीय कर अधिकारियों ने इस अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू होने के वक्त ही 23 मार्च 2007 को हचिसन एस्सार के जरिए वोडाफोन एस्सार को पत्र भेजकर सूचित कर दिया था कि उसे इस सौदे पर भारत में टैक्स देना होगा और उसे 2.6 अरब डॉलर का टीडीएस काटकर हचिसन को बाकी रकम देनी होगी।
लेकिन वोडाफोन का तर्क था कि यह सौदा दो विदेशी कंपनियों के बीच हुआ है और वार्ता से लेकर इसे अंजाम तक पहुंचाने का काम विदेश में हुआ है। साथ ही इसमें भारत में स्थित पूंजी आस्तियों का हस्तांतरण नहीं हुआ है। इसलिए उसकी कोई कर देनदारी नहीं बनती। दूसरे, भारतीय आयकर विभाग का अधिकार क्षेत्र देश की सीमाओं के भीतर है। इसलिए यह दो विदेशी कंपनियों के बीच हुए सौदे पर टैक्स नहीं लगा सकता। लेकिन आयकर विभाग का तर्क था कि हचिसन ने भारत ने निवेश से ही अपनी संपत्ति बढ़ाई है, इसलिए वह आयकर कानून 1961 के तहत इस कमाई पर भारत में टैक्स देने को बाध्य है।
मामला उसी समय से अदालतों के चक्कर काट रहा है। आखिरी दौर में बुधवार को सुनाए गए अपने फैसले में बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस धनंजय चंद्रचूड और जे पी देवधर ने साफ कह दिया है कि इस सौदे का पर्याप्त ताल्लुक भारत से रहा है और आयकर विभाग को इस पर टैक्स लगाने का पूरा हक बनता है। कोर्ट ने आयकर विभाग से कहा है कि वह अपना आदेश आठ हफ्ते से पहले नहीं सुनाएगा। इस बीच वोडाफोन पेनाल्टी माफ करने की फरियाद कर सकती है। कानूनी हलको में अदालत के इस फैसले को उन विदेशी कंपनियों के लिए धक्का माना जा रहा है जो भारतीय कपनियों के अधिग्रहण की कोशिश में लगी हैं।
बता दें कि वोडाफोन ग्रुप के लिए भारत की बड़ी अहमियत है। हालांकि वित्त वर्ष 2009-10 में उसकी कुल आय का 7 फीसदी हिस्सा ही भारत से आया था। लेकिन यहां उसके 10 करोड़ से ज्यादा ग्राहक हैं जो दुनिया भर में उसके कुल ग्राहकों का तकरीबन एक तिहाई हिस्सा है। कंपनी ने मई में ही सरकार को 3-जी स्पेक्ट्रम के लिए 2.5 अरब डॉलर दिए हैं। अब इसके ऊपर से 2.6 अरब डॉलर का टैक्स देना उसके लिए काफी भारी पड़ेगा।
इनकम टेक्स एक्ट के सेक्शनों के हवाले से थोड़ा और समझाइए।