प्रकृति की संरचनाएं जैसी जटिल हैं, वैसी ही जटिलता हमारे भाव-संसार, विचारों की दुनिया और सामाजिक रिश्तों में भी है। जो इसे नहीं देख पाते या नज़रअंदाज़ करते हैं, वे अक्सर ठोकर खाते रहते हैं।और भीऔर भी

स्त्री होने के नाते ही पत्नी का भाव-संसार पति से भिन्न हो जाता है। हमें इस भिन्नता को अंगीकार करना पड़ेगा। उसका चेहरा हमारे चेहरे में समा नहीं सकता, साथ जुड़कर नया चेहरा बनाता है।और भीऔर भी

मन में कोई ख्याल तभी आता है जब बाहर के संसार में उसकी जरूरत बन रही होती है। ख्याल को हकीकत बनाने में सिर्फ हमारा नहीं, बाहरी संसार का भी हित है तो वह सहयोग भी करता है। भले ही हमें न दिखे।और भीऔर भी