अमेरिकी सरकार के बांडों में सबसे ज्यादा निवेश रखनेवाले चीन ने वहां अपना निवेश घटाना शुरू कर दिया है, जबकि भारत बढ़ाता जा रहा है। हालांकि मात्रा के लिहाज से भारत का निवेश चीन के सामने कहीं नहीं टिकता। अमेरिकी ट्रेजरी विभाग द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक अक्टूबर 2010 से जनवरी 2011 के बीच चीन ने अमेरिकी बांडों में अपना निवेश 20.6 अरब डॉलर घटा दिया है। अक्टूबर में यह 1175.3 अरब डॉलर था, जबकि जनवरी मेंऔरऔर भी

देश में सरकारी प्रतिभूतियों (बांडों) का बाजार पूरी तरह बनावटी है और सही अर्थों में यह बाजार है ही नहीं। यह कहना क्लियरिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के संस्थापक चेयरमैन डॉ. आर एच पाटिल का। डॉ. पाटिल देश में ऋण बाजार के पुरोधा माने जाते हैं। कॉरपोरेट ऋण पर उनकी अध्यक्षता में बनी समिति दिसंबर 2005 में अपनी रिपोर्ट वित्त मंत्रालय को सौंप चुकी है जिसकी सिफारिशों पर अमल की बात बराबर रिजर्व बैंक व सेबी की तरफऔरऔर भी

रिजर्व बैंक ने तीसरी तिमाही के बीच में मौद्रिक नीति की समीक्षा करते वक्त तरलता के संकट को स्वीकार किया है और इसे दूर करने के लिए उसने 18 दिसंबर से वैधानिक तरलता अनुपात (एसएलआर) को 25 फीसदी के मौजूदा स्तर से घटाकर 24 फीसदी कर दिया है। साथ ही उसने तय किया है कि अगले एक महीने में वह खुले बाजार ऑपरेशन (ओएमओ) के तहत नीलामी से 48,000 करोड़ रुपए के सरकारी बांड खरीदेगा। उसने सीआरआरऔरऔर भी

देश की आर्थिक विकास दर चालू वित्त वर्ष 2010-11 की दूसरी तिमाही में भी पहली तिमाही में हासिल विकास दर 8.8 फीसदी के आसपास रहने की उम्मीद है। यह कहना है वित्त सचिव अशोक चावला। सोमवार को राजधानी दिल्ली में मीडिया से बातचीत के दौरान उन्होंने यह उम्मीद जताई। उन्होंने कहा, “हमें उम्मीद है कि यह (सितंबर 2010 की तिमाही में जीडीपी विकास दर) पहली तिमाही से काफी करीब होगी।” बता दें कि सकल घरेलू उत्पाद याऔरऔर भी

सरकार, दूसरी छमाही के लिए बजट में जितना तय है, उससे कम उधार बाजार से जुटाएगी। यह कहना है वित्त सचिव अशोक चावला का। उनके मुताबिक अक्टूबर से मार्च के बीच सरकारी बांडों के जरिए 1.70 लाख करोड़ रुपए का कर्ज जुटाया जाना था। लेकिन अब यह रकम 1.63 लाख करोड़ रुपए ही रहेगी। इस तरह अब बाजार पर 7000 करोड़ रुपए के सरकारी बांडों का बोझ कम हो जाएगा। हालांकि यह अपेक्षाकृत इतनी छोटी रकम हैऔरऔर भी

सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश बढ़ रहा है। वित्त मंत्रालय की तरफ से जारी आंकड़ों के अनुसार चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में यह लगभग 18 फीसदी बढ़कर 21,71,022 करोड़ रुपए हो गया है। खासकर यह बढ़त सरकारी की दिनांकित प्रतिभूतियों में होनेवाले सौदों के चलते हुई है जिसमें निवेश लगभग 90 फीसदी बढ़ गया है। नोट करने की बात यह है कि सरकारी प्रतिभूतियों में बैंक या म्यूचुअल फंड व बीमा कंपनियों जैसी वित्तीय संस्थाएं हीऔरऔर भी