केएस ऑयल्स की लुटिया डूबी कैसे?

मुरैना (मध्य प्रदेश) की खाद्य तेल कंपनी केएस ऑयल्स की हालत इतनी खराब नहीं है कि उसका शेयर 77 रुपए से टूटकर 7.70 रुपए पर आ जाए। जी हां! केएस ऑयल्स का शेयर 18 जनवरी 2010 को बीएसई में 77 रुपए पर था, जबकि 17 अगस्त 2011 को 7.70 रुपए पर आ गया। पूरे 90 फीसदी की चपत। कंपनी ने हालांकि चालू वित्त वर्ष 2011-12 की पहली तिमाही के नतीजे घोषित नहीं किए हैं, लेकिन बीते वित्त वर्ष 2010-11 में उसने 4662 करोड़ रुपए की बिक्री पर 188 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया था और उसका प्रति शेयर लाभ (ईपीएस) 4.55 रुपए है। शेयर की बुक वैल्यू ही 39.59 रुपए है।

लेकिन यहीं तो मात खा जाता है इंडिया क्योंकि शेयरों के भाव कंपनी की ताकत से कहीं ज्यादा, उसको लेकर बने माहौल और उनमें हो रही खरीद-बिक्री से प्रभावित होते हैं। केएस ऑयल्स को पहली चोट दिसंबर 2010 में तब लगी थी जब कहा गया कि खुफिया ब्यूरो इसके शेयरो में धांधली की जांच कर रहा है। दूसरा झटका करीब छह महीने बाद जून 2011 में तब लगा, जब खबर छपी कि सरकार मॉरीशस के साथ दोहरा कराधान संधि को बदलने पर विचार कर रही है। चूंकि देश की अधिकांश लिस्टेड कंपनियों की तरह केएस ऑयल्स में भी मॉरीशस में पंजीकृत निवेशकों का धन लगा है तो इसके भी शेयर तोड़कर बैठा दिए गए।

लेकिन सबसे तगड़ा झटका उसे इस हफ्ते लगा जब स्वतंत्रता दिवस के एक एक दिन बाद 16 अगस्त को बाजार खुलने पर इसके शेयर एकबारगी 32 फीसदी लुढ़का दिए गए। अगले दिन 17 अगस्त को इसे और धुना गया। फिलहाल 19 अगस्त को यह बीएसई (कोड – 5262090 में 8.50 रुपए पर बंद हुआ है। गौर करने की बात यह है कि बीएसई में 16 अगस्त को इसके 1.99 करोड़, 17 अगस्त को 2.24 करोड़, 18 अगस्त को 1.60 करोड़ और 19 अगस्त को 86.28 लाख शेयरों में सौदे हुए हैं जिनमें डिलीवरी का मात्रा क्रमशः 45.26 फीसदी, 34.48 फीसदी, 36.49 फीसदी और 39.89 फीसदी रही। इसी दौरान एनएसई में हुआ वोल्यूम 5.11 करोड़, 7.26 करोड़, 4.61 करोड़ और 2.68 करोड़ शेयरों का रहा जिसमें डिलीवरी का अनुपात क्रमशः 45.10 फीसदी, 29.30 फीसदी, 34 फीसदी और 31.70 फीसदी का रहा।

सवाल उठता है कि जिस कंपनी के कुल जारी शेयरों की संख्या 42.54 करोड़ हो जिसमें से 37.55 करोड़ शेयर पब्लिक के पास हों, चार दिन में उसके 26.35 करोड़ शेयरों की खरीद-फरोख्त होने का क्या तुक है? पब्लिक के हिस्से के 70 फीसदी से ज्यादा शेयर चार दिन में ट्रेड हो गए!! इतना भूचाल तो कभी सेंसेक्स और निफ्टी में शामिल कंपनियों में नहीं आता। यह तो बी ग्रुप की बीएसई-500 में शामिल कंपनी है।

यह सारा किस्सा असल में देश में अरबों डॉलर लगाने वाले प्राइवेट इक्विटी फंडों की योग्यता व दक्षता पर भी सवालिया निशान लगाता है। वे अपनी रिसर्च के दम पर अच्छी भारतीय कंपनियों को चुनते हैं। उनमें निवेश करते हैं। कंपनी प्रबंधन के साथ मिलकर कामकाज को और बेहतर बनाने की जुगत करते हैं और कायदे का मुनाफा मिलने पर अपना निवेश बेचकर निकल लेते हैं। लेकिन केएस ऑयल्स के मामले में सब कुछ उल्टा-पुल्टा हो गया।

16 अगस्त को जिस दिन केएस ऑयल का स्टॉक 32 फीसदी गिरा था, उस दिन इसके सबसे बड़े कर्जदाता सिकॉम लिमिटेड ने कंपनी द्वारा गिरवी रखे 23.84 लाख शेयर बेच दिए थे। उसी दिन एडेलवाइस फाइनेंस ने इसके 44.50 लाख शेयर बीएसई में 9.13 रुपए के भाव पर निकाल डाले। इसके बाद भी एडेलवाइस ने 17 अगस्त को बीएसई में इसके 43.09 लाख शेयर 8.22 रुपए, 18 अगस्त को 35.04 लाख शेयर 8.60 रुपए और 19 अगस्त को 22.95 लाख शेयर 8.28 रुपए के भाव से बेच डाले। इससे पहले शुक्रवार, 12 अगस्त को सिकॉम ने कंपनी के 25.78 लाख शेयर एनएसई में 12.96 रुपए के भाव पर बेचे थे। बता दें कि कंपनी के प्रवर्तकों ने अपनी करीब 80 फीसदी शेयर ऋण लेने के लिए बंधक रखे हुए हैं। यह भी चर्चा है कि प्रबंधन ने इस धन का जमकर दुरुपयोग किया है।

कमाल की बात यह है कि यही कंपनी दो साल पहले तक प्राइवेट इक्विटी फंड़ों की चहेती बनी हुई थी। मई 2009 में रजत गुप्ता (मैकेंजी के पूर्व प्रमुख, गोल्डमैन सैक्श के पूर्व निदेशक और अमेरिका में इनसाइडर ट्रेडिंग के आरोपी कोलकाता में जन्मे अमेरिकी भारतीय) के पीई फंड न्यू सिल्क रूट (एनएसआर) डायरेक्ट ने केएस ऑयल्स में लगभग 135 करोड़ रुपए का निवेश किया। सिटी ग्रुप वेंचर कैपिटल और बेयरिंग प्राइवेट इक्विटी पार्टनर्स एशिया ने भी कंपनी में 49-49 करोड़ रुपए लगा दिए। 30 जून 2011 तक की स्थिति के अनुसार केएस ऑयल्स में एनएसआर डायरेक्ट का इक्विटी निवेश 9.48 फीसदी और बेयरिंग प्राइवेट इक्विटी पार्टनर्स का निवेश 5.05 फीसदी है।

कंपनी के तीसरे बड़े निवेशक अनिवासी बिजनेसमैन शिवशंकरन हैं। ये वही शिवशंकरन हैं जिनकी कंपनी एयरसेल को मलयेशिया की मैक्सिस कम्युनिकेशंस ने दबाव डालकर खरीद लिया था और जिस चक्कर में दयानिधि मारन को इस्तीफा देना पड़ा है। शिवा ने सहारा वन तक में निवेश कर रखा है। उन्होंने शिवा वेंचर्स के जरिए केएस ऑयल में 8 फीसदी इक्विटी निवेश किया। फिलहाल कंपनी में शिवा ट्रेड कंसल्टेंसी के जरिए उनका निवेश 4.82 फीसदी का है। इस समय केएस ऑयल्स में मॉरगन स्टैनले (3.25 फीसदी), मेरिल लिंच (1.14 फीसदी) और डॉयचे सिक्यूरिटीज (2.11 फीसदी) जैसे नामी निवेशक मौजूद हैं।

सवाल उठता है कि इतन दिग्गज निवेशकों के होते केएस ऑयल्स की ऐसी दुर्गति कैसे हो रही है? और, अगर सचमुच इसका प्रबंधन घटिया है तो इन दिग्गजों से इसे निवेश के लिए चुना ही क्यों? मजे की बात यह है कि जब यह हल्ला-हंगामा शुरू होने ही वाला था, तभी कंपनी के चेयरमैन रमेश चंद गर्ग ने भी 12 अगस्त को अपने 3.05 फीसदी शेयर बेच डाले। किस भाव पर, यह तो पता नहीं, लेकिन उस दिन बीएसई में इसका औसत भाव 12.95 रुपए था। अब रमेश चंद गर्ग के पास केएस ऑयल्स के केवल 8.23 फीसदी शेयर बचे हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि गर्ग जी के निकलते ही बाकी बड़े निवेशकों में हडकंप मचा हो और वे औने-पौने दाम पर अपना निवेश निकालने लग गए? लेकिन बड़े तो निकल गए, अब छोटे निवेशकों का क्या होगा? है कोई उनका खैरख्वाह!!!

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