जून महीने के डेरिवेटिव सौदों में निफ्टी ऑप्शन का शुक्रवार से गुरुवार तक का पहला चक्र कल पूरा हो गया। इस दौरान निफ्टी 4.68% बढ़ा है। 29 मई को निफ्टी 9580.30 पर बंद हुआ था, जबकि कल 4 जून को उसका बंद स्तर 10,029.10 का रहा है। आइए, देखते हैं कि हमने शुक्रवार के भावों के आधार पर निफ्टी ऑप्शंस में ट्रेडिंग के जो चार तरीके अपनाए थे, उनका अंततः क्या हश्र हुआ है। बटरफ्लाई स्प्रेड: बटरफ्लाईऔरऔर भी

हमने ऑप्शन के भावों को समझने के दौरान पाया कि इसे निर्धारित करने में वोलैटिलिटी, विशेष रूप से इम्प्लायड वोलैटिलिटी बहुत अहम भूमिका निभाती है। इसी तरह की वोलैटिलिटी को एनएसई का एक सूचकांक हर दिन पेश करता है। वो है India VIX जो निवेशकों में छाई धारणा को दिखाता है कि एक्सपायरी तक निफ्टी कितना ऊपर या नीचे हो सकता है। यह असल में ऑप्शंस के प्रीमियम की इम्प्लायड वोलैटिलिटी की माप है। साथ ही इससेऔरऔर भी

हमने ऑप्शन ट्रेडिंग की इस अध्ययन श्रृंखला में शुरू में जाना कि आईटीएम, एटीएम व ओटीएम ऑप्शन का क्या मतलब है, कॉल व पुट ऑप्शन क्या होते हैं, उन्हें खरीदने और बेचने में लाभ का फॉर्मूला क्या है, ऑप्शन राइटर या बेचने वाला ही ज्यादातर क्यों कमाता है, उसे कितना बड़ा मार्जिन देना पड़ता है, आज के ऑप्शन राइटर और कल के बदला फाइनेंसर में क्या समानता है, आदि-इत्यादि। सब कुछ उदाहरण के साथ समझते गए। फिरऔरऔर भी

ट्रेडिंग बुद्ध में स्टॉक्स ट्रेडिंग का सिलसिला 8 जून को अनलॉक-1 के पहले दिन के साथ दोबारा शुरू हो जाएगा। इस बीच आज से शुक्रवार, 5 जून तक हम ऑप्शन ट्रेडिंग को सीखने, समझने और आजमाने का क्रम जारी रखेंगे। एक बार हम फिर उन्हीं तीन रणनीतियों को बाजार में अपनाते हैं जिनसे हमने पहली बार में ही हफ्ते भर में 77.91 प्रतिशत का सांकेतिक रिटर्न कमाया था। साथ ही एक नया सौदा भी करेंगे। बटरफ्लाई स्प्रेड:औरऔर भी

मई के डेरिवेटिव सौदों की एक्सपायरी कल महीने के अंतिम गुरुवार को पूरी हो गई। नतीजा आ चुका है यह देखने का कि हफ्ते भर पहले 21 मई को निफ्टी ऑप्शन में ट्रेडिंग की जो तीन रणनीतियां हमने अपनाई थीं, वे कितनी कामयाब रहीं, उन्होंने कितना कमाया या गंवाया है और उनका रिटर्न कितना रहा है? इसी के आधार पर हम समझ पाएंगे कि इन्हें अपनाने में क्या-क्या दूसरी सावधानियां बरती जानी चाहिए थीं। 21 मई 2020औरऔर भी

कोई भी ज्ञान या विद्या तभी तक सार्थक है, जब तक वह व्यवहार की सेवा कर सके। हमने अब तक की 26 कड़ियों में डेरिवेटिव ट्रेडिंग, खासकर ऑप्शन ट्रेडिंग को जानने-समझने की जो कोशिश की, अब उसे व्यवहार के धरातल पर कसने का वक्त आ गया है। अगर वह किसी हद तक रिटेल ट्रेडर के लिए कम से कम रिस्क में ठीकठाक मुनाफा कमाने का माध्यम बन सके, तभी उसे अपनाया जाना चाहिए। अन्यथा, उसे शेयर बाज़ारऔरऔर भी

जीवन के तमाम क्षेत्रों की तरह डेरिवेटिव ट्रेडिंग में भी सिद्धांत और व्यवहार में बड़ा फर्क होता है। फिर भी सिद्धांत जानना इसलिए ज़रूरी है ताकि हम व्यवहार में उतरने का आत्मविश्वास जुटा सकें। उसके बाद उतर गए तो असली दीक्षा व्यवहार ही देता है। मसलन, सिद्धांत कहता है कि ऑप्शन खरीदने में सीमित नुकसान और असीमित लाभ है क्योंकि खरीदने वाले को अधिक से अधिक चुकाया गया भाव या प्रीमियम ही गंवाना पड़ता है, जबकि शेयरऔरऔर भी

ऑप्शंस के भावों की गणना की जटिलता में उतरने से पहले उनकी खरीद-फरोख्त के व्यवहार को थोड़ा और समझने की कोशिश करते हैं। हमने पहले इस सिलसिले में बीमा का उदाहरण लिया था। जब हम एलआईसी से बीमा पॉलिसी खरीदते हैं तो दरअसल हम प्रीमियम देकर अपने जीवन का पुट ऑप्शन खरीद रहे होते हैं। इससे हम अपनी मृत्यु के बाद अपने पर निर्भर परिवार की वित्तीय सुरक्षा हासिल करते हैं। इस मामले में हम ऑप्शन केऔरऔर भी

एक तो शेयरों के भावों को पकड़ना मुश्किल ही है। ऊपर से उसकी छाया के भाव। फिर उसकी गणना में रिस्क-फ्री बांड की ब्याज दर, धन का समय मूल्य, ब्याज की निरतंर चक्रवृद्धि दर, स्टैंडर्ड डेविएशन, वोलैटिलिटी – इम्प्लायड व सालाना दोनों, फिर ओपन इंटरेस्ट। इतनी सारी जटिलता देखकर किसी का भी माथा घूम जाए। ऑप्शन के भावों की गणना वाकई बड़ी दुरूह है। लेकिन ऑप्शंस की अवधारणा बड़ी आसान व सहज है। उसे हम रोजमर्रा केऔरऔर भी

ऑप्शन राइटर वह है जो बिना कोई लॉन्ग पोजिशन पकड़े ऑप्शन बेचता है, जैसे कोई स्टॉक्स या सूचकांकों में शॉर्ट सेलिंग करता है। उसे ऑप्शन बेचने पर उसका भाव या प्रीमियम मिल जाता है। लेकिन उसे पूरी तैयारी रखनी पड़ती है कि अगर ऑप्शन धारक खरीदने या बेचने का अपना अधिकार पाना चाहता है तो वह उसे पूरा कर सके। जहां ऑप्शन खरीदने वाला केवल प्रीमियम या भाव देकर मुक्त हो जाता है, वहीं ऑप्शन बेचने वालेऔरऔर भी