अपने प्रमुखतम स्टॉक एक्सचेंज एनएसई का नारा है सोच कर, समझ कर, इन्वेस्ट कर। यह अलग बात है कि वो सोच-समझकर इन्वेस्ट करने का कोई टूल उपलब्ध नहीं कराता। वो यह भी नहीं बताता कि शेयर बाज़ार में इन्वेस्ट करने के लिए सोचने-समझने के साथ ही बराबर सतर्क रहने की भी ज़रूरत है। दुनिया हर पल बदलती रहती है, भले ही हमें दिखे या न दिखे। लेकिन शेयर बाज़ार तो हर पल बदलता ही नहीं, दिखता भीऔरऔर भी

भारत जैसी संभावनाओं से भरी अर्थव्यवस्था बराबर बढ़ती ही रहती है तो शेयर बाज़ार भी बराबर नई ऊंचाइयां छूता रहता है। लेकिन तेज़ी के हर शिखर के दौरान ऊपर-ऊपर तैरते झाग के नीचे तलहटी में कुछ ऐसी कंपनियां होती हैं जो भरपूर संभावनाओं के बावजूद भीड़ और भेड़चाल से दूर पड़ी रहती हैं। करीब छह साल पहले रविवार, 29 जुलाई 2018 की बात है। तब भी दो दिन पहले शुक्रवार को सेंसेक्स और निफ्टी ने नया शिखरऔरऔर भी

संस्कृत में एक कथा भी है और कहावत भी, जिसमें कहा गया है – महाजनो येन गतः स पन्थाः, मतलब महापुरुष जिस रास्ते पर चलें, वही सही रास्ता है। यही कहावत पंचतंत्र की एक कथा – चार मूर्ख पंडित में यह अर्थ पकड़ लेती है कि जहां बहुत सारे लोग जा रहे हों, वही सही रास्ता है। हमारे शेयर बाज़ार में यही सोच भीड़ के पीछे चलने को सही रास्ता बता देती है। व्यक्ति ही नहीं, अनुभवीऔरऔर भी

माना जाता है कि शेयर बाज़ार स्टॉक्स की प्राइस डिस्कवरी या मूल्य की खोज का आदर्श माध्यम है। लेकिन इस बाज़ार में ‘खेला’ होता रहता है। अपने यहां ठीक आम चुनावों के बाद दो दिन में जो ‘खेला’ हुआ, उसका भेद शायद कभी न खुले। लेकिन मामला इतना आसान भी नहीं, जैसा केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल बताते हैं कि एक्जिट पोल आने के बाद विदेशी निवेशकों ने ऊंचे भाव पर शेयर खरीदे, जबकि भारतीय निवेशकों ने ज्यादाऔरऔर भी

चढ़ जा बेटा सूली पर, भला करेंगे राम। खुद मौज करते हुए राम का वास्ता देकर दूसरों को सूली पर चढ़ाने की यह सलाह ठीक नहीं। वो भी तब, जब इसे देश के सर्वोच्च पद पर बैठा कोई शख्स दे रहा हो। लेकिन यह सच है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ठीक चुनावों के बीच टीवी पर इंटरव्यू में लोगों को शेयर बाज़ार में निवेश करने की सलाह देते हुए कहा कि 4 जून को नतीजों केऔरऔर भी

ब्रोकरेज़ फर्म देशी हो या विदेशी, उनका समान धंधा है कि वे उन्हीं स्टॉक्स को खरीदने की सिफारिश करती हैं जो पहले से काफी चढ़ चुके होते हैं। कुछ ही दिन पहले जानी-मानी विदेशी ब्रोकरेज़ फर्म सीएलएसए ने 54 स्टॉक्स की लिस्ट जारी की है जिसे उसने मोदी स्टॉक्स का नाम दिया है। इनमें लार्सन एंड टुब्रो, एनटीपीसी, एनएचपीसी, पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन, ओएनजीसी, इंद्रप्रस्थ गैस, महानगर गैस, भारती एयरटेल, इंडस टावर्स, रिलायंस इंडस्ट्रीज़, एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक,औरऔर भी

जो अड़ता है, वो टूट जाता है और जो ढलता है, वही लम्बा चलता है। परिस्थितियां हमेशा एक-सी नहीं होतीं। हमें उनसे निपटने के लिए उनके हिसाब से ढलना पड़ता है। कुदरत का यह नियम शेयर बाज़ार पर ही लागू होता है। बाज़ार के हर चक्र में एक ही रणनीति नहीं चल सकती। इस समय बाज़ार में अनिश्चितता का जो आलम है, उसके हिसाब से हमें अपनी निवेश रणनीति को ढालना होगा। यकीनन, नज़र अल्पकालिक नहीं, बल्किऔरऔर भी

वित्त वर्ष 2023-24 की मार्च तिमाही के कॉरपोरेट नतीजे और 18वीं लोकसभा चुनावों का प्रचार अब अंतिम दौर में है। जिस तरह कंपनी प्रबंधन वर्तमान की कमियां छिपाकर भविष्य की संभावनाओं के बड़े-बड़े दावे करता है, उसी तरह राजनीतिक पार्टी का नेता अपनी उपलब्धियों से लेकर भावी योजनाओं के बारे में बड़ी-बड़ी बातें करता है। कंपनियां प्रेस कॉन्फ्रेंस लेकर विज्ञप्तियों तक निकालती हैं तो राजनीतिक पार्टियां घोषणा-पत्र लाती हैं और नेता आमसभाएं व रैलियां तक करते हैं।औरऔर भी

शेयर बाज़ार नर्वस होने लगा है। लोकसभा चुनाव के पहले तीन चरणों में हुए कम मतदान ने यह कयास तेज़ कर दिया है कि भाजपा-नीत एनडीए को 400 से कम सीटें मिलने जा रही हैं। मतदान कम होने की वजह भाजपा व संघ के कार्यकर्ताओं में इस बार छाई पस्ती है जिन्हें पार्टी में बाहर से लाए गए भ्रष्ट प्रत्याशियों के लिए मतदाताओं को घर से निकालना सही नहीं लगता। शेयर बाज़ार फिलहाल भाजपा समेत एनडीए कोऔरऔर भी

एक बार जो चल जाए, उसका सिक्का लम्बा चलता रहता है। राजनीति से लेकर बिजनेस तक में ऐसे ही सिक्के चलते और उछलते हैं। नरेंद्र मोदी का सिक्का 10-15 साल में ऐसा चला दिया गया कि प्रधानमंत्री रहते भले ही उन्होंने आम जीवन से जुड़ा अपना कोई वादा पूरा नहीं किया, राममंदिर बनाकर और अनुच्छेद 370 हटाकर केवल भाजपा और संघ का एजेंडा पूरा किया, फिर भी लाखों पुरुष व महिला मतदाता कहते हैं कि हम तोऔरऔर भी