हमारी ही छाप

दुनिया के हर नए-पुराने विचार पर इंसान की छाप है। जिस तरह सुदूर पहाड़ों से धारा के साथ बहता आ रहा पत्थर नीचे पहुंचकर शिव बन जाता है उसी तरह इंसानी विचार भी एक दिन ईश्वरीय बन जाते हैं।

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