शेयरों में निवेश कोई घाटा खाने या कंपनियों से रिश्तेदारी निभाने के लिए नहीं करता। अभी हर तरफ गिरावट का आलम है, अच्छे खासे सितारे टूट-टूटकर गिर रहे हैं तो ऐसे में क्या करना चाहिए? जो वाकई लंबे समय के निवेशक हैं, रिटायरमेंट की सोचकर रखे हुए हैं, उनकी बात अलग है। लेकिन अनिश्चितता से भरे इस दौर में शेयर बाजार में लांग टर्म निवेश का क्या सचमुच कोई मतलब है? लोगबाग दुनिया के मशहूर निवेशक वॉरेनऔरऔर भी

बिल गेट्स और वॉरेन बफेट इस समय दुनिया के सबसे बड़े दानवीर बने हुए हैं। जनसेवा और दान पर जगह-जगह भाषण देते फिरते हैं। लेकिन उनकी दानवीरता करुणा नहीं, बल्कि मजबूरी का नतीजा है। दोनों अमेरिकी नागरिक हैं और अमेरिकी कानून के मुताबिक मरने के बाद किसी व्यक्ति की संपत्ति या तो सरकार की हो जाती है या उसे उत्तराधिकार के लिए भारी-भरकम टैक्स भरना पड़ता है। इससे बचने के लिए वहां के अधिकांश अमीर अपनी संपत्तिऔरऔर भी

जो कंपनी ठीक पिछले बारह महीनों में अपने हर शेयर पर 79.35 रुपए का शुद्ध लाभ कमा रही हो, जिसके शेयर की बुक वैल्यू (रिजर्व + इक्विटी / कुल जारी शेयरों की संख्या) 200.88 रुपए हो, जिसका पी/ई अनुपात पिछले साल भर से पांच, छह, सात कर रहा हो, फिर भी उसके शेयरों को पूछनेवाले न हों तो भारतीय शेयर बाजार की गली को अंधों की गली ही कहना ज्यादा ठीक होगा। या, बहुत हुआ तो यूंऔरऔर भी

बीजीआर एनर्जी सिस्टम्स मुख्य रूप से बिजली और तेल व गैस परियोजनाओं के लिए इंजीनियरिंग, प्रोक्योरमेंट व कंस्ट्रक्शन (ईपीसी) का काम करती है। अभी 4 मार्च को उसे अडानी पावर की तिरोडा (महाराष्ट्र) और कवाई (राजस्थान) की बिजली परियोजनाओं के लिए सीपीयू (कंडेंसेट पॉलिशिंग यूनिट) बनाने का 29.96 करोड़ रुपए का कांट्रैक्ट मिला। इसके तीन दिन बाद 7 मार्च को उसे फिर सरकारी कंपनी पावर ग्रिड कॉरपोरेशन से ऑप्टिक फाइबर ग्राउंड वायर लगाने का 36.61 करोड़ रुपएऔरऔर भी

भारत दौर पर आए दुनिया के तीसरे सबसे बड़े अमीर और निवेश के महारथी वॉरेन बफेट ने कहा है कि उनकी भारत के ऑटोमोबाइल सेक्टर में कोई दिलचस्पी नहीं है। बता दें कि भारत का ऑटो बाजार दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ते बाजारों में शुमार है। चालू वित्त वर्ष 2011-12 के अंत तक भारत दुनिया में कारों का छठा सबसे बड़ा बाजार बन जाएगा। 80 साल के वॉरेन बफेट ने बुधवार को प्रमुख बिजनेस चैनल सीएनबीसीऔरऔर भी

बाजार (निफ्टी) जब 6300 अंक पर पहुंच गया हो, तब स्टॉक्स को चुनकर खरीदने के लिए ज्यादा हौसले और भरोसे की दरकार होती है। टेक्निकल एनालिस्टों के चार्ट आपको आसानी से दिखा सकते हैं कि इधर या उधर, नीचे या ऊपर स्टॉप लॉस लगाकर कैसे नोट बनाए जा सकते हैं। ऐसे में फैसला आपको ही करना है कि आप चार्टों के आधार पर ट्रेड करना चाहते हैं कि कंपनी के मूलभूत आर्थिक पहलुओं यानी फंडामेंटल्स के आधारऔरऔर भी

मैं कह चुका हूं कि इस समय रीयल्टी सेक्टर मेरा पसंदीदा निवेश लक्ष्य है। लेकिन रीयल्टी में भी कौन? नई या पुरानी कंपनियां? इंडिया बुल्स रीयल एस्टेट, एचसीसी, एचडीआईएल, ओबेरॉय, लोढ़ा, ऑरबिट व शोभा डेवलपर्स बेहतर हैं या सेंचुरी, मफतलाल, बॉम्बे डाईंग, गल्फ ऑयल, वालचंदनगर व बीएफ यूटिलिटीज जिनके पास पुश्तैनी जमीन ढेर सारी है। साफ कर दूं कि यूं तो पूरा रीयल्टी सेक्टर निवेश के लिए इस समय अच्छा है। लेकिन इसमें भी पुश्तैनी जमीन रखनवालीऔरऔर भी

जगन्नाधम तुनगुंटला 1987 में वॉल स्ट्रीट (अमेरिकी शेयर बाजार) के निवेश बैंक जहां-तहां से पूंजी जुटाने की जुगत में भिड़े हुए थे ताकि कबाड़ बन चुके बांडों में अपने निवेश को लगे धक्के से निकलकर बैलेंस शीट को चमकदार बनाया जा सके। ऐसे माहौल में सालोमन ब्रदर्स के लिए संकटमोचन बनकर आ गए वॉरेन बफेट। उन्होंने सालोमन के परिवर्तनीय वरीयता स्टॉक ने 70 करोड़ डॉलर का निवेश कर दिया। अगस्त 1991 तक सब कुछ सही चला। तभीऔरऔर भी