भारत की अध्यक्षता में हुए जी-20 के आयोजन को जनता का आयोजन बता दिया जाए तो इससे दुनिया या इसके 20 सदस्यों को क्या मिल जाएगा? लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे ‘जनता का उत्सव’ और भाजपा ने जनता का जी-20 करार दिया है। क्या देश के 60 शहरों में जी-20 के आयोजन करा देना उसे जनता का उत्सव बना देता है? दिल्ली के प्रमुख आयोजन से दिल्लीवासियों को जिस तरह तीन दिन तक दूर रखा गया, वैसा ही बाकी 60 शहरों में हुआ होगा। इन आयोजनों पर सरकारी खजाने से करोड़ों रुपए इसलिए बहाए गए ताकि प्रधानमंत्री मोदी और उनकी भाजपा इसे 2024 के लोकसभा चुनावों में भुना सके। क्या शिखर सम्मेलन में आए अतिथियों को सोने-चांदी के बर्तनों में सावां-कोदो जैसे मिलेट खिला देने से वो जनता का जी-20 बन गया? किसी समय सावां-कोदो हद दर्जे के गरीबों को भोजन था। लेकिन आज वो बेहद अमीरों का भोजन है। गांव के किसान इसे उगाते नहीं, न ही इनकी खेती अब आसान है। मुठ्ठी भर कॉरपोरेट ये अनाज उगा रहे हैं और मोदी सरकार ने केवल इन्हीं के व्यंजन परोसकर उनका बाज़ार बढ़ाने का काम किया है। अब शुक्रवार का अभ्यास…
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