यकीनन, आप भी इस बात से इत्तेफाक करेंगे कि शेयर बाजार से पैसे कमाने का आदर्श तरीका है – सबसे कम भाव पर खरीदो और अधिकतम भाव पर बेचकर निकल जाओ। लेकिन व्यवहार में ऐसा हो नहीं पाता क्योंकि जब कोई शेयर अपने न्यूनतम स्तर पर होता है तब हमें लगता है कि यह तो डूब रहा है, अभी और नीचे जाएगा। वहीं, जब शेयर बढ़ रहा होता है तब हमें लगता है कि अभी और ऊपरऔरऔर भी

मास्टेक लिमिटेड के चेयरमैन, प्रबंध निदेशक और सीईओ भी सुधाकर राम हैं। मैं तो उनके विचारों का मुरीद हूं। आप भी पढेंगे तो कायल हो जाएंगे। करीब डेढ़ साल पहले शिक्षा पर मैंने उनका लेख पढ़ा था जिसमें उन्होंने एक अनुसंधान का जिक्र करते हुए लिखा था कि चार साल की उम्र तक लगभग हर बच्चा जीनियस होता है। फिर मैंने मास्टेक फाउंडेशन की तरफ से चलाई जानेवाली वेबसाइट पर उनके कई लेख पढ़े और इस शख्सऔरऔर भी

मुथूत फाइनेंस ने अपने 1.95 लाख से ज्यादा शेयधारकों को लिस्टिंग के पहले ही दिन रुला डाला। 175 रुपए पर जारी हुआ उसका शेयर सुबह 180 रुपए पर लिस्ट होने के थोड़ी देर बाद करीब 13 फीसदी बढ़कर 198 रुपए पर पहुंच गया। लेकिन बाद में फटाफट गिरकर 161.50 रुपए तक चला गया। दिन भर गहमागहमी रही। बीएसई में इसके 2,26,76,312 शेयरों और एनएसई में 6,06,13,615 शेयरों में कारोबार हुआ। बीएसई में पता नहीं कि इसमें सेऔरऔर भी

विश्व बाजार में आने वाले महीनों में भी कच्चे तेल के दाम यदि 100 डॉलर प्रति बैरल के ईदगिर्द ही टिके रहते हैं तो सार्वजनिक क्षेत्र की तेल विपणन कंपनियों (ओएमसी) की अंडर-रिकवरी या नुकसान अगले वित्त वर्ष में 98,000 करोड़ रुपए तक पहुंच सकता है। सार्वजनिक क्षेत्र की तीन प्रमुख ओएमसी हैं – बीपीसीएल, एचपीसीएल और इंडियन ऑयल। ब्रोकर फर्म इंडिया इनफोलाइन (आईआईएफएल) की एक रिपोर्ट में यह अनुमान व्यक्त करते हुए कहा गया है किऔरऔर भी

हमारे जमाने का दस्तूर ही ऐसा है कि एक के नुकसान में दूसरे का फायदा है। हर मोड़ पर ठग लूटने के लिए तैयार बैठे हैं। हमारा बाजार अभी बहुत कच्चा है। इसलिए ज्यादा सच्चा होना अच्छा नहीं।और भीऔर भी

साल 2010 में 5700 से 6160 तक। यह रहा है साल के शुरू से लेकर अंत का निफ्टी का सफर। निफ्टी एक मुकाम हासिल कर चुका है। अब स्टॉक्स भी जनवरी 2011 में ऐसा करेंगे। आप स्क्रीन देखते हैं, बिलखते हैं और अपना हौसला खो बैठते हैं। लेकिन हम कर भी क्या सकते हैं। यह भारतीय बाजार के सिस्टम की नाकामी है। दिसंबर के सेटलमेंट में जिन स्टॉक्स के भावों में गिरावट आई, वे कभी सुधर करऔरऔर भी

गाढ़ी कमाई के पैसे पर कोई अय्याशी नहीं करता। आसानी से मिले पैसे ही उड़ाए जाते हैं। मान लीजिए किसी ने दस साल में मेहनत से 50 लाख रुपए जुटाए हैं तो वह इसका बहुत हुआ तो 10 फीसदी हिस्सा ही कार, विदेश यात्रा और मौजमस्ती पर खर्च करेगा। लेकिन अगर किसी ने एक झटके में इतनी रकम बनाई है तो 100 फीसदी रकम वह महंगी कार, विदेश यात्रा, बिजनेस क्लास में सफर और फाइव स्टार होटलोंऔरऔर भी

विदेशी मुद्रा के असली सौदागर हैं हमारे बैंक और इनके प्रमुख ग्राहक हैं हमारे आयातक-निर्यातक। आयातकों व निर्यातकों को चिंता रहती है कि उनका विदेशी मुद्रा खर्च या आमदनी कहीं विनिमय दरों के उतार-चढ़ाव के चलते भारतीय मुद्रा में घट-बढ़ न जाए। इसलिए वे बैंकों के पास ऐसे डेरिवेटिव सौदों के लिए जाते हैं ताकि इससे बचा जा सके। ऐसे ज्यादातर सौदे ओटीसी (ओवर द काउंटर) बाजार यानी दो पार्टियों ग्राहक व विक्रेता के बीच आपस मेंऔरऔर भी

विदेशी मुद्रा के डेरिवेटिव सौदे इसीलिए होते हैं कि आयातक-निर्यातक डॉलर से लेकर यूरो व येन तक की विनिमय दर में आनेवाले उतार-चढ़ाव से खुद को बचा सकें और डेरिवेटिव सौदे कराने का काम मुख्य रूप से हमारे बैंक करते हैं। लेकिन अगस्त 2006 से अक्टूबर 2008 के दौरान जब रुपया डॉलर के सापेक्ष भारी उतार-चढ़ाव का शिकार हुआ, तब बैंकों ने हमारे निर्यातकों को ऐसे डेरिवेटिव कांट्रैक्ट बेच दिए जिनसे उनको तो फायदा हो गया, लेकिनऔरऔर भी

भारतीय रुपया डॉलर और यूरो जैसी विदेशी मुद्राओं के खिलाफ मजबूत होता जा रहा है। पिछले साल मार्च में रुपए की विनिमय दर प्रति डॉलर 50 रुपए के आसपास थी। लेकिन अब यह 45 रुपए के नीचे जाती दिख रही है। यानी जहां पहले एक डॉलर में 50 रुपए मिलते थे, वहीं अब 45 रुपए ही मिलते हैं। इसने अपनी आय का बड़ा हिस्सा विदेश से हासिल करनेवाली आईटी कंपनियों को परेशान कर दिया है क्योंकि डॉलरऔरऔर भी