अबन ऑफशोर (बीएसई – 523204, एनएसई – ABAN) में इधर हरकत चालू है। कल बीएसई में 3.66 फीसदी की बढ़त और औसत से दोगुने कारोबार के साथ 606.70 रुपए पर बंद हुआ है। वैसे, हफ्ते भर पहले यह 533.80 रुपए, महीने भर पहले 654.40 रुपए और ठीक साल भर पहले 8 मार्च 2010 को 1313.10 रुपए पर था जो इसका 52 हफ्ते का उच्चचम स्तर है। इसी साल 10 फरवरी 2011 को 511.15 रुपए की तलहटी पकड़ चुका है। शेयर के इस तरह यूं साल भर आधे से भी नीचे चले जाने की कोई वजह नहीं समझ में आती।
हां, बीएसई के एक ग्रुप और बीएसई-200 सूचकांक में शामिल स्टॉक है। इसमें ऑपरेटरों के खेल बराबर चलते हैं। कल बीएसई में इसमें हुए 6.32 लाख शेयरों के सौदों में 9.48 फीसदी ही डिलीवरी के लिए थे, जबकि एनएसई में ट्रेड हुए 21.86 लाख शेयरों में से 8.39 फीसदी शेयर ही डिलीवरी के लिए थे। जाहिर है कि डे-ट्रेडिंग इसमें जमकर चल रही है और इसके शोर में निवेशकों को इसमें खींचने की कोशिश हो रही है।
गिरावट की एक वजह यह हो सकती है कि कंपनी के दिसंबर तिमाही के नतीजे अच्छे नहीं रहे हैं। उसने 281.17 करोड़ रुपए की आय पर 57.52 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया है, जबकि साल भर पहले की इसी अवधि में उसकी आय 300.32 करोड़ रुपए और शुद्ध लाभ 73.60 करोड़ रुपए था। यहीं नहीं, सितंबर 2010 की तिमाही में भी उसने इससे बेहतर धंधा किया था। तब उसकी आय 311.25 करोड़ और शुद्ध लाभ 81.35 करोड़ रुपए था। इसके बावजूद कंपनी वित्तीय आधार पर मजबूत लगता है और लंबी सोच रखनेवाले लोग अगर जोखिम उठाना चाहें तो इसमें निवेश कर सकते हैं।
कंपनी का ठीक पिछले बारह महीनों का ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 57.43 रुपए है और मौजूदा भाव पर उसका शेयर मात्र 10.56 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। शेयर की बुक वैल्यू 472.65 रुपए है यानी उसका शेयर बुक वैल्यू से 1.28 गुना भाव पर है जिसे आकर्षक माना जा सकता है। विशालकाय जमी-जमाई कंपनी है। थोड़ा बहुत ऊंच-नीच होता रहेगा। लेकिन दीर्घकालिक रूप से इसमें निवेश सुरक्षित दिखाई देता है।
1986 से सक्रिय यह कंपनी समुद्र में तेल की खुदाई का ठेका लेती है। देश में निजी क्षेत्र की सबसे बड़ी ऑफशोर ड्रिलिंग कांट्रैक्टर है। दुनिया भर में अपनी सेवाएं देती है। पांच साल पहले नॉरवे की एक कंपनी सिनवेस्ट में उसने 33.7 फीसदी इक्विटी खरीदी थी। कई विदेशी कंपनियों के साथ उसने संयुक्त उद्यम बना रखे हैं। कंपनी की चुकता पूंजी या इक्विटी मात्र 8.70 करोड़ रुपए है जो दो रुपए अंकित मूल्य के शेयरों में विभाजित है। इसका 53.05 फीसदी हिस्सा प्रवर्तकों और 46.95 फीसदी पब्लिक के पास है। पब्लिक के हिस्से में से 5.75 फीसदी एफआईआई और 5.35 फीसदी शेयर डीआईआई (घरेलू निवेशक संस्थाओं) के पास हैं। हां, एक बात और। प्रवर्तकों ने अपने लगभग एक तिहाई (29.57 फीसदी) शेयर गिरवी रखे हुए हैं।