दुकानदार बनते गए, ट्रेडर क्यों नहीं!

हम कभी किसान-प्रधान देश रहे होंगे। अब तो व्यापारियों के देश बनते जा रहे हैं। जिसको जहां जगह मिलती है, वहीं दुकान खोलकर बैठ जाता है। ज्वैलर के बगल में ज्वैलर, पानवाले के बगल दूसरा पानवाला, समोसे-पकौड़े की दुकानें एकदम सटी-सटी। सब कमा रहे होंगे, तभी तो दुकानें खोल रहे हैं। लेकिन अजीब विरोधाभास है कि हम ट्रेडर नहीं बन पा रहे। यहां बात शेयर व कमोडिटी बाज़ार की हो रही है। अधिकांश ट्रेडर घाटे में क्यों?

सब्ज़ी से लेकर किराने, कपड़े व दवा के दुकानदार की कमाई का स्रोत यह है कि वो थोक के भाव में खरीदता है और एमआरपी/रिटेल के भाव पर बेचता है। आपने ‘जागो ग्राहक जागो’ का विज्ञापन देखा होगा जिसमें बताया जाता है कि दुकानदार से हमेशा सामान पर छपे एमआरपी (अधिकतम खुदरा मूल्य) तक पर मोतलोत/बारगेन कर सकते हो। यह दवाओं तक पर लागू होता है। जैसे, मैं अपनी दवा वाले से पूरे 10% डिस्काउंट लेता हूं। पहले वाला 5% ही देता था तो उसे छोड़ दिया।

सार यह है कि 100 रुपए की चीज़ दुकानदार ज्यादा से ज्यादा 80 रुपए में खरीदता होगा और अपने खर्च काटने के बाद भी उसे कम से कम 5 रुपए का फायदा होता होगा। सीधा-साधा धंधा है। सब्जी का ठेला चलानेवाला आज़ादपुर या वाशी से थोक में सब्जी उठाता है। हालांकि गली-मोहल्लो में ऐसे थोक बाज़ार सुबह-सुबह लगने की बड़ी पुरानी परंपरा है हमारे यहां। ऐसा ही काम किरानेवाला और केमिस्ट भी करता है। आप दिल्ली या मुंबई की थोक मंडियों में टहल लीजिए, आपको इनके वर्क कल्चर का अंदाजा लग जाएगा।

इसी धंधे के दम पर इनका घर-परिवार मजे में चलता है। इनके धंधे मूल में है थोक में खरीदना और रिटेल में बेचना। आज अगर शेयर बाज़ार में लाखों आम ट्रेडर हाथ जला रहे हैं तो इसकी बुनियादी वजह यह है कि वे व्यापार के इस उसूल, मूल तरीके का पालन नहीं कर रहे। मान लीजिए कि आप मेट्रो या बिग बाज़ार से सेल में भी कोई सामान 200 रुपए में खरीद कर लाए तो क्या अपनी सोसायटी/मोहल्ले में उसे 210-220 पर बेच पाएंगे? कतई नहीं। ऐसा इसलिए कि एक तो सेल में दाम सस्ते नहीं होते। वह केवल सस्ता खरीदने के हमारे मनोविज्ञान से खेलने की गिमिक्स होती है। दूसरे हम वो हवा-पानी नहीं बना सकते कि कोई दूसरा हमसे वही माल 5-10% ऊपर में खरीद ले।

आज की हकीकत यह है कि शेयर या कमोडिटी बाज़ार में जो भी ट्रेड करते हैं, ज्यादातर का घर-परिवार तबाह हो जाता है। हो सकता है कि गुजरात या राजस्थान में कुछ परिवार हों जो इसे धंधा बनाकर कायदे से कमा रहे हों। लेकिन आप गहराई से देखेंगे तो बहुत मुमकिन है कि आप पाएं कि वे भी इसकी टोपी उसके सिर पहनाने की जुगत भिड़ाते रहते हैं। साथ में ब्रोकरेज या एजेंटी का धंधा कर रहे हों। अगर शेयर या कमोडिटी बाज़ार में उतरनेवाला ज्यादातर आम ट्रेडर पिट रहा है तो उसकी इकलौती वजह है कि वो उत्साह व उन्माद में रिटेल के भाव खरीदता और घबराहट में थोक के भाव बेचता है।

दुकानदार होते हुए भी ट्रेडर क्यों नहीं बन पा रहे हैं? धंधे का ठीक उल्टा काम कर रहे हैं तो घाटा छोड़ फायदा कैसे होगा! थोक में खरीदने के बजाय रिटेल के भाव खरीद रहे हैं तो हमसे बड़ा कोई गधा मिल जाए तभी उसे हमसे भी ज्यादा दाम पर खरीदेगा। ऐसे गधे हमारी कपोल-कल्पना में ही मिलते हैं। हकीकत में दुनिया इतनी बेवकूफ नहीं है। वैसे भी, फाइनेंस की दुनिया में तो ज्यादातर बगुला भगत बैठे हैं जिन्हें हम जैसी बेचैन मछलियां बड़ी रास आती हैं।

मैं आनंद राठी, कोटक सिक्यूरिटीज़, एंजेल ब्रोकिंग व एडेलवाइस जैसे कई ब्रोकरेज हाउसों के साथ-साथ अश्विनी गुजराल, सुदर्शन सुखानी, एस पी तुलसियान, विवेक नेगी, निकिता व प्रदीप सुरेका जैसे तमाम विशेषज्ञों व विश्लेषकों की सलाहों पर यदाकदा गौर करता रहता हूं। ज्यादातर मामलों में मैंने पाया है कि जब कोई स्टॉक काफी ऊपर बढ़ चुका होता है, तब वो इसे खरीदने को कहते हैं। जब काफी गिर चुका होता है तो बेचने को कहते हैं। यह भी होता है कि कभी-कभी बिना किसी तुक के इनका बताया शेयर उछल जाता है। इससे लगता है कि हो सकता है कि ये लोग इनसाइडर ट्रेडिंग या भावों को मैनिप्यूलेट करते हों। कुल मिलाकर सच कहूं तो मुझे इनकी सलाहों का कोई तुक, कोई तार्किक आधार नहीं नज़र आता है।

इसलिए एक बात तो मेरी तरह आप भी गांठ बांध लें कि अपने या किसी भी ब्रोकर अथवा एनालिस्ट की सलाहों को कभी तवज्जो न दें। वह अपना धंधा कर रहा है जिसके मूल में है आपको चरका पढ़ाना। दूसरी बात बड़ी सीधी-सरल यह है कि दुकानदारी के मूल मनोविज्ञान को शेयर व कमोडिटी बाज़ार में ट्रेडिंग का मूलाधार बनाइए। थोक में खरीदिए, रिटेल में बेचिए। आप कहेंगे कि शेयर व कमोडिटी बाज़ार में थोक व रिटेल भावों को पकड़ेंगे कैसे तो हम कहेंगे कि भाव अपने-आप में बहुत कुछ कहते हैं, उनका पैटर्न सारा भेद खोल देता है। बस, भावों की चाल और पैटर्न को समझने की दृष्टि चाहिए होती है। पहले अपना मन व मनोविज्ञान दुरुस्त कर लीजिए। एक दुकानदार की तरह सोचना व बरतना शुरू कर दीजिए। ट्रेडर की दृष्टि तक आपको पहुंचाने की जिम्मेदारी हम लेते हैं। तथास्तु…

1 Comment

  1. thanks for great suggestion

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *