अपनी ईमानदारी के लिए मशहूर, लेकिन हर तरफ से भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी सरकार के मुखिया, हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने स्वीकार किया है कि भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए उनकी सरकार ने पिछले साल कई कानूनी व प्रशासनिक कदम उठाए। फिर भी सार्वजनिक जीवन में पारदर्शिता, जवाबदेही व शुचिता लाने में अभी लंबा वक्त लग सकता है। राज्यों के मुख्य सचिवों की बैठक को सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि बेहतर प्रशासन सुनिश्चितऔरऔर भी

आर्थिक ठहराव की शिकार अर्थव्यवस्था ने यूपीए सरकार के मुखिया प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को राज्यों के सामने याचक या नसीहत देने की मुद्रा में खड़ा कर दिया है। उन्होंने शुक्रवार को राजधानी दिल्ली में राज्यों के मुख्य सचिवों से कहा कि वे इस बात पर सावधानी से विचार करें कि किस तरह राज्य राष्ट्रीय मैन्यूफैक्चरिंग नीति का अधिकतम लाभ उठा सकते हैं। एक दशक में देश के सकल घरेलू उत्पादन में मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र के योगदान को 25औरऔर भी

केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश के मुताबिक, अब समय आ गया है कि महात्‍मा गांधी राष्‍ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) पर अमल के दूसरे चरण की शुरुआत की जाए। गुरुवार को राजधानी दिल्ली में छठे मनरेगा सम्‍मेलन को संबोधित करते हुए उन्‍होंने कहा कि राज्‍य सरकारों और विभिन्‍न समूहों के साथ व्‍यापक विचार-विमर्श के बाद अनेक नए विचार सामने आए और उनमें से कुछ को अगले महीने तक मनरेगा के दूसरे चरण में शामिल करऔरऔर भी

।।राकेश मिश्र।।* उदारवादी व्यवस्था में भारतीय राजस्व और अर्थशास्त्र के आज़ादी के पचास सालों में तैयार किए गए गहन मूलभूत सिद्धांतों और व्यवस्था के आधारभूत तत्वों को तथाकथित नए उदारवादी मानकों के अनुसार तय किया जाने लगा। यह दौर शुरू हुआ आर्थिक उदारीकरण के दूसरे चरण में 1998 के दौरान। इस दौर के अर्थशास्त्रियों की समाजशास्त्रीय समझ के अति उदारीकरण का परिणाम यह निकला कि देश में महंगाई की अवधारणा और मूल्य सूचकांक के मानक आधुनिक अर्थशास्त्रऔरऔर भी

इधर सरकार मीडिया को लेकर कुछ ज्यादा ही सक्रिय हो गई है। एक तरफ संचार मंत्री कपिल सिब्बल गूगल से लेकर फेसबुक जैसे इंटरनेट माध्यम को लेकर भिड़े पड़े हैं, दूसरी तरफ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने प्रिंट माध्यम में पेड न्यूज़ के बढ़ते सिलसिले पर चिंता जताई है। एक अन्य विकासक्रम में सरकार ने एनडीटीवी इंडिया से लंबे समय से जुड़े पत्रकार पंकज पचौरी को प्रधानमंत्री कार्यालय में सूचना सलाहकार नियुक्‍त कर दिया है। उनकी नियुक्ति तत्‍कालऔरऔर भी

कॉरपोरेट क्षेत्र में बहस छिड़ी है कि प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह देश के लिए वरदान हैं या अभिशाप। देश की सबसे बड़ी हाउसिंग फाइनेंस कंपनी, एचडीएफसी के प्रमुख दीपक पारेख जैसे दिग्गज कहते हैं कि डॉ. सिंह के रूप में हमें अब तक के सबसे अच्छे प्रधानमंत्री मिले हैं। वे एकदम बेदाग राजनेता हैं। इसलिए देश के वरदान हैं। वहीं दूसरा पक्ष कहता है कि डॉ. सिंह भले ही स्वच्छतम छवि के नेता हों, लेकिन उन्होंने जिसऔरऔर भी

।।मनमोहन सिंह।। संस्‍कृत भारत की आत्‍मा है। संस्‍कृत विश्‍व की प्राचीनतम जीवित भाषाओं में से एक है। लेकिन प्रायः इसके बारे में गलत धारणा है कि यह केवल धार्मिक श्‍लोकों और अनुष्ठानों की ही भाषा है। इस प्रकार की भ्रांति न केवल इस भाषा की महत्‍ता के प्रति अन्‍याय है, बल्कि इस बात का भी प्रमाण है कि हम कौटिल्य, चरक, सुश्रुत, आर्यभट्ट, वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्‍त व भास्‍कराचार्य जैसे अनेक लेखकों, विचारकों, ऋषि-मुनियों और वैज्ञानिकों के कार्य केऔरऔर भी

इस समय हम वैज्ञानिक अनुसंधान पर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का मात्र एक फीसदी खर्च कर रहे हैं। इसे 12वीं पंचवर्षीय योजना में हमें कम से कम दो फीसदी करना होगा। यह कहना है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का। वे मंगलवार को भुवनेश्वर के आईआईटी परिसर में 99वीं भारतीय विज्ञान कांग्रेस का उद्घाटन करते हुए यह बात कही। उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि चीन इधर विज्ञान के क्षेत्र में भारत से आगे बढ़ गया है।औरऔर भी

उधर प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने नए साल के संदेश में कहा कि पेट्रोलियम पदार्थों के दाम तर्कसंगत होने चाहिए, इधर सरकारी तेल कंपनियों ने नए साल के पहले कामकाजी दिन सोमवार से पेट्रोल के दाम प्रति लीटर 2.10 रुपए से 2.13 रुपए बढ़ाने की तैयारी कर ली है। कंपनियों का मानना है कि डॉलर के मुकाबले रुपए के कमजोर होने से कच्चा तेल महंगा हो गया है। इसलिए पेट्रोल के दाम बढ़ाना उनकी मजबूरी है। इसीऔरऔर भी

टीम अण्णा ने वह बात कह डाली जो अभी तक विपक्ष भी इतना खुलकर कहने में हिचकता रहा है। फिर. विपक्ष की विश्वनीयता इतनी कम है कि उसके कहे को राजनीतिक बयानबाजी मानकर कोई तवज्जो नहीं देता। लेकिन टीम अण्णा की बात को देश काफी गंभीरता से ले रहा है और कांग्रेस के तमाम नेताओं से लेकर लालू यादव जैसे विदूषक नेताओं के हमलों के बावजूद आम आदमी को अण्णा हज़ारे और उनके साथ चल रहे सामाजिक-राजनीतिकऔरऔर भी