जीवन में धंसकर

योग की साधना जीवन से हटकर नहीं की जा सकती। हमें योग का अभ्यास जीवन से मुक्ति पाने के लिए नहीं, बल्कि जीवन को पूर्णता से जीने के लिए करना चाहिए। गीता तक में यही बात कही गई है।

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