दुनिया में कृषियोग्य जमीन के मामले में भारत अमेरिका के बाद दूसरे नंबर पर है। अमेरिका के पास 1627.51 लाख हेक्टेयर खेतिहर जमीन है। चीन का कुल क्षेत्रफल हमारे तीन गुने से ज्यादा है। लेकिन हमारे पास खेती लायक जमीन 1579.23 लाख हेक्टेयर है, जबकि चीन के पास 1099.99 लाख हेक्टेयर। फिर भी चीन का अनाज उत्पादन हमसे कई गुना ज्यादा है। कारण, चीन की तुलना में हमारे यहां गेहूं की उत्पादकता 55%, धान की 51%, तिलहनऔरऔर भी

कृषि मंत्रालय की तरफ से दी गई ताजा जानकारी के मुताबिक अभी तक रबी सीजन में कुल 290.67 लाख हेक्‍टेयर क्षेत्र में गेहूं की बुआई कर दी गई है। पिछले साल इसी तिथि तक कुल 288.38 लाख क्षेत्र में गेहूं की बुआई की गई थी। पिछले साल की तुलना में इस साल यह कुल 2.29 लाख हेक्‍टेयर अधिक है। मध्‍यप्रदेश के 4.79 लाख हेक्‍टेयर, राजस्‍थान के 3.11 लाख हेक्‍टेयर, झारखंड के 0.58 लाख हेक्‍टेयर और छत्‍तीसगढ़ केऔरऔर भी

इस बार देश में दहलन और तिलहन कम बोया गया है। अभी तक दालों की बुआई 140.66 लाख हेक्‍टेयर में हुई है, जबकि पिछले वर्ष यह रकबा 142.38 लाख हेक्‍टेयर था। चने की बुआई पिछले वर्ष की इसी अवधि में 92.77 लाख हेक्‍टेयर की तुलना में 87.22 लाख हेक्‍टेयर में की गई है। तिलहन के मामले में पिछले वर्ष के 85.5 लाख हेक्‍टेयर की तुलना में अब तक 80.96 लाख हेक्‍टेयर क्षेत्र में बुआई की जाने कीऔरऔर भी

कृषि मंत्रालय के अनुसार इस बार धान और तिलहन के बोवाई रकबे में काफी वृद्धि हुई है। इससे लगता है कि चावल व खाद्य तेलों की सप्लाई ज्यादा रहेगी जिससे इनके दाम नीचे आ सकते हैं। कृषि मंत्रालय ने बताया है कि राज्‍यों से प्राप्‍त आंकड़ों के अनुसार 16 सितंबर ‍तक 376.77 लाख हेक्‍टेयर क्षेत्र में धान की बोवाई हुई है। यह पिछले साल के मुकाबले 33.55 लाख हेक्‍टेयर अधि‍क है। पश्‍चि‍म बंगाल, बि‍हार, झारखंड, उत्‍तर प्रदेश,औरऔर भी

मुद्रास्फीति के बढ़ते जाने की चिंता रिजर्व बैंक पर लगता है कि कुछ ज्यादा ही भारी पड़ गई है। इसको थामने के लिए उसने ब्याज दरों में सीधे 50 आधार अंक या 0.50 फीसदी की वृद्धि कर दी है। इतनी उम्मीद किसी को भी नहीं थी। आम राय यही थी कि रिजर्व बैंक ब्याज दरें 0.25 फीसदी बढ़ा सकता है। कुछ लोग तो यहां तक कह रहे थे कि औद्योगिक धीमेपन को देखते हुए शायद इस बारऔरऔर भी

केंद्र सरकार ने चालू वित्त वर्ष 2011-12 के पहले दो महीनों में दलहन की खेती करने वाले 60,000 वर्षा आधारित गांवों को प्रोत्‍साहित करने के लिए विभिन्‍न राज्‍यों को 109.9 करोड़ रुपए जारी कर दिए हैं। इसमें गुजरात, मध्य प्रदेश और तमिलनाडु को कोई रकम नहीं दी गई गै। यह कार्यक्रम राष्‍ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) का हिस्‍सा है, जिसके लिए 300 करोड़ रुपए निर्धारित किए गए हैं। आवंटित और जारी की गई रकम (करोड़ रुपए में)औरऔर भी

वैश्विक कृषि उत्पादन की वृद्धि दर पिछले दशक के 2.6 फीसदी के मुकाबले चालू दशक में घटकर 1.7 फीसदी रहने का अनुमान जताया गया है। तिलहन व अनाज के उत्पादन में कमी के चलते वैश्विक खाद्यान्न उत्पादन घटने की आशंका है। आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) और खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) द्वारा जारी एक संयुक्त कृषि परिदृश्य के मुताबिक, अल्पकाल में हालांकि कृषि उत्पादन बढ़ेगा। ओईसीडी-एफएओ की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘वैश्विक कृषि उत्पादनऔरऔर भी

इस साल भी दालों की महंगाई घटने के आसार नहीं हैं क्योंकि इस साल पिछले साल की बनिस्बत कम क्षेत्रफल में दलहन की बोवाई की गई है। कृषि मंत्रालय को राज्यों से मिले आंकड़ों के अनुसार 2 जुलाई 2010 तक देश भर में 5.15 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में दलहनी फसलें बोई गई हैं, जबकि साल भर पहले 2 जुलाई 2009 तक दलहन का बोवाई रकबा 5.18 लाख हेक्टेयर था। इस तरह इस साल 3000 हेक्टेयर कम रकबेऔरऔर भी

जलवायु परिवर्तन के नुकसान ही नहीं फायदे भी हैं। कृषि क्षेत्र के जानकारों का दावा है कि भारत में खेती को इसका फायदा मिला है। वैश्विक स्तर पर गेहूं व चावल जैसे अनाज की पैदावार में बढ़ोतरी हुई है तो उसके पीछे जलवायु परिवर्तन का भी हाथ है। इस संबंध में हुए अध्ययन से यह तथ्य भी सामने आया है कि देश के कई हिस्सों का औसत तापमान बढ़ा तो कुछ जगहों पर घटा भी है। कृषिऔरऔर भी