बनाता है कोई, कमाता है कोई। दुनिया की यह रीत बड़ी पुरानी है और एकदम नई भी। व्यापार अपने यहां आज भी कृषि के बाद रोजी-रोजगार का सबसे बड़ा साधन है। एक ही गली-मोहल्ले में किराना से लेकर सर्राफा तक की कई दुकानें मिल जाती हैं। सभी दुकानदार ठीकठाक कमा लेते हैं और घर के तमाम सदस्यों को काम-धंधा भी मिल जाता है। दुनिया में भी व्यापार बहुत बड़ा धंधा बना हुआ है। आज अमेजॉन दुनिया काऔरऔर भी

लालच का कोई तर्क नहीं होता। बस फायदा ही फायदा दिखता है। पांच रुपए का शेयर खरीद लिया और दो-चार साल में 50 रुपए हो गया तो दस गुना रिटर्न! दिक्कत यह है कि आज भी शेयर बाज़ार के ज्यादातर निवेशक इसी तरह के तर्कहीन लालच में अंधे होते हैं। हर किसी के पास रिटर्न की पूरी गणना व ख्बाव होता है। लेकिन रिस्क का कोई हिसाब-किताब नहीं होता। समझदारी दिखाई तो कंपनी का पिछला ट्रैक रिकॉर्डऔरऔर भी

एक तरफ देश के आमजन पर कर्ज और देनदारियों का बोझ बढ़ रहा है। दूसरी तरफ उनकी वित्तीय आस्तियां घटती जा रही हैं। नतीजा यह है कि बीते वित्त वर्ष 2022-23 में आमजन या हाउसहोल्ड की शुद्ध बचत 47 सालों के न्यूनतम स्तर जीडीपी के 5.1% पर आ गई। साल भर पहले 2021-22 में यह जीडीपी की 7.2% हुआ करती थी। यह सच रिजर्व बैंक ने सितंबर 2023 की मासिक बुलेटिन में उजागर किया है। लेकिन वित्तऔरऔर भी

कंपनियों की बैलेंसशीट में हमेशा आस्तियों और देनदारियों का अलग-अलग जोड़ बराबर होता है। इसी तरह किसी देश के जीडीपी की गणना करते वक्त उत्पादन या आय को कुल व्यय के बराबर होना चाहिए। सिद्धांत कहता है कि अर्थव्यवस्था में अर्जित आय को खर्च के बराबर होना चाहिए क्योंकि उत्पादक व सेवाप्रदाता की आय तभी होती है, जबकि दूसरा उसके उत्पाद व सेवाएं खरीदता है। भारत में जीडीपी की गणना के लिए आय या उत्पादन का तरीकाऔरऔर भी

भारत दुनिया की सबसे ज्यादा तेज़ी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था है। इस तथ्य से कोई इनकार नहीं कर सकता। लेकिन हमारी प्रति व्यक्ति आय अब भी वैश्विक औसत से कम है। सवाल है कि इस स्थिति को जल्दी से जल्दी कैसे बदला जाए और देश की विशाल युवा आबादी की आकांक्षाओं को कैसे पूरा किया जाए? जवाब है कि अर्थव्यवस्था को विश्वस्तर पर ज्यादा प्रतिस्पर्धी बनाकर। अभी हमारे यहां उत्पादों के आने-जाने में बहुत ज्यादा समय औरऔरऔर भी

तेज़ी पर सवार अपने शेयर बाज़ार के लिए पिछले सात दिन किसी झटके से कम नहीं। सब ठीकठाक, कहीं कोई अनहोनी नहीं। अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने 19-20 सितंबर को हुई अपनी बैठक में ब्याज दरों को 5.25% से 5.50% की रेंज पर जस का तस रखने का फैसला किया। यह अच्छी खबर थी। फिर भी अपना बाजार गिरता गया। उस शुक्रवार को निफ्टी-50 अब तक के ऐतिहासिक शिखर 20,192.35 पर था, जबकि इस शुक्रवारऔरऔर भी

देश के मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र की स्थिति बराबर सुधर रही है। फिर भी वो अभी पूरी क्षमता पर उत्पादन नहीं कर पा रहा। रिजर्व बैंक के अद्यतन सर्वे के मुताबिक बीते वित्त वर्ष 2022-23 में जनवरी-मार्च की चौथी तिमाही में क्षमता इस्तेमाल का स्तर 76.3% रहा है, जबकि इससे पहले की तीन तिमाहियों में यह क्रमशः 74.3%, 74% और 72.4% रहा था। महीने भर पहले छपे रिजर्व बैंक के इस सर्वे में 752 मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों ने भाग लिया।औरऔर भी

इस साल मार्च से ही शेयर बाज़ार पर तेज़ी का सुरूर छाया हुआ है। छोटी-बड़ी सभी कंपनियों के शेयर चढ़े चले जा रहे हैं। सेंसेक्स 67,600 और निफ्टी 20,000 के करीब पहुंच कर नीचे उतरा है। अब भी तमाम सूचकांकों में शामिल 80-90% स्टॉक्स 52 हफ्ते के शिखर के आसपास डोल रहे हैं। ऐसे में निवेशकों को मौका चूक जाने का डर सताने लगा है, जिसे अंग्रेज़ी में Fear of Missing out या फोमो कहते हैं। इसऔरऔर भी

बड़े-बड़े विद्वान भले कहते हों कि शेयरों में निवेश हमेशा के लिए होता है, लेकिन इस बाज़ार से वही कमाता है तो बराबर मुनाफा निकालता रहता है। ऐसे में सबसे अहम सवाल है कि किसी शेयर से कब मुनाफा निकाला जाए? सीधा-सा जवाब है जब भी ज़रूरत पड़े। पहली बात तो यह है कि शेयर बाज़ार में वही धन लगाना चाहिए जो हमारी वर्तमान व आकस्मिक ज़रूरतों का इंतज़ाम करने के बाद इफरात बचता हो। दूसरी बात,औरऔर भी

चांद के दक्षिणी ध्रुव पर भारत पहुंचा है तो किसी हवन, भजन-कीर्तन या नमाज नहीं, बल्कि विज्ञान के बल पर। हमें जीवन ही नहीं, निवेश तक के सवालों को सुलझाने में विज्ञान की इस ताकत को समझना होगा। विज्ञान के साथ चलने में फायदा ही फायदा, छलांग ही छलांग। न कोई धोखा, न कोई घाटा। इस समय कई कंपनियां अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में सक्रिय हैं। मसलन, अवांटेल जैसी छोटी कंपनी ने 1990 ने काम शुरू कियाऔरऔर भी