रेटिंग एजेंसियों को फीस व शेयरधारिता तक बतानी होगी

पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी ने आज क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के लिए नए दिशानिर्देश जारी कर दिए। इसमें ऐसा तो नहीं है कि क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां रेटिंग के साथ-साथ एनॉलिस्ट और सलाह देने की सेवाएं नहीं दे सकती हैं, लेकिन सेबी ने इतना जरूर तय कर दिया है कि एजेंसी में वे लोग जो किसी कंपनी को रेटिंग देते हैं, विश्लेषण या सलाहकार सेवाएं देनेवालों से अलग होने चाहिए। सेबी ने यह भी तय किया है कि रेटिंग एजेंसी किसी कंपनी को क्रेडिट रेटिंग देने के लिए कितनी फीस ले रही है। हर क्रेडिट रेटिंग एजेंसी को स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध कंपनी की तरह अपनी शेयरधारिता की जानकारी भी सार्वजनिक करनी पड़ेगी। सेबी ने 15 पन्नों के दिशानिर्देश में ऐसी कई बातें निर्धारित की हैं जिनसे क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के कामकाज में पारदर्शिता आएगी।

असल में साल 2008 से शुरू हुए वैश्विक वित्तीय संकट के बाद हर तरफ क्रेडिट एजेंसियों की निष्पक्षता पर सवाल उठने लगे थे। अमेरिका के वित्तीय संकट में ऐसे प्रपत्र तक डूब गए थे जिनको सबसे ऊंची एएए रेटिंग मिली हुई थी। यही वजह है कि सवाल उठाया जाने लगा था कि दूसरों की रेटिंग करनेवाली क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों की रेटिंग कौन करेगा। दूसरे, अपने यहां सभी बैंकों पर बेसल-2 का मानक मार्च 2010 से लागू हो जाने के बाद क्रेडिट रेटिंग की अहमियत बहुत बढ़ गई है क्योंकि किसी ऋण को मिली रेटिंग के आधार पर ही बैंकों को उसके लिए प्रावधान करना पड़ता है। इसलिए रिजर्व बैंक भी बार-बार रेटिंग एजेंसियों के कामकाज में निष्पक्षता व पारदर्शिता लाने पर जोर दे रहा था। इन्हीं सब बातों के मद्देनजर सेबी ने क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं। इन्हें रेटिंग एजेंसियों व अन्य संबंधित पक्षों से व्यापक विचार-विमर्श के बाद तैयार किया गया है।

दिशानिर्देश के मुताबिक रेटिंग एजेंसियों ने कंपनी के ऋण प्रपत्र को किस आधार पर रेटिंग दी है, उसका पूरा रिकॉर्ड उन्हें प्रपत्र के परिपक्व हो जाने के पांच साल बाद तक संभाल कर रखना होगा। इसमें रेटिंग टीम की बैठकों में हुई बातचीत से लेकर कंपनी प्रबंधन के साथ की गई चर्चा तक शामिल है। उनको यह भी बताना होना कि उनकी दी गई रेटिंग में कब-कब चूक हुई है। अगर उन्होंने किसी कंपनी की रेटिंग बदली है तो क्यों और कैसे, यह भी उन्हें सार्वजनिक करना होगा ताकि लोग उनके द्वारा दी गई रेटिंग के स्तर को समझ सकें।

अभी अधिकांशतया होता यह है कि एक ही रेटिंग कंपनी की सलाहकार भी होती है और वहीं उसे रेटिंग भी देती हैं। यह भी माना जाता रहा है कि एजेंसियां ज्यादा फीस लेकर किसी कंपनी की रेटिंग अच्छी कर देती हैं। इस तरह के हितों के टकराव को रोकने के लिए सेबी ने तय किया है कि एक तो कंपनी को खुलासा करना होगा कि उसने कंपनी से कितनी फीस ली है, दूसरे अलग-अलग सेवाएं देनेवालों में कोई घालमेल नहीं होना चाहिए। एजेंसी को सुनिश्चित करना होगा कि उनका कोई एनालिस्ट जिस कंपनी की रेटिंग हो रही है, उसकी रेटिंग प्रक्रिया या फीस के लिए हो रही बातचीत में शामिल नहीं रहेगा। रेटिंग में शामिल कर्मचारी या उसके आश्रितों के पास संबंधित कंपनी के शेयर वगैरह नहीं होने चाहिए।

एजेंसी किसी कंपनी के उन्हीं वित्तीय प्रपत्रों की रेटिंग कर सकती है जिसके बनाने में उसने सलाहकार सेवाएं न दी हों। एजेंसी को बताना होगा कि किस कंपनी से उसे रेटिंग या इससे भिन्न सेवाओं के लिए कितना पैसा मिला है। अगर उसे और उसकी सहयोगी इकाइयों को कुल आय का 10 फीसदी या इससे ज्यादा हिस्सा किन्हीं कंपनियों या उसकी सब्सिडियरियों से मिलता है तो एजेंसी को इन सभी के नाम जाहिर करने होंगे।

क्रेडिट रेटिंग एजेंसी को अपनी शेयरधारिता का स्वरूप भी सार्वजनिक करना होगा। दिशानिर्देश में तय की गई कुछ जानकारियां छह महीने पर देनी हैं और कुछ सालाना स्तर पर। सेबी ने कहा है कि फिलहाल इन नियमों पर 30 जून 2010 तक अमल हो जाना चाहिए और इसकी रिपोर्ट सेबी के पास 15 जुलाई 2010 तक पहुंच जानी चाहिए। वित्त वर्ष 2009-10 के खुलासे 30 जून तक किए जा सकते हैं। लेकिन इसके बाद हर छमाही जानकारी छमाही बीतने के 15 दिन के भीतर और सालाना जानकारी वित्त वर्ष की समाप्ति के 30 दिन के भीतर पेश कर दी जानी चाहिए।

बता दें कि अभी देश में कुल पांच क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां सक्रिय हैं। ये हैं – क्रिसिल, इक्रा, केयर, फिच और ब्रिकवर्क। इनमें से केयर ही इकलौती एजेंसी है जिसने पहले से ही इन दिशानिर्दशों के अनुरूप काम का विभाजन कर रखा है।

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