अनिल: नाम है अभी नज़रों से गिरा

वैसे तो नाम में कुछ नहीं रखा। लेकिन जानकर आश्चर्य हुआ कि अनिल नाम की भी एक नहीं, दो लिस्टेड कंपनियां हैं। इनमें से एक है अनिल लिमिटेड जिसका नाम करीब साल भर पहले 22 सितंबर 2010 तक अनिल प्रोडक्ट्स लिमिटेड हुआ करता था। अहमदाबाद की कंपनी है। किसी समय इसका वास्ता अरविंद मिल्स वाले लालभाई समूह से हुआ करता था। अब नहीं है। 1939 में कॉर्न वेट मिलिंग के धंधे से शुरुआत की थी। अब तमाम तरह के स्टार्च से लेकर डेक्सट्रोज मोनोहाइड्रेट, लिक्विड ग्लूकोज, कॉर्न सिरप और सोर्बीटॉल जैसे फार्मा उत्पाद तक बनाने लगी है। उसके उत्पाद टेक्सटाइल, कागज, फूड व बेवरेज और दवा व रसायन उद्योग में इस्तेमाल होते हैं।

कंपनी के शेयर केवल बीएसई (कोड – 532910) में लिस्टेड हैं। कंपनी ने पिछले शुक्रवार को ही जून 2011 तिमाही के नतीजे घोषित किए हैं। इनमें मुताबिक चालू वित्त वर्ष 2011-12 की पहली तिमाही में कंपनी की आय 27.57 फीसदी बढ़कर 106.41 करोड़ से 135.75 करोड़ रुपए और शुद्ध लाभ 29.61 फीसदी बढ़कर 8.83 करोड़ रुपए से बढ़कर 11.44 करोड़ रुपए हो गया है। बीते पूरे वित्त वर्ष 2010-11 में कंपनी ने 505.84 करोड़ रुपए की आय पर 40.25 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया था और उसका ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 41.22 रुपए था। जून तिमाही के नतीजों के बाद उसका ठीक पिछले बारह महीनों (टीटीएम) का ईपीएस 42.6 रुपए हो गया है।

कंपनी के शेयर ने पिछले ही महीने 25 जुलाई को 349 रुपए पर 52 हफ्ते का शिखर बनाया है। उसका न्यूनतम स्तर भी इसी साल 2 फरवरी 2011 का है जब वह 175.50 रुपए तक गिर गया था। इधर 12 अगस्त को नतीजों की घोषणा के दिन उसका शेयर 289 तक जाने के बाद 278 रुपए पर बंद हुआ था। लेकिन उसके बाद मुनाफावसूली चलने लगी तो यह गिरते-गिरते कल 18 अगस्त को 261 तक जाने के बाद 263.95 रुपए पर बंद हुआ है।

इसे टीटीएम ईपीएस से भाग करें तो पता चलता है कि यह शेयर अभी 6.196 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। पिछले साल अगस्त के बाद से यह उसका खुद का न्यूनतम पी/ई अनुपात है। अधिकतम पी/ई पिछले महीने 14.84 का रहा है। एक बात समझ लें कि पी/ई अनुपात का मतलब सिर्फ इतना होता है कि किसी खास वक्त बाजार उस कंपनी को कितना भाव दे रहा है। ज्यादा ज्यादा पी/ई का मतलब वह बाजार की निगाह में ऊंचे पायदान पर है और कम पी/ई का मतलब कि फिलहाल बाजार ने उसे नजरों से गिरा दिया है। साफ है कि इस समय अनिल लिमिटेड अच्छे नतीजों व जमे-जमाए धंधे के बाद बाजार की नजरों में थोड़ा नीचे आ गई है।

इसकी एक वजह शायद कंपनी के भीतर प्रवर्तकों को 33.80 करोड़ रुपए के प्रेफरेंस शेयर देने और पूंजी संरचना में बदलाव के ताजा प्रस्ताव हैं। कंपनी ने निदेशक बोर्ड ने 12 अगस्त को अपनी बोर्ड मीटिंग में तय किया है कि प्रवर्तकों को 100 रुपए मूल्य के रिडीम किये जानेवाले कुल 33.80 करोड़ रुपए मूल्य के प्रेफरेंस शेयर दिए जाएंगे। साथ की कंपनी की 10 करोड़ रुपए की अधिकृत शेयर पूंजी में से 5 करोड़ रुपए की पूंजी को 100 रुपए के पांच लाख शेयरों में बांटकर वर्गीकृत किया जाएगा। ये प्रस्ताव कंपनी के शेयरधारकों की सभा में पारित होने के बाद ही स्वीकार किए जाएंगे। देश की हर लिस्टेड कंपनी को अपने नीतिगत फैसलों में इस तरह का लोकतंत्र अपनाना ही पड़ता है। यह अलग बात है कि कम जानकारी व जुड़ाव के अभाव के चलते शेयरधारक ज्यादातर प्रवर्तकों की हां में हां ही मिलाते रहते हैं।

कंपनी की मौजूदा चुकता पूंजी 9.77 करोड़ रुपए है जो दस रुपए अंकित मूल्य के शेयरों में विभाजित है। इसका 31.15 फीसदी पब्लिक और 68.85 फीसदी प्रवर्तकों के पास है। पब्लिक के हिस्से में से एफआईआई के पास कुछ नहीं और डीआईआई के पास कुछ नहीं के बराबर 0.07 फीसदी शेयर हैं। कंपनी के कुल शेयरधारकों की संख्या 13,755 है। इनमें से 13,554 शेयरधारकों का निवेश एक लाख रुपए से कम है और उनके पास कंपनी के 17.48 फीसदी शेयर हैं। 23 शेयरधारकों का निवेशक एक लाख रुपए से ज्यादा है और उनके पास कंपनी के 7.53 फीसदी है। इनमें से सबसे बडी शेयर है समीक्षा मार्केटिंग प्रा. लिमिटेड नाम की फर्म, जिसके पास कंपनी के 1.31 फीसदी शेयर हैं।

आप कहेंगे कि इतना तो ठीक है, आगे क्या? आगे यह कि मूलतः स्टार्च और उसके डेरिवेटिव उत्पादों में लगी बी ग्रुप की इस कंपनी पर अभी नजर रखी जानी चाहिए। निवेश थोड़ा रुककर ही किया जाना चाहिए। वैसे भी, 3000 से ज्यादा ट्रेड होनेवाली लिस्टेड कंपनियों में से हर कंपनी सभी के निवेश के लिए नहीं होती। आप बाजार में जाकर हर माल थोड़े ही खरीद लेते हैं? हां, वेरायटी मिले तो ग्राहक के लिए अच्छा ही रहता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *