मुद्रास्फीति क्यों बढ़ रही है? मुद्रा का प्रसार ज्यादा है, जबकि क्रय-शक्ति ठहरी हुई है। नतीजतन मुद्रास्फीति बढ़ती जा रही है। निश्चित रूप से अगर मौद्रिक नीति के जरिए मुद्रास्फीति से लड़ना है तो ब्याज दरें बढ़ाना ही इकलौता विकल्प है। हालांकि, मुद्रास्फीति पर लगाम लगाने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए आपूर्ति बढ़ाने, आयात शुल्क घटाने और जमाखोरी पर अंकुश लगाने जैसे कई दूसरे उपाय भी किए जा सकते हैं। अगर कारगर उपाय किए जाएं तो मुद्रास्फीति पर काबू पाया जा सकता है क्योंकि यह मुद्रास्फीति शुद्ध रूप से खाद्य पदार्थों की कीमत बढ़ने का नतीजा है।
दुनिया भर में हमने देखा है कि जब भी मुद्रास्फीति ज्यादा होती है तो शेयर बाजार में तेजी आ जाती है। कच्चा तेल इसलिए महंगा हुआ था क्योंकि उसका उपभोग बढ़ गया था। जिंसों के बाजार मूल्य जितने ज्यादा होते हैं, उनसे जुड़ी कंपनियों की लाभप्रदता उतनी ही बढ़ जाती है।
आज भी सेंसेक्स में 467.69 अंक और निफ्टी में 141.75 अंक की गिरावट आ गई। शुक्रवार को बाजार गिरा था तो उसकी वजह मध्यावधि चुनावों की आशंका, मुद्रास्फीति और ब्याज दरों में वृद्धि के आसार को बताया गया था। बाद के दो मुद्दे बड़े रूटीन किस्म के हैं और इतनी तीखी गिरावट का ठीकरा उन पर नहीं मढ़ा जा सकता। तीसरा मुद्दा मध्यावधि चुनावों का है। लेकिन ऐसा होना इस समय असंभव है। घोटालों के आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला उस मुकाम तक जा पहुंचा है जहां एकमात्र समाधान यही दिखता है कि हमारे नीति-नियामक भविष्य में रिश्वतखोरी से लड़ने के वाजिब उपाय करें।
अभी हाल ही में किसी ने मेरे सामने गिन-गिन पूरा ब्योरा पेश किया कि कैसे 1992 से अब तक देश में 72 लाख करोड़ रुपए के घोटाले हो चुके हैं। लेकिन इनसे निपटने के लिए खास कुछ भी नहीं हुआ। राजा का घोटाला और सरकार को हुए नुकसान की बात अपनी जगह ठीक है। लेकिन यह भी तो सच है कि राजा ने सरकार के खजाने में 1.15 लाख करोड़ रुपए जोड़े हैं जो 2001 के बाद से अभी तक कोई नहीं कर सका।
खैर, निफ्टी के 6000 अंक का स्तर तोड़कर नीचे चले जाने के बाद वोल्यूम के सौदागरों को शॉर्ट सेल करना ही है और ब्रोकर मार्जिन की मांग भी करेंगे ही। इसलिए शॉर्ट सौदों को काटने का सिलसिला चलेगा। बाजार पहले से ओवरसोल्ड स्थिति में है और इसके ऊपर से शॉर्ट सौदों को काटने से माहौल और गरम हो सकता है।
ऐसी स्थिति में हमारे सामने दो विकल्प बचते हैं। एक, हर गिरावट पर खरीदें, नुकसान का थोड़ा सदमा झेलते सहें और मुनाफा कमाने के लिए बाजार के सुधरने का इंतजार करें। दो, कुछ भी न करें और हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें। इन दो के अलावा तीसरा विकल्प भी है कि गिरते बाजार में बेचते रहें और शॉर्ट सेलिंग से कमाई कर लें। लेकिन यह हमारा रास्ता नहीं है। इसलिए जो इसे अपनाना चाहते हैं वे अपनी मर्जी से इसका जोखिम उठा सकते हैं।
अफरातफरी की हालत केवल फ्यूचर्स में देखी जा रही है क्योंकि वहां भाव दबाने के लिए आपको डिलीवरी का झंझट नहीं उठाना पड़ता। ऐसा बी ग्रुप में नहीं हो रहा है क्योंकि वहां शेयरों का स्वामित्व बहुत विस्तृत नहीं है। इधर निफ्टी में वोल्यूम तीन हफ्तों के बाद अपने सबसे अच्छे स्तर पर आ चुका है। शुक्रवार को निफ्टी में 2.5 करोड़ शेयरों का वोल्यूम हुआ था, भले ही वो भारी वोल्यूम के साथ गिर भी गया था। आज इसमें बाजार के पहले ही दो घंटों में एक करोड़ शेयरों से ज्यादा का वोल्यूम हो गया था। दिन भर में निफ्टी का वोल्यूम 3.46 करोड़ शेयरों पर पहुंच गया। जाहिर है, बाजार में सक्रियता बहुत बढ़ चुकी है।
हर किसी को दिन भर में इतनी सूचनाएं मिलती रहती हैं कि वह अपनी सहज-बुद्धि ही खो देता है।
(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। यह कॉलम मूलत: सीएनआई रिसर्च से लिया जा रहा है)