फकीर बोला, “मुझमें, तुझमें कोई फर्क नहीं। बस, समय और फासले का फेर है। मैं सच तक पहुंच चुका हूं, जबकि तू अभी रास्ते में हैं। तू भी यहां पहुंचकर वही बोलेगा। फिर बहस क्यों? जिरह का क्या तुक!”और भीऔर भी

सच-झूठ के बीच कभी रहा होगा काले-सफेद या अंधेरे उजाले जैसा फासला। लेकिन अब यह फासला इतना कम हो गया है कि कच्ची निगाहें इसे पकड़ नहीं सकतीं। जौहरी की परख और नीर-क्षीर विवेक पाना जरूरी है।और भीऔर भी