लालच को जीतना पड़ता है समझदारी से

लालच का कोई तर्क नहीं होता। बस फायदा ही फायदा दिखता है। पांच रुपए का शेयर खरीद लिया और दो-चार साल में 50 रुपए हो गया तो दस गुना रिटर्न! दिक्कत यह है कि आज भी शेयर बाज़ार के ज्यादातर निवेशक इसी तरह के तर्कहीन लालच में अंधे होते हैं। हर किसी के पास रिटर्न की पूरी गणना व ख्बाव होता है। लेकिन रिस्क का कोई हिसाब-किताब नहीं होता। समझदारी दिखाई तो कंपनी का पिछला ट्रैक रिकॉर्ड देख लेते हैं। मगर नहीं समझते कि आज का निवेशक कल के विकास पर नहीं कमाता। तसल्ली के लिए अतीत देखना ज़रूरी है। लेकिन आगे शेयर तभी बढ़ेगा, जब कंपनी का धंधा चमाचम रहेगा। निवेश में समझदारी तभी आती है जब हम कंपनी के धंधे को समझने के बाद उसकी भावी संभावनाओं का आकलन कर लेते हैं। भविष्य का आकलन कभी सटीक नहीं हो सकता। यही शेयर बाज़ार में निवेश का रिस्क है। रिस्क को तकनीकी रूप से शेयर के उतार-चढ़ाव या चंचलता से भी नापते हैं। लेकिन अगर कंपनी के धंधे की साफ समझ हो तो लम्बे समय में शेयर भयंकर चंचलता के बाद भी अच्छा रिटर्न दे सकता है। आज तथास्तु में उतार-चढ़ाव से गुजरती एक कंपनी…

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