प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2014 में किसानों से वादा किया था कि उन्हें फसल का इतना एमएसपी देंगे कि सारी लागत का आधे से ज्यादा मुनाफा मिल जाएगा। यह वादा हवाहवाई होने के बाद उन्होंने साल 2016 में घोषणा की कि किसानों की आय छह साल में दोगुनी हो जाएगी। यह घोषणा भी खोखली निकली। इस बीच वे 2020-21 में संसद में बिना बहस के पास कराकर तीन कृषि कानून ले आए जिसमें कृषि में कॉरपोरेट क्षेत्र की घुसपैठ कराने और किसानों को ही उनकी ज़मीन से बेदखल करके मजदूर बनाने के प्रावधान थे। इसके खिलाफ किसानों ने जबरदस्त आंदोलन किया। एक साल से ज्यादा चले आंदोलन के बाद सरकार ने तीनों कानून वापस ले लिए। लेकिन बाकी वादे पूरे नहीं किए तो किसान फिर आंदोलन पर उतर आए। लेकिन इस बार उन्हें हरियाणा की सीमा पर ही रोक लिया गया। सरकार बराबर उनके साथ दुश्मनों जैसा बर्ताव करती रही। राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरों के आंकड़ों के मुताबिक देश भर साल 2014 से 2022 के दौरान किसान आत्महत्याएं बढ़ती रहीं। अगर इसमें कृषि मजदूरों की संख्या भी जोड़ दें तो 2020, 2021 और 2022 में क्रमशः 10,600, 10,881 और 11,290 किसानों व कृषि मजदूरों ने आत्महत्या की है। आखिर यह सरकार अन्नदाता कहने के बावजूद किसानों की कभी क्यों नहीं सुनती? अब बुधवार की बुद्धि…
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