हमारा जो जीडीपी या अर्थव्यवस्था मार्च 2024 में खत्म वित्त वर्ष 2023-24 में 8.2% की शानदार गति से बढ़ी थी, उसकी विकास दर ठीक तीन महीने बाद जून 2024 में खत्म तिमाही में घटकर 6.7% पर आ गई! यह क्यों हुआ, क्यों यह हुआ? हालांकि सरकारी अर्थशास्त्री इस विकास दर को भी ‘रोबस्ट’ बता रहे हैं। कभी सरकार के आलोचक रहे भारतीय स्टेट बैंक के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष ने अपने 800-1000 शब्दों के ताज़ा लेख में जून तिमाही की आर्थिक प्रगति के विभिन्न पहलुओं को कम से दस बार ‘रोबस्ट’ बताया है। उनके कायाकल्प से प्रभावित होकर सरकार उन्हें 16वें वित्त आयोग का सदस्य बना चुकी है। घोष जैसे तमाम अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इस बार विकास दर इसलिए घटी है क्योंकि मई में आम चुनावों की वजह से सरकार के हाथ बंधे हुए थे और वो खुलकर खर्च नहीं कर पाई। लेकिन असली सवाल तो यही है कि क्या सरकार पर देश, जीडीपी और अर्थव्यवस्था की इतनी निर्भरता ठीक है कि चंद महीने उसके न खर्च करने पर विकास दर सीधे 1.5% घट जाए? कब तक सरकारी खर्च से जीडीपी के गुब्बारे को फुलाकर रखा जाएगा? जब तक निजी निवेश और आम लोगों की खपत नहीं बढ़ती, तब तक अर्थव्यवस्था में रवानगी कैसे आ सकती है? अब मंगलवार की दृष्टि…
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