हम शेयर बाज़ार में लिस्टेड कंपनी के शेयर इसीलिए खरीदते हैं ताकि कुछ साल बाद उन्हें बेचकर मुनाफा कमा सकें, अपनी ज़रूरत पूरी कर सकें। इसके लिए शेयर को कम से कम भाव पर खरीदना ज़रूरी है। मान लें कि झोंक में आकर या किसी के कहने पर हमने किसी कंपनी का शेयर बढ़े भाव पर खरीद लिये तो वह आखिर कितना बढ़ेगा! अगर उसने बचत खाते या एफडी के बराबर रिटर्न दिया तो क्या फायदा? शेयरोंऔरऔर भी

अपने ही सुख के बारे में सोचते-सोचते हम अक्सर दुख से दबे रहते हैं। फॉर्मूला याद नहीं रखते कि “दुख तुम्हें क्या तोड़ेगा, तुम दुख को तोड़ दो। बस अपनी आंखें औरों के सपनों से जोड़ दो।” देश में इस वक्त 80% लोग बमुश्किल गुजर-बसर कर पाते हैं जबकि नेता-अभिनेता, क्रिकेटर, दलाल, ठेकेदार व धंधेबाज़ों से मिलकर बनी 5% आबादी का कैश-फ्लो इतना है कि उन्हें बचाने की ज़रूरत नहीं। बाकी बचे 15% लोग ही अपनी बचतऔरऔर भी

आज के दौर में सबसे मुश्किल काम है कमाना। दिक्कत यह है कि काम ही नहीं मिल रहा तो कमाएंगे कैसे? कहते हैं कि खोजने पर तो भगवान भी मिल जाता है। फिर काम कैसे नहीं मिलेगा? लेकिन करोड़ों लोगों को लाख खोजने पर भी काम नही मिल रहा। कमाने के बाद की कड़ी है बचाना। बचाने के बाद उसे बढ़ाना।  की जुगत। बचत को कहीं लगाया नहीं तो मुद्रास्फीति दीमक की तरह खा जाएगी। इसलिए उसेऔरऔर भी

एक बात हमें बहुत साफ समझ लेनी चाहिए कि वित्तीय बाज़ार में हम अपनी बचत लगाकर जो भी कमाते हैं वह किसी दूसरे के उद्यम का नतीजा होता है। बैंक हमें एफडी पर इसलिए ज्यादा ब्याज देता है क्योंकि वह हमारे धन को उधार पर चढ़ाकर उससे ज्यादा कमा लेता है। सरकार हमें बॉन्ड पर इसलिए ज्यादा ब्याज देती है क्योंकि हमारा धन उसकी ज़रूरतें पूरी करता है और उसके पास उधार चुकाने के लिए ज्यादा उधारऔरऔर भी

सही निवेश के लिए कंपनी और उनके बिजनेस को जानना ही पर्याप्त नहीं, बल्कि साफ-साफ इस बात का भी आकलन होना चाहिए कि पांच-दस साल बाद कंपनी और उसका बिजनेस कहां तक पहुंच सकता है। यकीनन, सटीक रूप से भविष्य तो कोई नहीं जानता। लेकिन समझदार आकलन से हम भविष्य के रिस्क को कम कर लेते हैं। शेयर बाज़ार में निवेश या ट्रेडिंग रिस्क को संभालने का ही खेल है। हमें इस रिस्क को न्यूनतम करने काऔरऔर भी

अर्थशास्त्र का पारम्परिक सिद्धांत कहता है कि सभी इंसान तर्कसंगत व्यवहार करते हैं और स्वार्थ से संचालित होते हैं। जाहिर है कि शेयर बाज़ार के निवेशकों पर भी यह सिद्धांत लागू होता है। साथ ही शेयर बाज़ार कंपनियों का मूल्य खोजकर निकालने का तर्कसंगत माध्यम है। सभी इंसान तर्कसंगत, बाजार भी तर्कसंगत। फिर कहां लोचा रह जाता है कि शेयरों में धन लगाकर कुछ लोग कमाते हैं और बहुतेरे गंवाते हैं? यह लोचा है स्वार्थ से चलनेवालेऔरऔर भी

बुद्ध कहते थे, वर्तमान में रहो। अतीत इसी में मिलता और भविष्य यहीं से निकलता है। अगर इस क्षण को साध लिया तो सारा प्रवाह साफ दिख जाएगा। लेकिन क्षण में पैठकर प्रवाह को पकड़ना इतना आसान नहीं। वित्तीय जगत में तो निवेश की रीत यही है कि वर्तमान को नहीं, भविष्य को समझकर धन लगाओ। वर्तमान को जानो ताकि भविष्य को समझ सको। शेयर बाज़ार या निवेश के दूसरे माध्यम अतीत या वर्तमान की परवाह नहींऔरऔर भी

जब अच्छी-खासी बड़ी और सफल बिजनेस कर रही कंपनियों के शेयर सस्ते में मिल रहे हों, तब छोटी व अनिश्चित भविष्य वाली कंपनियों की तरफ क्यों झांकना? इस समय अपना शेयर बाज़ार हमें तमाम अवसर दे रहा है। लेकिन केवल कंपनी ही नहीं, बल्कि यह भी देखें कि वह जो बिजनेस कर रही है, उसका अतीत, वर्तमान व भविष्य कितना मजबूत है। दुनिया के सफलतम निवेशक वॉरेन बफेट का फॉर्मूला यही है कि स्टॉक्स या कंपनियां नहीं,औरऔर भी

सभी कंपनियों का धंधा एक जैसा नहीं चमकता तो उनके शेयरों की चाल एक जैसी कैसे हो सकती है? इसीलिए शेयर बाज़ार में समझदार निवेशक एक नहीं, अनेक कंपनियों में धन लगाते हैं। निवेश की गई कंपनियों के इसी सेट को पोर्टफोलियो कहते हैं। सवाल उठता है कि पोर्टफोलियो में कितनी कंपनियों के शेयर होने चाहिए ताकि उनका अलग-अलग रिस्क आपस में कटकर पूरे बाज़ार के समतुल्य या बराबर हो जाए? जानकार मानते हैं कि आदर्श पोर्टफोलियोऔरऔर भी

शेयर बाज़ार की हालत डांवाडोल है। फिर भी बहुतेरे विश्लेषक कहते हैं कि चालू वित्त वर्ष 2022-23 के अंत में निफ्टी-50 का ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 1000 रुपए रहेगा। निफ्टी अभी 16,352.45 पर है तो अनुमानित ईपीएस से 16.35 गुना भाव या पी/ई अऩुपात पर ट्रेड हो रहा है। लगभग इतना ही पी/ई अनुपात कोरोना संकट के शुरू में था, जहां से बाज़ार उछलकर ऊपर उठा था। इसलिए बाज़ार का मौजूदा स्तर जमकर खरीदने का है। लेकिनऔरऔर भी