बाज़ार के अलग-अलग दौर में ट्रेडिंग की रणनीति अलग होती है। तेज़ी, मंदी व स्थिरता में अलग। अलग-अलग तरह के ट्रेडरों की रणनीति भी भिन्न होती है। इंट्रा-डे वाले कल का रिस्क नहीं चाहते तो सौदे दिन में निपटा देते हैं। वे ज्यादा उछलकूद मचानेवाले शेयर चुनते हैं। पोजिशनल ट्रेडर वाले मंथर गति से बढ़नेवाले शेयर चुनते हैं। स्विंग और मोमेंटम ट्रेड वाले खास किस्म के शेयर चुनते हैं। सोचिए! कहां हैं आप? अब सोम का व्योम…औरऔर भी

बाजार में एक उन्माद-सा छाया हुआ है। लोग खरीदने का फैसला कर चुके हैं। बस, वजह की तलाश है। सेंसेक्स साल के पहले छह महीने में 20.21% बढ़ गया, जबकि इस दौरान अमेरिका का बाज़ार 6.1% और जर्मनी का बाज़ार 2.8% ही बढ़ा है। विदेशी निवेशक भारत में 1000 करोड़ डॉलर से ज्यादा झोंक चुके हैं। बीएसई-500 के करीब 100 मिड व स्मॉलकैप स्टॉक्स पिछले छह महीने में दोगुने हो चुके हैं। ऐसे में बढ़ें ज़रा संभलकर…औरऔर भी

बाज़ार में मूलतः दो तरह की गतियां होती हैं। पहली, जिनके पीछे कोई न कोई घटनाक्रम, कोई खबर होती है। इनको पकड़ना आसान लगता है। लेकिन है बहुत कठिन। फिर खबर हमारे पास पहुंचे, इससे पहले ऊंची पहुंच वाले उसे पकड़कर बाज़ार में खेल कर चुके होते हैं। दूसरी गति अनायास होती है। उसके पीछे कोई प्रत्यक्ष वजह नहीं होती। कमाल की बात है कि अनायास होनेवाली इस गति को पकड़ना आसान है। अब आज का व्यवहार…औरऔर भी

तूफान में दो तरह के लोग बाहर निकलते हैं। एक, राहतकर्मी और दूसरे ऐसे दुस्साहसी लोग जो तूफान से भी मौजमस्ती खींच लाने में पारंगत होते हैं। अगले सोमवार, 12 मई को लोकसभा चुनावों का अंतिम चरण पूरा हो जाएगा। उसी हफ्ते शुक्रवार, 16 मई को नई सरकार का फैसला होगा। ऐसे में बेहद दुस्साहसी या उस्ताद ट्रेडर ही शुक्रवार 9 मई के बाद अपनी पोजिशन खुली रखेंगे। निकालने के लिए कैश, आगाज़ करें नए हफ्ते का…औरऔर भी

किसी भी अर्थशास्त्री से पूछें कि भारतीय अर्थव्यवस्था के बढ़ने की सबसे बड़ी रुकावट क्या है तो दस में नौ का जवाब होगा कमज़ोर इंफ्रास्ट्रक्चर। अगर आज हमारा कॉरपोरेट क्षेत्र नमो-नमो कहते हुए नरेंद्र मोदी की जयकार कर रहा है तो उसकी बड़ी वजह यह है कि उसे लगता है कि मोदी प्रधानमंत्री बने तो देश का इंफ्रास्ट्रक्चर सुधर  सकता है। यह उम्मीद आगे दबाव का काम करेगी। इसलिए आज तथास्तु में इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़ी एक कंपनी…औरऔर भी

विश्वविजयी होना, सब पर राज करना बड़ी सहज मानवीय इच्छा है। बाज़ार को भी हम मुठ्ठी में कर लेना चाहते हैं। चाहते हैं कि वो हमारे विचार से चले। धीरे-धीरे ऐसे सूत्र का भ्रम पाल लेते हैं जिसकी बदौलत हम न्यूनतम भाव पर खरीदकर उच्चतम पर बेच सकते हैं। तमाम ट्रेडर/निवेशक ऐसा सोचकर दांव पर दांव लगाते जाते हैं। ऐसे लोग ज़िदगी में बहुत सारी नाकामियां झेलने के लिए अभिशप्त हैं। कैसे बचें इससे, आइए देखते हैं…औरऔर भी

सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के विनिवेश से हुई अब एक लाख करोड़ रुपए के ऐतिहासिक आंकड़े के पार होने जा रही है। इस हफ्ते 10 मई को खुल रहे पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन (पीएफसी) के फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर (एफपीओ) के साथ सरकार यह आंकड़ा हासिल कर लेगी। पीएफसी के एफपीओ के जरिए सरकार अपनी पांच फीसदी हिस्सेदारी की बिक्री करेगी, जिससे उसे 1100 करोड़ रुपए मिलने की उम्मीद है। इसके अलावा कंपनी के 15 फीसदी नएऔरऔर भी

पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन (पीएफसी) और रूरल इलेक्ट्रीफिकेशन कॉरपोरेशन (आरईसी) दोनों सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां हैं। कल गिरते हुए बाजार में भी पीएफसी और आरईसी के शेयर बीएसई में थोड़ा-थोड़ा बढ़कर क्रमशः 294.75 रुपए और 277.90 रुपए पर बंद हुए हैं। एनएसई में पीएफसी का बंद भाव 296.90 रुपए और आरईसी का बंद भाव 277.65 रुपए रहा है। इन दोनों ही शेयरों में एक खास किस्म की चाल नजर आ रही है। पीएफसी ने तो इसी 1 जूनऔरऔर भी