बियर्डसेल का अजब-गजब किस्सा

हमारे स्टॉक एक्सचेंज निवेशकों के हितों के लिए बड़े चिंतित हैं। खासकर नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) तो कुछ ज्यादा ही परेशान हैं। बाकायदा विज्ञापन जारी कर निवेशकों को समझाता है कि सोच कर, समझ कर, इनवेस्ट कर। रेटिंग एजेंसी क्रिसिल से मिलकर रिसर्च रिपोर्ट जारी करता है ताकि निवेशक को निवेश की निष्पक्ष राय मिल सके और उनका पैसा सुरक्षित रहे। कैसे? एक ताजा बानगी पेश है। एनएसई ने क्रिसिल की तरफ से इसी 7 फरवरी को बियर्डसेल लिमिटेड पर रिपोर्ट पेश करवाई है जिसमें कहा गया है कि इसे 61 रुपए के लक्ष्य के साथ खरीद लिया जाए।

बता दें कि बियर्डसेल बीएसई में नहीं, एनएसई (कोड – BEARDSELL) में लिस्टेड है। 7 फरवरी को जब यह रिपोर्ट जारी हुई थी, तब पिछले दिन से 5 फीसदी बढ़ने से इस पर ऊपरी सर्किट लगा था और इसका बंद भाव 50.90 रुपए था। लेकिन उस दिन इसमें कुल गिनती के 10 शेयरों के सौदे हुए थे। उसके बाद 8 फरवरी को इसमें हुआ वोल्यूम 115, 9 फरवरी को 1293 और 10 फरवरी को 466 शेयरों का था। फिर 11 फरवरी (शुक्रवार) व 14 फरवरी (सोमवार) को कोई कारोबार नहीं हुआ। 15 फरवरी को इसके तीन शेयर खरीदे-बेचे गए। 16 फरवरी को सन्नाटा रहा। 17 फरवरी को इसके 20 शेयर खरीदे गए। 18 फरवरी (शुक्रवार) को फिर सन्नाटा रहा। 21 फरवरी को 10 शेयर खरीदे गए। कल, 22 फरवरी को भाव तो 46 रुपए दिख रहा है। लेकिन कारोबार रत्ती भर भी नहीं हुआ। ऐसा तब हो रहा है जब यह स्टॉक ट्रेड फॉर ट्रेड श्रेणी से बाहर है।

यह कंपनी कैसी है, इसमें कितना दम है, यह बाद की बात है। सवाल यह उठता है कि एनएसई और क्रिसिल के कहने पर अगर किसी निवेशक ने बियर्डसेल के 100 शेयर भी खरीद लिए तो वह निकलेगा कैसे क्योंकि इसमें तो तरलता है नहीं? यही नहीं, एनएसई स्वतंत्र इक्विटी रिसर्च के नाम पर इस कंपनी में निवेशकों को फंसाने की कोशिश 4 मई 2010 से कर रहा है। तब भी इसमें तीन दिनों का औसत वोल्यूम 298 शेयर प्रतिदिन का था। अभी महीने भर भी नहीं बीते थे कि 1 जून 2010 को उसने रिपोर्ट का पहला अपडेट पेश कर दिया। तब भी इसका औसत वोल्यूम 298 शेयरों का ही था।

रिसर्च रिपोर्ट का दूसरा अपडेट आया 27 अगस्त 2010 को। तब इसमें रोज का औसत वोल्यूम 311 शेयर का था। तीसरा अपडेट 7 फरवरी 2011 को आया है जब इसमें तीन दिनों का औसत वोल्यूम 426 शेयरों का बताया गया है। जिस एनएसई को अपने वोल्यूम के लिए जाना जाता हो, वहां इतने नगण्य वोल्यूम वाले शेयर को खरीदने की आधिकारिक सिफारिश का क्या मतलब हो सकता है? क्या इससे रिसर्च रिपोर्ट की स्वतंत्रता संदिग्ध नहीं हो जाती?

अब थोड़ा कंपनी पर नजर डाल ली जाए। इसकी शुरुआत 1914 एक ट्रेडिंग कंपनी के रूप में हुई। तब इसका नाम डब्ल्यू ए बियर्डसेल था। 1937 में यह टेक्सटाइल क्षेत्र में उतर गई। 1967 में मेटर इंडस्ट्रीज के साथ विलय के बाद इसका नाम मेटर बियर्डसेल हो गया। उसके बाद वो टेक्सटाइल्स के अलावा निर्यात, इंसूलेशन, पैकेजिंग व टेक्निकल कंसल्टेंसी जैसी सेवाओं में भी उतर गई। 1983 में इसका नाम बियर्डसेल लिमिटेड हो गया।

1985 में हैदराबाद की कंपनी नव भारत फेरो एलॉयज (मौजूदा नाम नव भारत वेंचर्स) इसकी बहुमत शेयरधारिता ब्रिटिश कंपनी टूटल्स से खरीद ली। अब यह पूरी तरह नव भारत वेंचर्स के प्रवर्तकों की कंपनी है। कंपनी करीब पांच दशकों से इंसूलेशन व पैकेजिंग के खास उत्पाद एक्सपैंडेड पॉलिस्टिरीन (ईपीएस) में खुद को जमा चुकी है। यह उत्पाद थर्मोफ्रॉस्ट के नाम से जाना जाता है और ऊष्मा से लेकर ध्वनि को रोकने का काम करती है। कंपनी मेटोप्लास्ट नाम से शेप मोल्डिंग भी बनाती है। वह डिस्पोजेबल कप वगैरह भी बनाती है।

दिसंबर 2010 की तिमाही में बियर्डसेल की बिक्री 40 फीसदी बढ़कर 20.98 करोड़ रुपए हो गई है, जिस पर कंपनी को 69.54 लाख रुपए का शुद्ध लाभ हुआ है। कंपनी की इक्विटी मात्र 3.83 करोड़ रुपए है जो 10 रुपए अंकित मूल्य के शेयरों में विभाजित है। कंपनी का ठीक पिछले बारह महीनों का ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 8.35 रुपए है और उसका शेयर इस समय इससे 5.51 गुना या पी/ई अनुपात पर है। कंपनी के शेयर की बुक वैल्यू ही 55.91 रुपए है, जबकि बाजार में भाव 46 रुपए है। लेकिन उस ‘नोट’ को लेने का क्या फायदा जिसे भुनाया ही न जा सके।

कंपनी की इक्विटी में प्रवर्तकों की हिस्सेदारी 48.05 फीसदी है। बाकी 59.95 फीसदी पब्लिक के पास है। लेकिन पब्लिक के इस हिस्से में से सरकार ने भी इसके 0.47 फीसदी शेयर ले रखे हैं। एफआईआई ने इसमें रत्ती भर का भी निवेश नहीं किया है। चौंकानेवाली बात यह है कि बीमा कंपनियों ने इसकी 20.74 फीसदी इक्विटी ले रखी है। इसमे से एलआईसी के पास 10.32 फीसदी, नेशनल इंश्योरेंस के पास 1.98 फीसदी, यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस के पास 1.52 फीसदी और न्यू इंडिया एश्योरेंस के पास 6.49 फीसदी शेयर हैं। ध्यान दें कि ये सभी सरकारी बीमा कंपनियां हैं। इतने मरे हुए शेयर में इन्होंने इतना निवेश क्यों फंसा रखा है, मेरी समझ से बाहर है। हां, बियर्डसेल मद्रास स्टॉक एक्सचेंज में भी लिस्टेड है तो हो सकता है कि वहां इसमें कुछ कारोबार होता हो।

वैसे, कंपनी के मूल समूह की अगुआ कंपनी नव भारत वेंचर्स और उसके बारे में ब्रोकर फर्मों की तरफ से की गई खरीद की सिफारिशों की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। लेकिन इस पर चर्चा फिर कभी, बाद में।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *