बायोकॉन में किरण हैं तो काहे का डर

गिरते हैं घुड़सवार ही मैदाने जंग में। किरण मजूमदार-शॉ की कंपनी बायोकॉन को करीब हफ्ते भर पहले तगड़ा झटका लगा, जब फाइज़र ने उसके बनाए इंसूलिन उत्पादों को अमेरिका में बेचने का करार रद्द कर दिया। दोनों की तरफ से जारी साझा बयान में कहा गया, “बायोसिमिलर बिजनेस में अपनी अलग प्राथमिकताओं के चलते कंपनियां इस नतीजे पर पहुंची हैं कि स्वतंत्र रूप से आगे बढ़ने में ही उनका सर्वोपरि हित है।” धंधे में रिश्ते बनते हैं, करार होते हैं, टूट जाते हैं। क्या फर्क पड़ता है? वह भी तब, जब कंपनी की लगाम किरण मजूमदार-शॉ जैसे कुशल घुड़सवार के हाथों में हो।

12 मार्च को फाइज़र के साथ करार के टूट जाने के बाद बायोकॉन का शेयर लगातार गिरता जा रहा है। इस हफ्ते सोमवार, 19 मार्च को यह नीचे में 235.80 रुपए तक चला गया जो 52 हफ्ते का इसका न्यूनतम स्तर है। कल भी इसका पांच रुपए अंकित मूल्य का शेयर इसी के इर्दगिर्द बीएसई (कोड – 532523) में 238.40 रुपए और एनएसई (कोड – BIOCON) में 238.55 रुपए पर बंद हुआ है। जाहिरा तौर पर इस स्टॉक को लेकर बाजार में सेंटीमेंट खराब चल रहा है। हो सकता है कि एकाध दिन और गिरे। ए ग्रुप का शेयर है, बीएसई-200 में शामिल है। इसलिए इस पर कोई सर्किट लिमिट नहीं है। किसी भी दिन कितना भी घट-बढ़ सकता है। लेकिन बढ़ा तो बढ़ता ही जाएगा। याद रखें, भावुक माहौल बुद्धिमानों के लिए बड़े काम का होता है।

किरण मजूमदार-शॉ ने करार टूटने के बाद कहा भी था कि, “इस साझेदारी के खत्म होने से खास फर्क नहीं पड़ेगा और बायोकॉन दुनिया में फाइज़र की जगह कोई दूसरा सहयोगी तलाश लेगी।” इसलिए हमारा सुझाव है कि बायोकॉन में निवेश का यह अच्छा मौका है। वैसे भी, कुशल नेतृत्व वाली किसी कंपनी के शेयर अगर किसी तात्कालिक धक्के की वजह से 52 हफ्ते के न्यूनतम स्तर पर पहुंच जाएं तो उनमें निवेश करने का जोखिम उठा ही लेना चाहिए। बता दें कि बायोकॉन रिसर्च आधारित बायोफार्मा उत्पाद बनाती है और बायोसिमिलर दवाएं बायोफार्मा उत्पादों के वो रूप हैं जिन्हें मूल कंपनी के पेटेंट के खत्म हो जाने के बाद कोई दूसरी कंपनी बनाती है। इंसूलिन उत्पादों पर ऐसे कई पेटेंट साल 2015 में खत्म हो रहे हैं।

सच यह भी इस करार के टूटने से बायोकॉन को धन का कोई खास नुकसान नहीं होगा। अक्टूबर 2010 में हुए करार में तय हुआ था कि बायोकॉन बायोसिमिलर इंसूलिन उत्पादों क परीक्षण, निर्माण व सप्लाई का जिम्मा संभालेगी, जबकि फाइज़र के पास दुनिया भर में इन उत्पादों को बेचने का विशिष्ट अधिकार होगा। इसके लिए फाइज़र ने तत्काल 10 करोड़ डॉलर बायोकॉन को दिए थे और 10 करोड़ डॉलर अलग से एस्क्रो खाते में डाल दिए गए थे। करार तोड़ने पर बनी सहमति में तय हुआ है कि बायोकॉन यह रकम अपने पास रख सकती है। ऊपर से उसे सेटलमेंट फीस भी दी जाएगी। बायोकॉन को कुछ निश्चित प्रगति के बाद 15 करोड़ डॉलर और मिलने थे। यह रकम भी फाइज़र से बतौर हर्जाना हासिल कर सकती है।

निश्चित रूप से किरण मजूमदार शॉ को अब दुनिया के बाजारों में अपनी पैठ बढ़ाने के लिए नए साझेदार तलाशने पड़ेंगे। और, यकीन है कि वे ऐसा कर लेंगी। साल 2008 में बायोकॉन ने जर्मन दवा मार्केटिंग कंपनी एक्सिकॉर्प की इक्विटी का बहुलांश हासिल कर लिया था। लेकिन फाइज़र से करार के बाद इसका कोई मतलब नहीं रह गया तो बायोकॉन एक्सिकॉर्प में अपना हिस्सा बेचकर निकल गई। इतनी तेजी से फैसले करनेवाली किरण मजूमदार-शॉ और उनकी कंपनी को नया सहयोगी तलाशने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा।

बायोकॉन ने वित्त वर्ष 2010-11 में 1566.62 करोड़ रुपए की बिक्री पर 459.25 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया था। हालांकि चालू वित्त वर्ष 2011-12 की दिसंबर तिमाही में उसकी स्टैंड-एलोन बिक्री 25.69 फीसदी घटकर 372.80 करोड़ रुपए और शुद्ध लाभ 69.41 फीसदी घटकर 64.73 करोड़ रुपए रह गया। लेकिन इसके बावजूद दिसंबर तक के बारह महीनों का उसका ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 14.06 रुपए है और उसका शेयर फिलहाल 16.95 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। साल भर पहले जो शेयर 30 से ज्यादा के पी/ई पर ट्रेड हो रहा था, उसमें मौजूदा स्तर पर निवेश करना यकीकन समझदारी भरा फैसला होगा।

कंपनी की 100 करोड़ रुपए की इक्विटी में प्रवर्तकों का हिस्सा 60.91 फीसदी है। एफआईआई के पास इसके 3.52 फीसदी और डीआईआई के पास 10.43 फीसदी शेयर हैं। इन दोनों ही संस्थागत निवेशकों ने दिसंबर तिमाही में अपनी हिस्सेदारी घटाई है। शायद इन्हें फाइज़र से डील के टूटने का अंदेशा रहा हो। लेकिन आम निवेशकों को बराबर लाभांश देनेवाली इस कंपनी में घुसने का यह मौका कतई नहीं चूकना चाहिए। लेकिन निवेश करें, कुछ दिन पर इस पर नजर रखने के बाद। बाकी मर्जी आपकी।

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