मोदी सरकार अब भी शेखी बघारने से बाज नहीं आ रही, जबकि उसके विदेशी निवेश आधारित विकास मॉडल के पैरों तले ज़मीन खिसक चुकी है। रिजर्व बैंक के मुताबिक भारत वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान नए प्रोजेक्ट में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को लेकर अमेरिका, ब्रिटेन व फ्रांस के बाद चौथा पसंदीदा देश रहा है। वित्त मंत्रालय इसका ढोल जमकर बजा रहा है। लेकिन जैसे ही हम सकल निवेश के बजाय शुद्ध निवेश पर आते हैं तो स्थिति चिंताजनक हो जाती है। सकल विदेशी निवेश से विदेशी कंपनियों की भारत से धन निकासी, विदेशी निवेशकों के भारतीय कंपनियों में हिस्सेदारी बेचने के साथ भारतीय कंपनियों द्वारा विदेश में किए गए निवेश को घटा दें तो शुद्ध निवेश निकलता है। भारत में यह शुद्ध विदेशी निवेश 2023-24 में 1010 करोड़ डॉलर रहा था, जबकि 2024-25 में 96.5% घटकर मात्र 35.3 करोड़ डॉलर रह गया। यह साफ-साफ दिखाता है कि देश में विदेशी ही नहीं, देशी निवेशकों का भी भरोसा भयंकर तेज़ी से घटा है। इसका एक लक्षण और है कि प्रमुख उद्योग क्षेत्रों में लगाई निजी पूंजी को क्षमता इस्तेमाल के घटते स्तर से परेशानी हो रही है। यह तब हो रहा है, जब मूडीज ने भारत की संप्रभु रेटिंग को स्थिर आउटलुक के साथ बीएए3 पर रखा हुआ है जो निवेश का न्यूनतम ग्रेड है। इससे नीचे खिसकना खतरनाक है। अब मंगलवार की दृष्टि…
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