सेबी ने करीब दो महीने पहले बैंगलोर की टिप्स बेचनेवाली फर्म एचबीजे कैपिटल पर बैन लगा दिया। ऐसी तमाम फर्में इंदौर से धड़ल्ले से चल रही हैं जिनके भी शटर देर-सबेर डाउन हो सकते हैं। इन्हीं में से एक फर्म खुद को शीर्षतम ग्लोबल बताती है। शेयर बाज़ार में कैश, ऑफ्शन व फ्यूचर्स तक की टिप्स बेचती है; कमोडिटी में भी उल्लू बनाती है; महीने की सबसे सस्ती सेवा 5000 रुपए की है। अब मंगलवार की दृष्टि…औरऔर भी

अगर आप ट्रेडिंग के लाभप्रद मौकों की तलाश में हैं तो यहीं तक सीमित नहीं रह सकते कि चार्ट सारे भेद खोल देता है। आपको अपनी पसंदीदा कंपनियों के नतीजों पर भी नज़र रखनी चाहिए। ऐसे मौके सालाना चार बार हर तिमाही में आते हैं। अक्सर मजबूत कंपनियों के शेयर अच्छे नतीजों के बावजूद गिर जाते हैं। उनका दोबारा बढ़ना तय है जिसका सिलसिला कुछ दिन की मुनाफावसूली के बाद शुरू होता है। अब सोमवार का व्योम…औरऔर भी

हफ्ते की पांचवीं व आखिरी बात। बड़ों की चाल-ढाल समझने के बाद हमें जिस स्टॉक में ट्रेड करना हो, उसकी चाल-ढाल, प्रकृति को समझना होता है। कुछ शेयर निवेश के लिए अच्छे होते हैं, ट्रेडिंग के लिए नहीं। कुछ बहुत तेज़ी से उठते-गिरते हैं। कुछ महीनों तक घूम-फिरकर वैताल की तरह उसी डाल पर आ जाते हैं। कुछ नतीजे आने पर उछलते हैं। कुछ अच्छे नतीजों के बावजूद लुढ़क जाते हैं। अब करते हैं शुक्रवार का अभ्यास…औरऔर भी

पहली बात, बाज़ार से तर्क-वितर्क न करें। दूसरी बात, बड़ों की राह पकड़ने से ही मुनाफा कमाया जा सकता है। तीसरी बात, बड़ों की चाल को किसी की कानाफूसी से नहीं, बल्कि चार्ट पर पकड़ना होता है। चौथी बात, विदेशी संस्थाओं की हालत ‘तुम तो ठहरे परदेसी’ की है। भले ही वो अभी भारतीय बाज़ार की दशा-दिशा तय करती हों, लेकिन अंततः यहां तो ज़ोर देशी संस्थाओं, उसमें भी एलआईसी का ही चलेगा। अब गुरुवार की दशा-दिशा…औरऔर भी

असली सवाल यह कि बाज़ार में बड़ों की चाल को पकड़े कैसे? जो लोग कानाफूंसी करते हैं कि एफआईआई, एलआईसी या कोई तोप-तमंचा फलानां स्टॉक खरीद रहा है तो या तो वे झूठ बोलते हैं या कुछ ऑपरेटरों के गुर्गे होते हैं। बड़ों की चाल हम चार्ट पर बखूबी पकड़ सकते हैं। वे तभी निवेश करते हैं जब कोई शेयर दिशा बदलनेवाला होता है, गिरकर उठने या उठकर गिरने जा रहा होता है। अब बुधवार की बुद्धि…औरऔर भी

हम बराबर देखते हैं कि बाज़ार की अंतिम चाल देशी-विदेशी संस्थाएं तय करती हैं। वहीं, छोटे व मध्यम दर्जे के स्टॉक्स ऑपरेटर या झुनझुनवाला टाइप उस्ताद लोग उठाते-गिराते हैं। दशकों से हम देख रहे हैं कि बाज़ार को कभी हर्षद मेहता तो कभी केतन पारेख जैसे लोग उंगलियों पर नचाते रहे हैं। बाज़ार हमेशा बड़ों के इशारे पर चलता है। फिर भी हम गफलत में रहते हैं कि बाज़ार हमारे हिसाब से चलेगा। अब मंगलवार की दृष्टि…औरऔर भी

बाज़ार अगर इंसान होता तो निरा पागल होता। इसके साथ कुछ असाध्य मानसिक समस्याएं हैं। कभी भयंकर उछलकूद मचाता है और शेयरों के भाव सातवें आसमान पर पहुंच जाते हैं तो कभी निराशा में ऐसा डूबता है कि लाख कोशिशों के बावजूद उठने का नाम नहीं देता। सरकार भी उसके आगे थक जाती है। वित्तीय बाज़ार हम जैसे लोगों से ही बनता है, लेकिन उसका सामूहिक व्यक्तित्व तर्कों से परे चला जाता है। अब सोम का व्योम…औरऔर भी

सप्ताह के आखिरी दिन, ट्रेडिंग का सबसे पहला बुनियादी नियम। ट्रेडिंग जितनी और जैसी करें, लेकिन अपनी ट्रेडिंग पूंजी को कतई आंच न आने दें। वो सलामत रहेगी तभी आपकी ट्रेडिंग चल पाएगी। और, उसे सलामत रखना एकदम आपके हाथ में है। किसी एक सौदे में 2% और पूरे महीने में 6% से ज्यादा नुकसान कभी न होने दें। इस सीमा तक पहुंचते ही उस महीने की ट्रेडिंग फौरन रोक दें। अब करते हैं शुक्रवार का अभ्यास…औरऔर भी

ट्रेडिंग के सदमे से बचने का एक आजमाया हुआ तरीका यह है कि जैसे ही आप बाज़ार से मुनाफा कमाना शुरू कर दें, धीरे-धीरे अपना शुरुआती निवेश निकालकर किनारे रख दें। आगे की ट्रेडिंग बचे हुए मुनाफे से ही करें। इससे एक तो यह होगा कि आपकी बचत सुरक्षित रहेगी। दूसरा फायदा यह होगा कि घाटा लगने पर भी आप को मानसिक झटका नहीं लगेगा और आप बिना घबराए संतुलित फैसला ले पाएंगे। अब गुरु की दशा-दिशा…औरऔर भी

ट्रेडिंग के खतरे या रिस्क को न्यूनतम करने का दूसरा तरीका यह है कि कभी अपना पूरा ट्रेडिंग पोर्टफोलियो एक ट्रेड में न लगाएं। आम मानसिकता फटाफट मुनाफा बटोरने की होती है। लेकिन ध्यान रखें हड़बड़ी शैतान का काम है। अपना निवेश बराबर-बराबर महीने में 20 दिन के ट्रेड में बांट दें। इसे पोजिशन साइज़िंग भी कहते हैं। इससे आप ट्रेडिंग के रिस्क को कम और रिटर्न को अधिकतम कर सकते हैं। अब आजमाएं बुध की बुद्धि…औरऔर भी