सरकारी दावों पर यकीन करें तो देश में अब कोई बेहद गरीब नहीं बचा और स्वास्थ्य, शिक्षा व जीवन स्तर जैसे तमाम पहलुओं को मिलाकर देखें तो बहुआयामी गरीब लोगों का आबादी में हिस्सा 2015-18 से 2019-21 के बीच 24.85% से घटकर 14.96% पर आ चुका है। लेकिन देश की लगभग 60% आबादी या 80 करोड़ गरीबों को पांच किलो राशन मुफ्त देने की कोरोनाकाल में साल 2020 में शुरू की गई योजना पांच साल और बढ़ा दी गई है। अगर सचमुच गरीबी मिट गई है तो उन्हें मुफ्त अनाज देकर करदाताओं के धन से दो लाख करोड़ रुपए की सालाना सब्सिडी देने की ज़रूरत क्या है? सवाल यह भी उठता है कि जहां 65% आबादी की उम्र 35 साल के नीचे है, वहां अगर 60% आबादी पेट भरने के लिए पांच किलो मुफ्त अनाज पर निर्भर है तो उस डेमोग्राफिक डिविडेंड का क्या होगा जिसके दम पर भारत को विकसित देश बनाने का सपना दिखाया जा रहा है। आज की हकीकत यह है कि हमारे 42% ग्रेजुएट बेरोज़गार और भयंकर कुठित हैं। 15 से 24 साल तक की युवा आबादी में बेरोजगारी की दर साल 2022 में 23.22% रही है। शुक्र है कि देश के 57% लोग खुद ही रोज़ी-रोज़गार कर रहे हैं। अन्यथा, करोड़ों खाली हाथ न जाने कितनी तबाही मचा देते। अब शुक्रवार का अभ्यास…
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