जो अड़ता है, वो टूट जाता है और जो ढलता है, वही लम्बा चलता है। परिस्थितियां हमेशा एक-सी नहीं होतीं। हमें उनसे निपटने के लिए उनके हिसाब से ढलना पड़ता है। कुदरत का यह नियम शेयर बाज़ार पर ही लागू होता है। बाज़ार के हर चक्र में एक ही रणनीति नहीं चल सकती। इस समय बाज़ार में अनिश्चितता का जो आलम है, उसके हिसाब से हमें अपनी निवेश रणनीति को ढालना होगा। यकीनन, नज़र अल्पकालिक नहीं, बल्किऔरऔर भी

वित्त वर्ष 2023-24 की मार्च तिमाही के कॉरपोरेट नतीजे और 18वीं लोकसभा चुनावों का प्रचार अब अंतिम दौर में है। जिस तरह कंपनी प्रबंधन वर्तमान की कमियां छिपाकर भविष्य की संभावनाओं के बड़े-बड़े दावे करता है, उसी तरह राजनीतिक पार्टी का नेता अपनी उपलब्धियों से लेकर भावी योजनाओं के बारे में बड़ी-बड़ी बातें करता है। कंपनियां प्रेस कॉन्फ्रेंस लेकर विज्ञप्तियों तक निकालती हैं तो राजनीतिक पार्टियां घोषणा-पत्र लाती हैं और नेता आमसभाएं व रैलियां तक करते हैं।औरऔर भी

शेयर बाज़ार नर्वस होने लगा है। लोकसभा चुनाव के पहले तीन चरणों में हुए कम मतदान ने यह कयास तेज़ कर दिया है कि भाजपा-नीत एनडीए को 400 से कम सीटें मिलने जा रही हैं। मतदान कम होने की वजह भाजपा व संघ के कार्यकर्ताओं में इस बार छाई पस्ती है जिन्हें पार्टी में बाहर से लाए गए भ्रष्ट प्रत्याशियों के लिए मतदाताओं को घर से निकालना सही नहीं लगता। शेयर बाज़ार फिलहाल भाजपा समेत एनडीए कोऔरऔर भी

एक बार जो चल जाए, उसका सिक्का लम्बा चलता रहता है। राजनीति से लेकर बिजनेस तक में ऐसे ही सिक्के चलते और उछलते हैं। नरेंद्र मोदी का सिक्का 10-15 साल में ऐसा चला दिया गया कि प्रधानमंत्री रहते भले ही उन्होंने आम जीवन से जुड़ा अपना कोई वादा पूरा नहीं किया, राममंदिर बनाकर और अनुच्छेद 370 हटाकर केवल भाजपा और संघ का एजेंडा पूरा किया, फिर भी लाखों पुरुष व महिला मतदाता कहते हैं कि हम तोऔरऔर भी

अगर आपका निवेश कुछ दिनों, महीने या साल भर में 20% गिर जाए और आपकी रातों की नींद हराम हो जाए तो साफ हो जाता है कि आपकी रिस्क क्षमता शेयर बाज़ार में निवेश करने की नहीं है। तब आपको एफडी या बॉन्ड जैसे शांत माध्यमों में निवेश करना चाहिए। हम निवेश मन की शांति खोने के लिए नहीं, बल्कि आज और कल को सुरक्षित व शांत रखने के लिए करते हैं। ज्यादा रिटर्न सभी को अच्छाऔरऔर भी

इन दिनों फेसबुक और एक्स (पहले के ट्विटर) जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर शेयर बाज़ार में निवेश व ट्रेडिंग का गुर सिखाने वाले गुरुओं की बाढ़ आई हुई है। इनमें पुरुष व महिला, दोनों एक्सपर्ट शामिल हैं। यहां तक कि ज़ी बिजनेस जैसे चैनलों के एंकर भी शामिल हैं जिनके साथ मिलकर धांधली करनेवाले 15 उस्तादों पर सेबी ने ढाई महीने पहले 7.41 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया था। आम निवेशकों को झांसा देने के लिए पहलेऔरऔर भी

अपना शेयर बाज़ार तेज़ी के ऐतिहासिक शिखर तक जा पहुंचा है। सेसेंक्स 9 अप्रैल को 75,000 के पार चला गया, जबकि निफ्टी 25,000 तक पहुंचने की तैयारी में हैं। एनएसई का निफ्टी-50 सूचकांक इस समय 23.08 और बीएसई का सेंसेक्स-30 सूचकांक 25.37 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। यह वो स्तर है जो प्रोफेशनल निवेशकों को असहज बना देता है और वे निवेश बढ़ाने के बजाय मुनाफा निकालने की सोचने लगते हैं। शुक्रवार को विदेशीऔरऔर भी

रिजर्व बैंक ने नए वित्त वर्ष की पहली मौद्रिक नीति में रेपो दर को 6.5% पर जस का तस रखा है। इस दर पर रिजर्व बैंक बैंकों को एकाध दिन के लिए उधार देता है। यह पूरे सिस्टम में ब्याज दर की मानक है। इससे पहले कोविड महामारी के दौरान मई 2020 में उसने रेपो दर घटाकर 4% की थी। फिर इसे धीरे-धीरे बढ़ाकर फरवरी 2023 में 6.5% किया और तब से बदला नहीं है। रिजर्व बैंकऔरऔर भी

सेंसेक्स व निफ्टी ही नहीं, स्मॉल-कैप व मिड-कैप सूचकांकों की चाल देखकर हम अक्सर मगन हो जाते हैं कि वाह! शेयर बाज़ार में क्या तेज़ी चल रही है। आकार और उद्योग व सेवा क्षेत्र पर आधारित ऐसे 15-15 सूचकांक अलग से हैं जिनकी धड़कनों से बाज़ार का ताज़ा हाल जाना जा सकता है। लेकिन इतना ज्ञान बिजनेस चैनलों व सोशल मीडिया के सतही एनालिस्टों के लिए काफी हो सकता है, शेयर बाज़ार में गहरी पैठ की चाहऔरऔर भी

देश में चुनावों के माहौल में घोटालों की बहार है। जिन चुनावी बॉन्डों का पूरा ब्योरा देने के लिए देश का सबसे बड़ा बैंक एसबीआई तीन महीने का वक्त मांग रहा था, वह सुप्रीम कोर्ट की फटकार लगते ही तीन दिन में सारा डेटा लेकर सामने आ गया। अब चुनावी बॉन्डों के जरिए कॉरपोरेट क्षेत्र से की गई रिश्वतखोरी व वसूली और मनी-लॉन्ड्रिंग को छिपाने की भरपूर कोशिशें की जा रही हैं। लेकिन आर्थिक व वित्तीय क्षेत्रऔरऔर भी