उधर प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने नए साल के संदेश में कहा कि पेट्रोलियम पदार्थों के दाम तर्कसंगत होने चाहिए, इधर सरकारी तेल कंपनियों ने नए साल के पहले कामकाजी दिन सोमवार से पेट्रोल के दाम प्रति लीटर 2.10 रुपए से 2.13 रुपए बढ़ाने की तैयारी कर ली है। कंपनियों का मानना है कि डॉलर के मुकाबले रुपए के कमजोर होने से कच्चा तेल महंगा हो गया है। इसलिए पेट्रोल के दाम बढ़ाना उनकी मजबूरी है।
इसी ‘मजबूरी’ को हमारे प्रधानमंत्री दामों को तर्कसंगत बनाना कहते हैं। सरकार ने पारदर्शिता के नाम पर हर महीने के दोनों पखवाड़ों के पहले दिन देश में आयातित कच्चे तेल के औसत मूल्य के साथ ही डीजल, रसोई गैस व कैरोसिन पर होनेवाली अंडर-रिकवरी का ब्यौरा देना शुरू कर दिया है। लेकिन वह साफ नहीं करती कि इस अंडर-रिकवरी की गणना इम्पोर्ट पैरिटी प्राइस या एक्सपोर्ट पैरिटी प्राइस के आधार पर कैसे किया जा रहा है। वह नहीं बताती कि जब कच्चे तेल की 78 फीसदी मांग हमें आयात से पूरी करनी पड़ती है तो हम देश की धरती के भीतर से निकाले गए कच्चे तेल व पेट्रोलियम पदार्थों का निर्यात क्यों करते हैं?
फिर भी प्रधानमंत्री को बोलना है तो वे बोलने का अनुष्ठान पूरा ही करते हैं। वह भी यह दावा करते हुए कि उनकी सरकार पारदर्शिता व जनभागीदारी बढ़ाने को प्रतिबद्ध है। मनमोहन सिंह ने साल 20132 की पूर्व संध्या पर संदेश में कहा कि पेट्रोलियम क्षेत्र में अधिक युक्तिसंगत मूल्य निर्धारण नीति की जरूरत है और घरेलू ईंधन मूल्यों को वैश्विक मूल्यों के साथ जोड़ने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि इसे तत्काल नहीं किया जा सकता, लेकिन हमें इसके लिए चरणबद्ध योजना और बदलाव के लिए उपयुक्त माहौल बनाना होगा।
बात दें कि वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने हाल में डरा चुके हैं कि सब्सिडी खर्च करीब एक लाख करोड़ रुपए बढ़ जाने की आशंका है। वर्ष 2010-11 के बजट में विभिन्न प्रकार की सब्सिडी के लिए 1.32 लाख करोड़ रुपए का प्रावधान रखा गया है। बहरहाल, कच्चे तेल और उर्वरक की वैश्विक कीमतें बढ़ने से देश में इन उत्पादों पर दी जाने वाली सब्सिडी में भी काफी वृद्धि हुई है।
प्रधानमंत्री डॉ. सिंह ने कहा कि राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए भी सब्सिडी कम करना आवश्यक है जो पिछले तीन सालों में तेजी से बढ़ी है। देश के सामने मुख्य चुनौतियों को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि हालांकि हमारे लिए अर्थव्यवस्था के प्रदर्शन से संतुष्ट होने का हर कारण है, लेकिन ऐसा निष्कर्ष निकालना गलत होगा कि भारत अब तीव्र विकास प्रक्रिया की राह पर बगैर किसी दिक्कत के आगे बढ़ने के लिए तैयार है। हमारी वृद्धि संभावनाएं वास्तव में बेहतर हैं। लेकिन अगर हमें वृद्धि की इस गति को आनेवाले वर्षों में भी बनाए रखना है तो हमें कई चुनौतियों का सामना करना होगा।
उन्होंने कहा कि हमें याद रखना चाहिए कि विकास के लिए परिवर्तन जरूरी है। परिवर्तन के लिए आगे बढ़ते समय हमें इसके बुरे प्रभावों से आबादी के कमजोर तबके को बचाना भी होगा, लेकिन हमें बदलाव का आंख मूंदकर विरोध नहीं करना चाहिए। यूपीए सरकार को अपने घटक दल तृणमूल कांग्रेस और अन्य पार्टियों के विरोध के कारण विदेशी निवेशकों के लिए मल्टी ब्रांड खुदरा क्षेत्र को खोलने और पेंशन क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश जैसे महत्वपूर्ण सुधारों से कदम वापस खींचने पड़े।
प्रधानमंत्री ने कहा कि आर्थिक सुरक्षा और समृद्धि बनाये रखने के लिए आज सबसे अहम मुद्दा वित्तीय स्थायित्व का है। उन्होंने कहा, “भारत ने वित्तीय अस्थिरता के लिए पहले भारी कीमत चुकाई है। हममे से कइयों को वर्ष 1990-91 के वो दिन याद होंगे, जब हमें मदद के लिए पूरी दुनिया में घूमना पड़ा था। हम सभी को इस बात का ध्यान रखना होगा कि फिर ऐसी स्थिति नहीं आनी चाहिए।”
उन्होंने कहा कि सरकार बढ़ते राजकोषीय घाटे को देखते हुए भविष्य के वित्तीय स्थायित्व को लेकर चिंतित है। आर्थिक वृद्धि की प्रक्रिया बीच में बिगड़े नहीं, इसके लिए वित्तीय स्थायित्व जरूरी है। इसके साथ ही राष्ट्रीय संप्रभुता और आत्मसम्मान को भी ठेस नहीं पहुंचनी चाहिए।
मनमोहन ने कहा वित्तीय स्थायित्व के लिये फिलहाल सबसे अहम कदम वस्तु व सेवाकर (जीएसटी) को शुरू करना है। इससे हमारे अप्रत्यक्ष कर प्रणाली को आधुनिक बनाया जा सकेगा और आर्थिक क्षमता में सुधार होगा। कुल मिलाकर इससे राजस्व में वृद्धि होगी। इसके बाद अगला महत्वपूर्ण कदम होगा सब्सिडी कम करना। कुछ सब्सिडी जैसे खाद्य सुरक्षा विधेयक के अमल में आने के बाद खाद्य सब्सिडी में विस्तार तो समझ में आता है लेकिन कुछ सब्सिडी ऐसी नहीं है और इन्हें नियंत्रित किया जाना चाहिए।