मरता क्यों जा रहा है बॉम्बे डाईंग?

लोग कहे जा रहे हैं, कहे जा रहे हैं, लेकिन नुस्ली वाडिया की ऐतिहासिक कंपनी बॉम्बे डाईंग का शेयर मरा जा रहा है तो मरा ही जा रहा है। हमारे चक्री महाशय तो बॉम्बे डाईंग को लेकर लंबे समय से बुलिश हैं। 21 दिसंबर 2010 को उन्होंने लिखा था कि यह नए साल का ब्लॉक बस्टर साबित होगा और दिसंबर 2011 तक चार अंकों में पहुंच जाएगा। यूं तो वे 31 मार्च 2010 से ही इसे तब से खरीदने की सिफारिश करते रहे हैं, जब यह 551 रुपए पर था। 13 अप्रैल को यह 640 रुपए पर जा पहुंचा। फिर 16 अगस्त 2010 को 692.45 रुपए के शिखर पर जा बैठा। लेकिन उसके बाद कभी भी इस स्तर तक नहीं पहुंच सका।

21 दिसंबर 2010 को यह नीचे में 480 रुपए तक गया था। 4 जनवरी 2011 को ऊपर में 537.60 रुपए तक गया। उसके बाद गिरा तो गिरता ही गया। इतना कि 11 फरवरी 2011 को 290.10 रुपए की तलहटी थाम ली। अभी पिछले शुक्रवार को फिर चक्री महोदय ने बॉम्बे डाईंग में खरीद की सलाह दी। लेकिन यह उसके बाद के तीन कारोबारी सत्रों में 371.70 रुपए से 9.45 फीसदी गिरकर 336.55 रुपए पर आ चुका है। समझ में नहीं आता कि मौके की जमीन का विशाल भू-भाग होते हुए भी बॉम्बे डाईंग की यह दुर्दशा क्यों हो रही है? आखिर उसकी जमीन कब अपना जौहर दिखाएगी?

दरअसल, कंपनी जमीन या कहें तो रीयल एस्टेट के बिजनेस से अपना ध्यान घटाकर अब मूल व्यवसाय टेक्सटाइल पर लगाना चाहती है। 2008 में कंपनी की कुल आय का 30 फीसदी हिस्सा रीयल एस्टेट, 20 फीसदी टेक्सटाइल और बाकी 50 फीसदी हिस्सा पॉलिएस्टर स्टैपल फाइबर (पीएसएफ) से आया था। 2009-10 में 1675..86 करोड़ की आय में रीयल एस्टेट का योगदान 33.51 फीसदी, टेक्सटाइल का 17.54 फीसदी और पीएसएफ का 48.95 फीसदी रहा। बीते वित्त वर्ष 2010-11 में कंपनी को हुई 1951.98 करोड़ की आय में रीयल एस्टेट का योगदान घटकर 12.26 फीसदी, टेक्सटाइल का बढ़कर 20.39 फीसदी और पीएसएफ का काफी ज्यादा बढ़कर 67.35 फीसदी हो गया है।

असल में यह कंपनी की सुचिंतित रणनीति का नतीजा है। कंपनी के संयुक्त प्रबंध निदेशक व मुख्य वित्तीय अधिकारी दुर्गेश मेहता के मुताबिक 2008 में समूह के सामने सबसे बड़ा मुद्दा कैश पैदा करने का था। इसे रीयल एस्टेट डिवीजन से पूरा किया गया। उसके बाद हमारा ध्यान इस पर था कि टेक्सटाइल व पीएसएफ में धन गंवाने का सिलसिला रोका जाए। अगले दो सालों में मुख्य जोर टेक्सटाइल बिजनेस पर रहेगा और लक्ष्य है कि कुल आय में इसका योगदान 30 फीसदी पर ले आया जाए। इसके लिए कंपनी महज बाजार के ऊपरी 5 फीसदी हिस्से का ब्रांड बने रहने के बजाय नीचे आम ग्राहकों तक पहुंचने की कोशिश में लगी है। इसके लिए वह बिग बाजार, शॉपर्स स्टॉप, लाइफस्टाइल व डी-मार्ट जैसी बड़ी रिटेल श्रृंखलाओं से हाथ मिला रही है।

कंपनी अपना कर्ज-बोझ भी बराबर घटा रही है। 2007-08 में उस पर 1600 करोड़ का कर्ज था। 2009-10 तक यह बढ़कर 1800 करोड़ रुपए हो गया। लेकिन 2010-11 में इसे घटाकर अब 1200 करोड़ पर लाया जा चुका है। अगले दो-तीन सालों में इसे घटाकर 600 करोड़ के आसपास लाने का लक्ष्य है। इससे कंपनी की लाभप्रदता पर साफ असर पड़ेगा क्योंकि अभी तो मुनाफे की कई गुना रकम ब्याज अदायगी में ही चली जा रही है। 2010-11 में कंपनी ने 21.39 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया है, जबकि शुद्ध ब्याज अदायगी 158.41 करोड़ रुपए थी। इससे पिछले साल 2009-10 में उसका शुद्ध लाभ 18.42 करोड़ रुपए था और ब्याज अदायगी रही थी 186.20 करोड़ रुपए।

दुर्गेश मेहता के मुताबिक कर्ज का बोझ घटाना मुश्किल नहीं होगा क्योंकि कैश फ्लो की स्थिति बेहतर हो रही है। फिर फाइबर के अच्छे दाम मिल रहे हैं तो कंपनी का पीएसएफ बिजनेस बेहतर से बेहतर काम कर रहा है। वैसे भी उसके पीएसएफ संयंत्र इस समय पूरी 100 फीसदी क्षमता पर उत्पादन कर रहे हैं।

इन सारे तथ्यों पर नजर डालने के बाद सवाल उठता है कि क्या बॉम्बे डाईंग एंड मैन्यूफैक्चरिंग (बीएसई – 500020, एनएसई – BOMDYEING) में निवेश करने का यह सही मौका है? क्या 1879 में वाडिया परिवार द्वारा बनाई गई यह ऐतिहासिक कंपनी अपना पुराना गौरव हासिल कर फिर से टेक्सटाइल उद्योग की सिरमौर बन पाएगी? सवालों के उत्तर आसान नहीं हैं क्योंकि उसके धंधे में वेलस्पन कॉरपोरेशन, ट्राइडेंट ग्रुप और आलोक इंडस्ट्रीज जैसी कंपनियां काफी जगह घेर चुकी हैं।

लेकिन अगर बॉम्बे डाईंग के कामकाज का ग्राफ देखें तो वह मार्च 2011 की तिमाही में तेजी से सुधरा है। बीते वित्त वर्ष 2010-11 की चौथी तिमाही में उसने 638.46 करोड़ रुपए की आय पर 81.95 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया है और उसका तिमाही ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 21.19 रुपए है, जबकि पूरे वित्त वर्ष का ईपीएस इसका करीब एक चौथाई 5.54 रुपए है। ऐसा शायद ही कभी होता होगा कि सालाना ईपीएस तिमाही ईपीएस से कम रहे। यह एक टर्नएराउंड या कायाकल्प का संकेत है। बता दें कि कंपनी 2008-09 में 194.62 करोड़ रुपए के घाटे में थी।

यूं तो वित्तीय अनुपातों की बात करें तो बॉम्बे डाईंग का शेयर 336.55 रुपए के गिरे हुए भाव पर भी काफी महंगा है। सोचिए, अभी 60.75 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। शेयर की बुक वैल्यू मात्र 79.58 रुपए है। लेकिन ब्रांड वैल्यू को देखें, नाम को देखें, कायाकल्प की रफ्तार पकड़ती प्रक्रिया को देखें तो जोखिम का भार सह सकनेवाले इस पर दांव लगा सकते हैं। वैसे भी हमारे चक्री महोदय की भविष्वाणी है कि यह शेयर इस साल दिसंबर अंत तक चार अंकों में यानी, 1000 के ऊपर होगा। लेकिन जानते ही हैं कि सावधानी हटी, दुर्घटना घटी। इसलिए सारा कुछ खुद ठोंक बजाकर देखने के बाद ही निवेश करें। हां, यह ए ग्रुप की नहीं, बल्कि बी ग्रुप की कंपनी है।

कंपनी की कुल इक्विटी 40.55 करोड़ रुपए है जो दस रुपए अंकित मूल्य के शेयरों में बंटी है। इसका 49.66 फीसदी हिस्सा प्रवर्तकों के पास है, जबकि एफआईआई के पास इसके 6.23 फीसदी, डीआईआई के पास 17.11 फीसदी और आम पब्लिक के पास 27 फीसदी शेयर हैं। कंपनी लाभांश बराबर देती रही है। पिछले कई सालों में उसने दस रुपए पर 3.50 से लेकर 5 रुपए का लाभांश दिया है। 2010-11 का लाभांश 3.50 रुपए रहा है।

2 Comments

  1. please give your comments on coal india and moil.

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