दुनिया का संतुलन अमेरिका व यूरोप जैसे धनी देशों के बजाय उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों की तरफ झुक रहा है। इसका साफ सबूत है कि सोल में शुक्रवार को समाप्त हुए जी-20 शिखर सम्मेलन में सर्वसम्मति से तय किया गया है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) में उभरते देशों का वोटिंग अधिकार 6 फीसदी से ज्यादा बढ़ा दिया जाएगा। दो दिन के इस सम्मेलन में आईएमएफ को इस तरह आधुनिक बनाने का फैसला किया गया ताकि वह विश्व अर्थव्यवस्था में आए बदलावों का आईना बनें और तेजी से उभरते व विकासशील देशों का उसमें ज्यादा प्रतिनिधित्व हो।
सम्मेलन के बाद जारी सोल एक्शन प्लान में कहा गया है कि, “कोटा व संचालन संबंधी व्यापक सुधारों से आईएमएफ की वैधता, विश्वसनीयनता और प्रभावोत्पादकता बढ़ेगी। इससे यह वैश्विक वित्तीय स्थायित्व व विकास को गति देनेवाला और ज्यादा मजबूत संस्थान बन जाएगा।” बता दें कि जी-20 देशों के वित्त मंत्री कुछ दिन पहले ही आईएमएफ में उभरते देशों को 6 फीसदी से ज्यादा कोटा देने का प्रस्ताव पास कर चुके हैं। शुक्रवार को इसे इन देशों के प्रमुखों ने भी मंजूर कर लिया। जी-20 में भारत, चीन, ब्राजील, रूस, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन व जापान समेत 19 देशों के अलावा यूरोपीय संघ को अलग से शामिल किया गया है।
गौरतलब है कि आर्थिक संकट के दौर से गुजरती विश्व अर्थव्यवस्था अभी तक पटरी पर नहीं आ पाई है। जहां देशों के बीच आपसी असंतुलन उभर गए हैं, वहीं देशों के भीतर भी वित्तीय सेवाओं की पहुंच सिमटी हुई है। नोट करने की बात यह है कि जी-20 शिखर सम्मेलन ने बाकायदा एक प्लान तैयार किया है जिसके जरिए वित्तीय समावेश को बढ़ाने का संकल्प लिया गया है। वित्तीय समावेश के साथ एसएमई फाइनेंस को भी मिलाया गया है। इस तरह वैश्विक साझेदारी के लिए बने फाइनेशियल एक्शन प्लान में तय किया गया है कि वित्तीय सेवाओं की पहुंच बढ़ाई जाएगी और गरीब परिवारों व छोटे व मध्यम उद्योगों के लिए उपबल्ध अवसरों का विस्तार किया जाएगा।
लेकिन जी-20 समूह के देशों के बीच व्यापार असंतुलन पर कोई साफ सहमति नहीं बन पाई। अमेरिका ने प्रस्ताव रखा था कि किसी भी देश के चालू खाते के अधिशेष को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के चार फीसदी तक की सीमा में बांध दिया जाए। लेकिन चीन ने इस प्रस्ताव का यह कहते हुए पुरजोर विरोध किया है कि इस उपाय से वैश्विक आर्थिक असंतुलन दूर नहीं होगा और उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए यह अनुचित है। चीन का कहना था कि सभी के लिए एक विशेष लक्ष्य रखना व्यवहारिक नहीं है क्योंकि जी-20 के सदस्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं के बीच व्यापक भिन्नता है। जी-20 की अगली बैठक 2011 की पहली छमाही में फ्रांस में होगी।