शुक्र दबा क्यों है वीनस रेमेडीज का

वीनस रेमेडीज साफ-सुथरी बीस साल पुरानी दवा कंपनी है। कॉरपोरेट गवर्नेंस के नियमों का बखूबी पालन करती है। आठ सदस्यीय निदेशक बोर्ड के चार सदस्य स्वतंत्र निदेशक हैं। देश की 50 प्रमुख दवा कंपनियों में शुमार है। 75 से ज्यादा उत्पाद हैं। दुनिया के 60 देशों में मौजूदगी है। तीन उत्पादन संयंत्र हैं। एक पंचकुला (पंजाब) में। दूसरा बड्डी (हिमाचल प्रदेश) में। और, तीसरा जर्मनी के शहर वेयरने में। पिछले पांच सालों में बिक्री 141.35 करोड़ रुपए से बढ़कर 357.27 करोड़ रुपए पर पहुंच गई, जबकि शुद्ध लाभ 28.36 करोड़ रुपए से बढ़कर 47.48 करोड़ रुपए हो गया।

बीते वित्त वर्ष 2010-11 में उसकी बिक्री में 14.53 फीसदी और शुद्ध लाभ में 15.66 फीसदी का इजाफा हुआ है। चालू वित्त वर्ष 2011-12 की पहली तिमाही में उसकी बिक्री 20.32 फीसदी बढ़कर 98.87 करोड़ रुपए और शुद्ध लाभ 24.61 फीसदी बढ़कर 13.62 करोड़ रुपए हो गया। लेकिन उसका शेयर साल भर से लगातार गिरता ही चला जा रहा है। पिछले साल 7 सितंबर 2010 को 341 रुपए पर था। दो महीने पहले 20 जून 2011 को 175 रुपए की तलहटी पर पहुंच गया। फिलहाल कल एनएसई (कोड – VENUSREM) में 200.10 रुपए और बीएसई (कोड – 526953) में 200.60 रुपए पर बंद हुआ है।

हमें अगर शेयर बाजार में निवेश करना है तो धंधा बढ़ने और शेयर गिरने की पहेली को बराबर सुलझाते रहना पड़ेगा। अगर कुछ भी नकारात्मक न पकड़ में आए तो यही समझना चाहिए कि यह हमारे अधकचरे शेयर बाजार में उस्ताद लोगों यानी ऑपरेटरों का करतब है और निचले भावों पर ऐसी कंपनी में निवेश कर देना चाहिए। वीनस रेमेडीज पर गौर करें तो पिछले एक महीने में ही उसका शेयर बिना किसी ठोस वजह के 28.25 फीसदी टूटकर 275.95 रुपए से 198 रुपए पर पहुंचा है। इसी दौरान उसने अच्छे नतीजे के साथ दस रुपए अंकित मूल्य के शेयर पर तीन रुपए (30 फीसदी) लाभांश देने की घोषणा की है। उसके अपने अनुसंधान से निकले नए उत्पाद वैन्कोप्लस को अमेरिका में पेटेंट मिला है।

हां, एक बात जरूर है कि कंपनी की बोर्ड मीटिंग कल 24 अगस्त को होने जा रही है जिसमें प्रवर्तकों व उनके सहयोगियों को पूरी तरह शेयरों में बदले जानेवाले वारंट प्रेफरेंशियल आधार पर जारी करने और पहले जारी किए आंशिक रूप से परिवर्तनीय एफसीसीबी (विदेशी मुद्रा परिवर्तनीय बांड) के एवज में शेयर आवंटित करने पर गौर किया जाएगा। लेकिन यह कहीं से नराकात्मक खबर नहीं है। एफसीसीबी के एक हिस्से को शेयरों में बदलने से कंपनी पर बाहरी ऋण का बोझ कम हो जाएगा। और, प्रवर्तकों का वारंट के जरिए इक्विटी हिस्सेदारी बढ़ाना कोई गलत नहीं है क्योंकि अभी उनके पास कंपनी की केवल 30.47 फीसदी हिस्सेदारी है। इसे धीरे-धीरे बढ़ाकर 51 फीसदी पर नहीं ले जाएंगे तो सेबी के नए अधिग्रहण नियमों के बाद कोई भी इस पर कब्जा जमा सकता है।

इसलिए मुझे तो वीनस रेमेडीज के शेयर के गिरने की कोई प्रत्यक्ष वजह नहीं समझ में आती। जहां तक कंपनी की बात है तो उसकी विकास यात्रा लगातार जारी है। उसने विश्वस्तर पर 340 से ज्यादा दवाओं के पेटेंट के लिए आवेदन डाल रखा है, जिसमें से 75 दवाओं का पेटेंट उसे विभिन्न देशों से मिल गया है। इसमें अमेरिका व यूरोप से लेकर ऑस्ट्रेलिया, सुदूर-पूर्व, अफ्रीका व आसियान देश शामिल हैं। कंपनी की बिक्री का 30 फीसदी हिस्सा कैंसर की दवाओं और 35 फीसदी हिस्सा इनफेक्शन मिटाने की दवाओं से आता है। ये दोनों ही सेगमेंट कभी घटने नहीं वाले हैं। बता दें कि कंपनी इनके साथ मूलतः आई/वी (इंट्रावेनस) फ्लूयड व इंजेक्टिबल, सेफ्टाजाइडाइम, एम्लोडिपिन, ग्लाइस्लाजाइड व लिसिनोप्रिल बनाती है।

अगले चार सालों में कंपनी की योजना करीब 200 करोड़ रुपए के पूंजी निवेश की है। यह निवेश वह मौजूदा संयंत्रों को बेहतर बनाने, रिसर्च सुविधाओं को उन्नत करने और नई प्रयोगशालाओं व पेटेंट टेक्नोलॉजी पर करेगी। जाहिर है, मजबूत अतीत व वर्तमान पर खड़ी कंपनी भविष्य को भी रौशन बनाने के लिए प्रयासरत है। कंपनी का शेयर इस समय मात्र 3.54 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है क्योंकि उसका ठीक पिछले बारह महीनों का ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 56.69 रुपए है। शेयर का मौजूदा बाजार भाव 200.60 रुपए है, जबकि उसकी बुक वैल्यू ही 265.50 रुपए है। हमारी राय तो यही है कि इसमें आंख मूंदकर कम से कम तीन साल के नजरिए के साथ निवेश कर देना चाहिए।

कंपनी की इक्विटी मात्र 9.13 करोड़ रुपए है। इसका 69.53 फीसदी हिस्सा पब्लिक के पास है। इसमें से 15.27 फीसदी शेयर एफआईआई और 1.10 फीसदी डीआईआई के पास हैं। इन दोनों ने ही जून तिमाही में अपनी हिस्सेदारी थोड़ी-थोड़ी घटाई है। हो सकता है कि इस स्टॉक में गिरावट की यह भी एक वजह रही हो। दूसरी वजह यह हो सकती है कि प्रवर्तकों ने अपनी 30.47 फीसदी इक्विटी का करीब 70 फीसदी हिस्सा (कंपनी की कुल इक्विटी का 21.14 फीसदी) अब भी गिरवी रखा हुआ है। लेकिन आसान कर्ज लेने के लिए कंपनी अगर प्रवर्तकों के पास बंधे शेयरों को गिरवी रखती है तो इसमें हर्ज ही क्या है? कंपनी घाटे में तो नहीं है!!!

कंपनी के कुल शेयधारकों की संख्या 10,592 है। इनमें से 9393 यानी 88.68 फीसदी छोटे निवेशक हैं जिनका निवेश एक लाख रुपए से कम का है। कंपनी के चेयरमैन व प्रबंध निदेशक पवन कुमार चौधरी हैं। उनकी पत्नी डॉ. मनु चौधरी कंपनी की मुख्य ताकत हैं। सारा आर एंड डी उन्हीं की देखरेख में चलता है। वे कंपनी की संयुक्त प्रबंध निदेशक हैं।

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