एडीएफ फूड्स: छोटी, पर धंधा धमाल

एडीएफ फूड्स छोटी-सी कंपनी है। 20.38 करोड़ रुपए की पूंजी है जो दस रुपए अंकित मूल्य के शेयरों में बंटी है। बाजार पूंजीकरण कोई खास नहीं, 126 करोड़ रुपए है। इसलिए स्मॉल कैप में गिनी जाती है। लेकिन काम जबरदस्त करती है। भारतीय स्वाद की मास्टर है। अचार, चटनी व मसालों से लेकर फ्रोजन फूड तक बनाकर निर्यात करती है। अशोका, कैमल, एयरोप्लेन, खानखामा, ट्रूली इंडियन और सोल इसके ब्रांड हैं। 95 फीसदी कमाई मध्य-पूर्व, अमेरिका, यूरोप व ऑस्ट्रेलिया से आती है। दो साल पहले इसे एग्री बिजनेस के लघु उद्योग क्षेत्र में सर्वोत्तम एफएमसीजी (फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स) कंपनी का ईनाम मिला था।

शेयर बीएसई इंडोनेक्स्ट में शामिल है। कल यह बीएसई (कोड – 519183) में 63 रुपए और एनएसई (कोड – ADFFOODS) में 62.95 रुपए पर बंद हुआ है। ताजा नतीजों के अनुसार वित्त वर्ष 2010-11 में कंपनी ने अकेले 111.78 करोड़ रुपए की बिक्री पर 17.80 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया है और उसका ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 8.90 रुपए है। केवल मार्च 2011 की तिमाही की बात करें तो साल भर पहले की समान अवधि की तुलना में उसका शुद्ध लाभ 103.73 फीसदी बढ़कर 2.68 करोड़ से 5.46 करोड़ रुपए हो गया है।

कंपनी ने इन नतीजों की घोषणा 19 मई को की थी। तब बीएसई में इसके शेयर का भाव 58.90 रुपए था। इसके बाद 27 मई को घटकर नीचे में 53.90 रुपए तक आ गया। तब से लेकर अब तक इधर-उधर होता बराबर बढ़ रहा है। हफ्ते भर पहले 15 जून को ऊपर में 86.35 रुपए पर चला गया था। लेकिन जानते ही हैं शेयरों में निवेश तो फायदा कमाने के लिए ही किया जाता है तो भाव बढ़ने पर लोग मुनाफावसूली भी करते हैं और मुनाफावसूली से भाव खटाक से कुछ समय के लिए गिर जाते हैं। नई खरीद शुरू होने पर फिर से बढ़ने लग जाते हैं।

इसी क्रम में हफ्ते भर में एडीएफ फूड्स का शेयर अपने उच्चतम स्तर से करीब 27 फीसदी घटकर 63 रुपए पर आ गया है। लेकिन इस भाव पर इसमें अच्छा निवेश बनाता है क्योंकि शेयर की मौजूदा बुक वैल्यू ही 60.49 रुपए है। दूसरे इस तरह के व्यापक उपभोग व ब्रांड वाली कंपनियों के शेयर मरी-गिरी हालत में भी अमूमन 25 से 40 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड होते हैं, जबकि इसका पी/ई अनुपात इस समय मात्र 7.08 चल रहा है। बाजार इसे ठीकठाक अहमियत भी देता रहा है। इसका 52 हफ्ते का उच्चतम भाव 91.90 रुपए रहा है जो इसने 30 सितंबर 2010 को हासिल किया था। तब इसका पी/ई अनुपात 12.35 था। लेकिन इससे पहले अप्रैल 2010 में यह 16.68 के पी/ई के साथ 118.60 रुपए तक जा चुका है।

बी ग्रुप में शामिल इस स्टॉक में तरलता की कोई समस्या नहीं है। घुसना आसान, निकलना भी आसान। 15 जून को बीएसई में इसके 15.45 लाख और एनएसई में 20.84 लाख शेयरों की ट्रेडिंग हुई थी। हालांकि इसमें डिलीवरी का अनुपात क्रमशः 14.19 फीसदी और 10.30 फीसदी ही था। लेकिन डे-ट्रेडरों की सक्रियता इस शेयर की स्वीकृति व आकर्षण को दिखाती है। कंपनी में निवेश का एक आकर्षण पहलू यह भी है कि वो पिछले कई सालों से बराबर लाभांश देती रही है। उसका लाभांश यील्ड 2.38 फीसदी है।

मूलतः नदियाड, गुजरात की कंपनी है। इसके चेयरमैन रमेश ठक्कर और प्रबंध निदेशक बिमल ठक्कर हैं। कंपनी धंधे में शांत व स्थिर ही नहीं, आक्रामक भी है। उसने पिछले साल नवंबर 2010 में अमेरिकी कंपनी एलेना फूड्स का अधिग्रहण किया है। एलेना फूड्स मेक्सिको की देशज खाद्य वस्तुएं बनाती है। एडीएफ फूड्स आकर्षक व ज्यादा मुनाफे वाले विदेशी बाजार का फायदा उठाने के लिए बराबर ऐसे अधिग्रहण की ताक में लगी हुई है।

कंपनी की इक्विटी में पब्लिक की हिस्सेदारी 58.83 फीसदी और प्रवर्तकों की हिस्सेदारी 41.17 फीसदी है। प्रवर्तक इसे बढ़ाने में लगे हैं। इसी 16 जून को कंपनी के निदेशक बोर्ड की बैठक में तय हुआ है कि प्रवर्तकों को 20 लाख परिवर्तनीय वारंट प्रेफरेंशियल आधार पर जारी किए जाएंगे। लेकिन वारंट को शेयरों में बदलने का मूल्य 65 रुपए से कम नहीं होगा। 15 जुलाई को होनेवाली कंपनी की सालाना आमसभा (एजीएम) में पारित होने के बाद ही यह फैसला अमल में आएगा। यह फैसला दो चीजें दिखाता है। एक कि कंपनी के प्रवर्तक लुटेरे किस्म के नहीं हैं। वे प्रति शेयर उतना ही मूल्य देने को तैयार हैं जितना बनता है। दूसरा यह कि यह शेयर अभी ठीक अपने एकदम वाजिब मूल्य पर चल रहा है। न ज्यादा, न कम। लेकिन इसमें निवेशक लंबे समय के लिए ही किया जाना चाहिए। यानी, कम से कम पांच साल के लिए।

(स्टॉक का विचार सरकारी अफसरों की पत्रिका जीफाइल्स से साभार)

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