विकास का उबाल, किस धन का बवाल!

देश को विकास की चकाचौंध की तरफ दौड़ते एक दशक से ज्यादा हो गए। समय आ गया है कि देखें कि हम किसी मृग मरीचिका में तो फंसकर नहीं रह गए हैं? बढ़ते शेयर बाज़ार और डीमैट खातों को देखकर तो सचमुच लगता है कि विकास हुआ है। लेकिन शेयर बाज़ार तभी बढ़ता है जब वहां लिस्टेड कंपनियों के शेयरों की तरफ धन का प्रवाह बढ़ जाता है। इस धन का बड़ा हिस्सा विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) का है जो बहती गंगा में हाथ धोकर मुनाफा कमाने आए हैं। उन्हें कमाने से मतलब है, विकास से नहीं। शेयर बाज़ार में म्यूचुअल फंडों और बीमा कंपनियों के जरिए आम लोगों का धन भी लगता है। लेकिन इन घरेलू संस्थाओं और एफपीआई के बीच लेने और देने का खेल चलता है। एक खरीदता है तो दूसरा बेचता है। इनकी खरीद-बिक्री आपस में कटकर बराबर हो जाती है। फिर किसका धन है जिसके प्रवाह से शेयर बाज़ार चढ़ा है? आखिर विकास ने किन लोगों के पास इतना इफरात धन भर दिया है जो शेयर बाज़ार में आकर भावों में बवंडर मचा रहा है? दरअसल यह सरकारी ठेकों, दलाली व कृपा से बहा जनधन है जो बवाल मचाए हुए है। अब सोमवार का व्योम…

यह कॉलम सब्सक्राइब करनेवाले पाठकों के लिए है.
'ट्रेडिंग-बुद्ध' अर्थकाम की प्रीमियम-सेवा का हिस्सा है। इसमें शेयर बाज़ार/निफ्टी की दशा-दिशा के साथ हर कारोबारी दिन ट्रेडिंग के लिए तीन शेयर अभ्यास और एक शेयर पूरी गणना के साथ पेश किया जाता है। यह टिप्स नहीं, बल्कि स्टॉक के चयन में मदद करने की सेवा है। इसमें इंट्रा-डे नहीं, बल्कि स्विंग ट्रेड (3-5 दिन), मोमेंटम ट्रेड (10-15 दिन) या पोजिशन ट्रेड (2-3 माह) के जरिए 5-10 फीसदी कमाने की सलाह होती है। साथ में रविवार को बाज़ार के बंद रहने पर 'तथास्तु' के अंतर्गत हम अलग से किसी एक कंपनी में लंबे समय (एक साल से 5 साल) के निवेश की विस्तृत सलाह देते हैं। इस कॉलम को पूरा पढ़ने के लिए आपको यह सेवा सब्सक्राइब करनी होगी। सब्सक्राइब करने से पहले शर्तें और प्लान व भुगतान के तरीके पढ़ लें। या, सीधे यहां जाइए।
अगर आप मौजूदा सब्सक्राइबर हैं तो यहां लॉगिन करें...

Existing Users Log In
   
New User Registration
Please indicate that you agree to the Terms of Service *
captcha
*Required field