हमारे गृह मंत्री अमित शाह हवा-हवाई प्रचार के गुब्बारे में छेद करने में माहिर हैं। दस साल पहले जब हर तरफ प्रधानमंत्री बन चुके नरेंद्र मोदी का जलवा-जलाल छाया हुआ था, तब उन्होंने 5 फरवरी 2015 को एबीपी न्यूज़ पर प्रसारित एक इंटरव्यू में कह दिया कि मोदीजी ने अपनी चुनाव सभाओं में हर किसी के एकाउंट में 15 लाख डालने की जो बात कही थी, वो एक जुमला थी। अभी पिछले हफ्ते शुक्रवार को उन्होंने अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष के मौके पर मुंबई में आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में जीडीपी के गुब्बारे की हवा निकाल दी। अमित शाह देश के सहकारिता मंत्री भी है। इस नाते सम्मेलन में अपने अध्यक्षीय भाषण में उन्होंने कहा, “देश सिर्फ जीडीपी के दम पर सशक्त नहीं हो सकता। हमारे 130-140 आबादी वाले देश में जीडीपी तो बढ़नी ही चाहिए, और तेज़ी से बढ़नी चाहिए। परंतु सभी को रोज़गार भी मिलना चाहिए।” इस हकीकत से कोई इनकार नहीं कर सकता कि मोदीराज में जीडीपी बढ़ने की तमाम हवाबाज़ी के बावजूद रोज़गार की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। जनवरी 2019 में राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय (एनएसओ) के आवधिक श्रमबल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) की रिपोर्ट में उजागर हुआ कि 2017-18 में देश में बेरोजगारी की दर 45 साल के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गई है तो हंगामा मच गया। लीपापोती के बाद सब ॐ शांतिः हो गया। अब सोमवार का व्योम…
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