रीयल्टी: नया नौ, पुराना सौ दिन

मैं कह चुका हूं कि इस समय रीयल्टी सेक्टर मेरा पसंदीदा निवेश लक्ष्य है। लेकिन रीयल्टी में भी कौन? नई या पुरानी कंपनियां? इंडिया बुल्स रीयल एस्टेट, एचसीसी, एचडीआईएल, ओबेरॉय, लोढ़ा, ऑरबिट व शोभा डेवलपर्स बेहतर हैं या सेंचुरी, मफतलाल, बॉम्बे डाईंग, गल्फ ऑयल, वालचंदनगर व बीएफ यूटिलिटीज जिनके पास पुश्तैनी जमीन ढेर सारी है। साफ कर दूं कि यूं तो पूरा रीयल्टी सेक्टर निवेश के लिए इस समय अच्छा है। लेकिन इसमें भी पुश्तैनी जमीन रखनवाली कंपनियां लंबे समय में ज्यादा अच्छा रिटर्न दे सकती हैं।

क्या कोई नई रिफाइनरी भारत पेट्रोलियम (बीपीसीएल) या रिलायंस इंडस्ट्रीज से होड़ ले सकती है? इसी तरह रीयल्टी सेक्टर की कोई नई कंपनी उन पुराने खिलाड़ियों से टक्कर नहीं ले पाएगी जिनके पास लगभग मुफ्त की पुश्तैनी जमीन है। लोढ़ा बिल्डर्स ने 133 मंजिलों की इमारत बनाने का एलान कर रखा है। यह बहुत महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है और इसमें एचडीएफसी जैसे निवेशकों ने 2000 करोड़ रुपए डाल दिए हैं। लेकिन इनमें से प्रोजेक्ट की कामयाबी को लेकर कितनों का पूरा यकीन है? एचडीएफसी निश्चित रूप से ऐसी ताकत है जो रीयल्टी बाजार की भावी दिशा तय कर सकती है। लेकिन ऐसे ही निवेशकों ने 2007-08 में डीएलएफ जैसा रीयल्टी स्टॉक 1200 रुपए के भाव पर खरीदा था। तो, गल्ती दिग्गजों से भी हो सकती है।

निस्संदेह रूप से मुंबई जैसे शहरों में जमीन की लागत कई गुना बढ़ गई है जिससे रीयल एस्टेट के दाम बढ़ गए हैं। लेकिन इससे रीयल्टी कंपनियों का शुद्ध लाभ मार्जिन भी बढ़ गया है जो अगली 8 से 12 तिमाहियों के लिए काफी सुखद अनुभूति देनेवाला कारक है। मगर, हम तो 12 तिमाहियों के बाद की सोच रहे हैं। किसी भी दीर्घकालिक निवेशक को कम से कम इतने ही टाइम-फ्रेम में सोचना चाहिए। सोचना चाहिए कि तीन साल बाद क्या होगा?

सवाल उठता है कि जब देश का गौरव माने जानेवाले 70,000 करोड़ के बजट के राष्ट्रमंडल खेलों के तंत्र को तय समय पर नहीं तैयार किया जा सका, तब आप निजी कंपनी से कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि वह ऐसा प्रोजेक्ट 3-4 साल में पूरा कर लेगी जिसमें पानी के संकट, सुरक्षा, उड़ानों की सुरक्षा, नौ-परिवहन व ट्रैफिक की समस्या जैसी कई चुनौतियों से जूझना हो। बाजार के मूड को देखते हुए लोढ़ा डेवलपर्स अपना आईपीओ लाने की कोशिश में लगी है। लेकिन पहले से कर्ज के नीचे दबी इस कंपनी की राह आसान नहीं है।

मेरा कहने का मतलब है कि इस समय निवेशकों को नई पीढ़ी के रीयल्टी स्टॉक्स से बचना चाहिए। इसके बजाय इस क्षेत्र की उन कंपनियों का रुख करना चाहिए जिनके पास सस्ता व मजूबत लैंड-बैंक है और जिनके शेयर अपने अंतर्निहित मूल्य से कम भाव पर चल रहे हैं। जैसे, बॉम्बे डाईंग के पास 90 लाख वर्गफुट जमीन है जिसमें से उसने चार लाख वर्गफुट 16000 रुपए प्रति वर्गफुट की दर से पूरा कैश लेकर एडवांस में बेच दी है। इसे अगर भावी कैश फ्लो से मिला दिया जाए तो 22,000 रुपए प्रति वर्गफुट का भाव मिल सकता है, हालांकि अभी ही दाम 28,000 से 30,000 रुपए प्रति वर्गफुट चल रहे हैं। 5000 रुपए प्रति वर्गफुट की डेवलपमेंट लागत और 3000 रुपए प्रति वर्गफुट के टैक्स के बाद भी कंपनी प्रति वर्गफुट 14,000 रुपए का मुनाफा कमाएगी। इसलिए 14,000 रुपए की दर से जमीन खरीदने और फिर उस पर 5000 रुपए प्रति वर्गफुट खर्च करने के बाद 2500 रुपए प्रति वर्गफुट करप-बाद लाभ कमानेवाली नई कंपनी उसकी बराबरी नहीं कर सकती।

आप कहते हैं कि यह तो रीयल्टी सेक्टर को लेकर कही गई विरोधाभासी बात हुई। तो, हम स्पष्ट कर दें कि अगली आठ तिमाहियों तक इस क्षेत्र की नई-पुरानी सभी कंपनियों के शेयरों में कई गुना उछाल आ सकता है। लेकिन जब बाजार शीर्ष पर पहुंचने के बाद गिरेगा, तब क्या होगा? इसीलिए हम दीर्घकालिक निवेशकों की बात कर रहे हैं।

भारतीय पूंजी बाजार का वारेन बफेट माने जानेवाले राकेश झुनझुनवाला कह चुके हैं कि उन्हें कम से कम अगले एक साल तक बाजार को कोई खतरा नहीं नजर आता। हमने अपनी रिसर्च के आधार चार साल की तेजी का दौर मुकर्रर किया है। उसके बाद मंदी का सिलसिला चलेगा। जब पुरानी रीयल्टी कंपनियों में हम निवेश की बात कर रहे हैं तो उसका आधार यह है कि अगले कुछ सालों में ये अपनी जमीन का छोटा-सा हिस्सा भी बेचकर ऋण-मुक्त और लाभप्रद हो जाएंगी। जैसे, बॉम्बे डाईंग की इक्विटी 40 करोड़ रुपए है, जबकि उस पर ऋण का बोझ 1800 करोड़ रुपए रहा है। इसमें से वह 400 करोड़ रुपए लौटा चुकी है। अभी हाल में कंपनी प्रबंधन ने कुछ बड़े निवेशकों के साथ आमने-सामने की बैठक में बताया कि अगली छह तिमाहियों में उसका ऋण-इक्विटी अनुपात 3:1 का हो जाएगा। इसका मतलब होगा कि वह 1300 करोड़ का कर्ज और उतार देगी। अब शायद आप समझ सकते हैं कि मैं क्यों पुरानी कंपनियों को तरजीह दे रहा हूं। लोढ़ा को बनाने दीजिए 133 मंजिल की भव्य इमारत। वह अपनी चुनौतियों से निपटे। दूर की सोचकर चलनेवाले छोटे निवेशकों को ऐसी नई कंपनियों से दूर ही रहना चाहिए।

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