ब्याज का भेदभाव अब जुलाई से हटेगा

पहले प्रस्ताव था कि 1 अप्रैल 2010 से बैंकों के सभी तरह के लोन पर बेस रेट की नई पद्धति लागू कर दी जाएगी। लेकिन बैंकों के शीर्ष अधिकारियों से राय-मशविरे के बाद रिजर्व बैक ने इसे अब 1 जुलाई 2010 से लागू करने का फैसला किया है। यह फैसला शुक्रवार को लिया गया। इस नई पद्धति के लागू होने पर अभी तक लागू बीपीएलआर (बेंचमार्क प्राइम लेंडिंग रेट) पद्धति धीरे-धीरे खत्म हो जाएगी। बीपीएलआर के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि यह बैंक कर्ज के ब्याज के मामले में किसी भी तरह की बेंचमार्क नहीं रह गई है। अभी तक लगभग 74 फीसदी बैंक कर्ज बीपीएलआर ने नीचे की ब्याज दरों पर दिए गए हैं। इस पद्धति को बैंक अपने हिसाब से इस्तेमाल करते रहे हैं। जैसे, एक ही बैंक के फ्लोटिंग होम लोन पर अभी नए और पुराने ग्राहकों को अलग-अलग ब्याज देना होता है क्योंकि लोन के एग्रीमेंट में लिखा रहता है कि बीपीएलआर से कितने प्रतिशत कम पर ग्राहक से ब्याज लिया जाएगा।

मान लीजिए किसी ने जुलाई 2006 में आईसीआईसीआई बैंक से होम लोन लिया और उस समय बैंक की बीपीएलआर 9.75 फीसदी थी तो ग्राहक को इससे एक प्रतिशत कम, 8.75 फीसदी सालाना की ब्याज दर पर लोन मिला। बीपीएलआर और ग्राहक से ली जानेवाली ब्याज दर का अंतर एग्रीमेंट में बुनियादी तब्दीली न करने पर पूरे लोन की वापसी होने तक बना रहता है। इसीलिए जनवरी 2010 में जहां नए ग्राहकों को 9.25 फीसदी पर फ्लोटिंग होम लोन मिल रहा है, वहीं पुराने से 11.75 फीसदी ब्याज लिया जा रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि बैंक की बीपीएलआर अभी 12.75 फीसदी है। इससे एक फीसदी कम ब्याज पुराने से लिया जाएगा क्योंकि एग्रीमेंट इसी पर हुआ था, जबकि नए के एग्रीमेंट में लिखा है कि उसे बीपीएलआर से तीन फीसदी कम ब्याज पर लोन दिया जा रहा है।

इसी तरह बैंक जहां बड़ी कंपनियों को बीपीएलआर से कम ब्याज पर लोन देते हैं, वहीं एकदम छोटी, लघु व मझोली इकाइयों (एमएसएमई) को वे बीपीएलआर से दो-चार फीसदी अधिक दर पर लोन देते हैं। बैंक ऑफ बड़ौदा की मुख्य अर्थशास्त्री रूपा रेगे कहती हैं कि बैंक रेट की नई पद्धति लागू हो जाने से यह भेदभाव या असंतुलन खत्म हो जाएगा क्योंकि इससे कम ब्याज दर बैंक अपने किसी भी ग्राहक को कर्ज नहीं दे सकते।

हालांकि रिजर्व बैंक के नए फैसले के मुताबिक बैंक अपने कर्मचारियों और ग्राहकों को एफडी के एवज में दिए जानेवाले कर्ज पर बेस रेट से कम ब्याज ले सकते हैं। बीपीएलआर को बदलने का कदम रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर दीपक मोहंती की अध्यक्षता में बनी समिति की सिफारिश पर उठाया जा रहा है। बेस रेट की गणना तीन बातों से की जाएगी कि बैंक के लिए जमा पर कितना खर्च आ रहा है, उसको चलाने का  यानी कुल इस्टैबिशमेंट खर्च कितना है और वह कितना लाभ मार्जिन पाना चाहता है। जमा पर खर्च के आकलन का आधार पहले एक साल की एफडी पर ब्याज की दर थी। लेकिन अब यह इससे कम अवधि की एफडी की ब्याज दर भी हो सकती है। बैंक रेट अभी लागू बीपीएलआर की तरह हर बैंक के लिए अलग-अलग होगी। लेकिन बैंकों की आपसी होड़ के चलते इसमें अधिक अंतर नहीं होगा। इससे यह भी होगा कि अभी की तरह बैंक बेहद कम दरों पर टीजर लोन जैसा धंधा नहीं चला सकते क्योंकि कुछ अपवादों को छोड़कर किसी भी लोन पर ब्याज दर बैंक रेट से कम नहीं हो सकती।

बैंक रेट कितनी होगी, अभी इस पर स्पष्टता नहीं है। जिन बैंकों की कुल जमा में कासा का हिस्सा ज्यादा है, उनकी बैंक रेट 4-5 फीसदी भी हो सकती है। वैसे, पहले माना जा रहा था कि यह दर 8 से 9 फीसदी हो सकती है। बैंक रेट के 1 जुलाई 2010 से लागू होने के बाद बीपीएलआर की व्यवस्था तुरंत नहीं खत्म होगी। बैंक अपने मौजूदा ग्राहकों को विकल्प देंगे कि वे नई या पुरानी व्यवस्था में किसी एक को चुन सकते हैं। असल में 15-20 साल के लोन की शर्तें बदलना काफी कानूनी पचड़े का काम है। हो सकता है कि बैंक इसका बहाना बनाकर पुराने ग्राहकों को नई सहूलियत न दें या फिर इसके लिए अच्छा-खासा प्रीमियम अलग से देने की मांग करें।

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